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समीक्षा - दिल नहीं धड़का

यदि दिल ऐसे ही धड़कता है तो फिर भगवान ही बचाए। जोया अख्तर (निर्देशक) यदि इस फिल्म का नाम दिमाग बंद रहने दो रखतीं तो एकदम बढ़िया रहता। जोया को समझना चाहिए कि कलाकारों का जमघट भर लगा देने से कोई फिल्म हिट नहीं हो जाती।
समीक्षा - दिल नहीं धड़का

 

मेहरा परिवार यानी  (अनिल कपूर), उनकी पत्नी नीलम (शैफाली शाह) उनके दो बच्चे कबीर (रणवीर सिंह), आएशा (प्रियंका चोपड़ा) अपने कुछ दोस्त, मैनेजर, और अपने छोटे भाई के साथ मिल कर क्रूज पर शादी की सालगिरह मनाने जा रहे हैं। अब जो भी है बस इसी क्रूज है। रोना-धोना, आरोप-प्रत्यारोप, लड़ाई-झगड़े, मुहब्बत-बेफाई सब कुछ।

 

दो परिवार इस क्रूज पर आए हैं, जिनमें दुश्मनी है। पर उनके बच्चे प्यार में पड़ जाते हैं। अब कहानी आगे बढ़ाने को कुछ तो चाहिए न। पूरी फिल्म ऐसी लगती है जैसे माता-पिता की गलत परवरिश पर सेमीनार चल रहा हो। जोया ने कुछ तीन आंटियों टाइप महिलाएं भी रखी हैं जो बस आंखों ही आंखों में एक-दूसरे को इशारा करती हैं। अब ये क्यों हैं यह तो जोया ही बता सकती हैं। शैफाली शाह ने अपनी पूरी ताकत बस चेहरा सख्त बनाने में ही लगा ही है। अनिल कपूर को दो-चार संवाद बोलने थे तो उन्होंने बोल दिए। रणवीर छिछोरे टाइप की एक्टिंग में हमेशा ही जमते हैं, फिर वह भले ही बड़े घर के लड़के क्यों न बने हों। अनुष्का शर्मा को देख कर लगा कि अनुराग कश्यप की फिल्म बॉम्बे वेल्वेट का कुछ टुकड़ा वहां उपयोग नहीं हुआ होगा तो जोया ने उनसे उधार मांग लिया और यहां इस्तेमाल कर लिया। वैसे ही चीख-चीख कर नाइट क्लब में गाने वाले सीन को याद कीजिए।

 

प्रियंका ने शायद यह फिल्म दोस्ती में कर ली होगी और राहुल बोस तो वैसे भी लंबे समय से बेरोजगार हैं, तो उन्हें जो मिले वही भला। फरहान अख्तर तो भाई ठहरे और बहन के लिए इतना तो किया ही जा सकता है।

 

हम साथ-साथ हैं टाइप की ऐसी बहुत सी फिल्में पहले भी बन चुकी हैं। बस इस बार अंतर यह है कि हवेलीनुमा घर में न होकर क्रूज पर बनी है।

 

तो इस फिल्म में नया क्या है। है न जी एक कुत्ता। ओ प्लीज वह डॉगी नहीं प्लूटो है। कहानी कहने के लिए वही सूत्रधार है। अब बताओ इतनी नई बात कहने और प्लूटो महोदय का रिश्तों के प्रति दर्शन झेलने के लिए इन कलाकारों को तो झेलना ही पड़ेगा न।

 

और संगीत? यदि होता तो हमने जरूर उस पर गौर किया होता।   

 

 

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