शिक्षक दिवस को पंकज त्रिपाठी के जन्मदिन के अवसर पर फिल्म इंडस्ट्री के भीतर और बाहर बधाइयों को तांता लग गया। पंकज यानि अप्रतिम अभिनेता, खांटी कृषक पुत्र, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, ज़मीन से जुड़े ऐसे निखालिस माटी के लाल जिन्होंने नितांत सहज-स्वाभाविक अभिनय से अपनी प्रतिभा का ऐसा लोहा मनवाया है, करोड़ों हृदयों को ऐसा जीता है कि हर जाति, हर मज़हब में उनके मुरीदों की संख्या में निरंतर इज़ाफ़ा हो रहा है। उनकी रिलीज़ होने वाली हर फिल्म या वेब सीरीज़ के साथ ये सिलसिला बढ़ता जा रहा है। पंकज जी पर ये कहावत चरितार्थ है कि "पिता की दौलत पर घमंड करने में क्या खुद्दारी, मज़ा तो तब है जब दौलत अपनी हो और घमंड पिता करें।"
पंकज जी के हृदयगत उद्गार हैं कि ''आसमान तो छूना चाहता हूँ पर उस ऊंचाई तक, जहां से मेरे खेत दिखते हैं। वो ऊंचाई भी नहीं, जहां से इंसान रेंगता दिखे कीड़ों की तरह।'' पंकज जी ने ये भी कहा है कि उनके कोई बड़े सपने नहीं थे। वो फिल्मों में बस छोटे-छोटे रोल्स करके मकान का किराया चुकाना चाहते थे। उनके वर्षों के लगातार प्रयासों, अथक परिश्रम, कड़े संघर्ष के फलस्वरूप उन्हें ''गैंग्स ऑफ वासेपुर'' मिली जिसमें उनके किरदार ''सुल्तान कुरैशी'' ने उनकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया जो उनके सुंदर स्वप्नों की परिणति था। पंकज जी के दिल में अपनी कला के प्रति अतिशय प्रेम और सम्मान का भाव रहा इसीलिए आज अभिनय के सर्वोच्च शिखर पर सफलता के झंडे लहरा रहे हैं। फिल्में हमेशा के लिए होती हैं और ये निर्विवाद सत्य है कि फिल्मों का लाख विरोध हो पर सिनेमा एक ऐसा मायाजाल है जिसके प्रति लगाव कम नहीं हो सकता। अन्य कोई कला विवेक को उतना पारित नहीं करती पर फिल्में आत्मा की गहराई से सीधे भावनाओं तक जाकर प्रभावित करती हैं।
पंकज जी अभिनय जगत में प्रखर अंशुमाली की तरह देदीप्यमान, जाज्वल्यमान, उदीयमान, उत्कृष्ट अभिनय से दिलों पर राज करने वाले हैं। वे द्रुतगति से सफलता के सोपान लांघते हुए चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुके हैं पर मिज़ाज में अभी भी फ़क़ीरों वाली कलंदराना रविश है और अद्भुत सफलता के उपरांत भी पाँव दृढ़ता से ज़मीन पर टिके हैं। उनके अपार धैर्य, निरंतर प्रयास, कष्टसाध्य परिश्रम, अनवरत संघर्ष, सुदीर्घ प्रतीक्षा और सर्वोपरि फिल्म इंडस्ट्री में बिना किसी गॉडफादर के, मात्र विरली, विलक्षण प्रतिभा के दम पर वो मुकाम हासिल किया है कि यह कहने में कतई संकोच नहीं होना चाहिए कि भारतीय सिनेमा को पंकज त्रिपाठी के रूप में बेशक़ीमती कोहिनूर मिला है।
5 सितम्बर 1976 को बिहार के गोपालगंज जिले के बेलसंड गाँव में कृषक पिता पंडित बनारस त्रिपाठी और माता हेमवंती देवी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी। परंपरानुसार पुरोहित को कुंडली दिखाने पर उन्होंने बताया कि बच्चे का भाग्य विशेष नहीं, ना कोई उपलब्धि हासिल करेगा, ना विदेश जायेगा। परन्तु बच्चे का भाग्य चुपचाप मुस्कुरा रहा था क्योंकि उसे पता था कि अपनी लगन, जुनून और जज़्बे से यही बच्चा हस्तरेखाओं को बदल कर सिनेमा का सबसे चहेता बन जायेगा। आज सर्वाधिक पसंद किये जाने, प्यार-सम्मान पाने वाले एक्टर बनने से पहले पंकज त्रिपाठी का जीवन उतार-चढ़ाव भरा और संघर्षपूर्ण रहा है। पंकज जी पिता के साथ खेती में हाथ बंटाते थे। नाटकों के प्रति रुझान था अतः गांवों में होने वाले नाटकों में गांववालों को उनकी अनगढ़ प्रतिभा देखने को मिलती थी। ऊंची पढ़ाई के लिए पटना पहुंचे तो नाटक देखने लगे। पंकज जी बारहवीं कक्षा में थे तब उन्होंने ''अंधा कानून'' नाटक देखा और इसमें एक कलाकार के भावप्रवण अभिनय को देखकर बरबस रो दिए थे, प्रेरणास्वरूप अंदरूनी कलाकार प्रतिभा के प्रदर्शन हेतु छटपटाने लगा।
पंकज जी को बाकायदा एक्टिंग सीखनी थी पर बखूबी ज्ञात था कि सीधा-सच्चा जीवन निर्वाह करते उनके धार्मिक पिता, जिन्होंने ना फिल्मों का नाम सुना था ना कोई फिल्म देखी थी, एक्टिंग सीखने के लिए हरगिज़ पैसे नहीं देंगे। वो धनोपार्जन हेतु पटना के मौर्या होटल में काम करने लगे। रात 11 से सुबह 7 बजे तक की शिफ़्ट के बाद कुछ घंटे सोना, फिर दोपहर 2 से 7 तक थिएटर करना, तत्पश्चात होटल में रात की शिफ्ट करना। पंकज जी ने ''नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा'' में एडमिशन लेने का मन बनाया लेकिन वहां स्नातक को ही प्रवेश मिलता था। पंकज जी ने हिंदी साहित्य में स्नातक किया और उनके जुनून ने अंततः नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा पहुँचाया। कॉलेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ने पर छात्र आंदोलन में शामिल होकर जेल गए जहां ज़िंदगी ने अलग सबक सिखाए। पंकज जी एनएसडी से उत्तीर्ण होकर 2004 में भाग्य आजमाने स्वप्नों की नगरी मुंबई पहुंचे। कड़े संघर्ष के दौरान एक वक़्त ऐसा भी आया कि उनकी जीवनसंगिनी मृदुला के जन्मदिन पर भेंट देने के लिए उनके पास एक रूपया भी नहीं था। पर सच्चे अर्थों में अर्धांगिनी मृदुला ने बिना विचलित हुए उनकी हिम्मत बंधायी और घर की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु अर्थोपार्जन का भार अपने कंधों पर लेकर उनको तनाव मुक्त कर दिया जिससे वो सारा ध्यान अभिनय को निखारने पर दे सकें।
पंकज जी जितने बेजोड़ कलाकार हैं, उतने ही ज़िंदादिल इंसान हैं और उनके संस्मरण, किस्सागोई, निराला हास्यबोध गज़ब का है। उनकी सरलता, सहजता, ज़िंदादिली के सभी मुरीद और क़ायल हो जाते हैं। परदे पर अभिनीत पात्रों को देख कर उनके बारे में जो धारणा बनती है, हक़ीक़त में वो उससे अधिक नेक, सादगीपसंद और बेहतर व्यक्तित्व हैं।
पंकज त्रिपाठी, अभिनय में पूर्णत: निष्णात, पारंगत होकर 2004 में "रन" में उतरे, फिर गया सिंह के मित्र के रूप में "अपहरण" में लिप्त हुए। "ओमकारा" में "किचलू" और "सूर्यप्रकाश" बनके "धर्म" निभाया फिर "मेजर वीरेंद्र राठौड़" के रूप में "शौर्य" का परिचय दिया। "चिंटू जी" में "पप्लू यादव" बनके, "इंस्पेक्टर" के रूप में सिर्फ "बारह आना" लिए। "वाल्मीकि की बंदूक" से "बीडीओ त्रिपाठी" के रूप में फायर करके, "आक्रोश" में "किशोर" बन गये। फिर "सेक्रेटरी दुबे" ने "चिल्लर पार्टी" बनाई और "सूर्या" ने "अग्निपथ" पार किया। 2012 में "सुल्तान कुरैशी" बनकर "गैंग्स ऑफ वासेपुर" के दोनों भागों में वो धमाल मचाया कि ''सुल्तान कुरैशी'' का नाम फिल्मी इतिहास में अमर कर दिया। इस फिल्म में उनकी कमाल की अदाकारी सबकी निगाह में आयी और उनकी फिल्मों का इंतज़ार रहने लगा। "दबंग" (भाग दो) में "फिलावर" ने दबंगई दिखाई। "वर्धा भाई" ने "एबीसीडी" पढ़ी और "बृजबिहारी पांडे" ने "रंगरेज" बनके, फिर "पंडित जी" के रूप में "फुकरे" में धीरज से सबको रेला। ''अनवर का अजब किस्सा'' में ''अमोल'' का कमाल दिखा। "गुंडे" में "लतीफ" और "सिंघम रिटर्न्स" में "अल्ताफ भाई" ने रंग जमाया। "मांझी" में "रूआब" ने जलवा दिखाया। "मसान" में "संध्या जी" ने ''रिचा चड्ढा'' को शरमाते हुए खीर खिलाई और "दिलवाले" में "अनवर" बन गए। कड़क "प्राचार्य श्रीवास्तव" ने सबको "निल बटे सन्नाटा" कर दिया। "ग्लोबल बाबा" में "डमरू" बने, "मैंगो ड्रीम्स" में "सलीम" और "कॉफी विद डी" में "गिरधारी" बने। पंकज जी ने "रंगीला" के रूप में "अनारकली ऑफ आरा" में लटके-झटके दिखाए, नाच-कूद कर रंग जमाया, छिछोरेपन भरा किरदार निभाया और ऐसा रूप बदला कि दर्शक दंग रह गए। उन्होंने साबित किया कि वो किसी भी किरदार में प्रवेश करके उसे सहजता से निभा सकते हैं।
2017 में पंकज जी ने सशक्त अभिनय का लोहा मनवाया और उत्कृष्ट प्रदर्शनों से सबके दिलों को जीता। "न्यूटन" में अपार धीरज वाले "आत्मा सिंह" के किरदार को बेहतरीन ढंग से निभा कर उन्होंने ऊँचाई की तरफ और एक कदम बढ़ाया। पंकज जी ने "गुड़गांव" फिल्म में, "केहरी सिंह" के दमदार किरदार में आवाज़ को खुरदुरा बनाकर अनूठा प्रयोग किया जो कम लोगों ने नोटिस किया। "बरेली की बर्फी" में "नरोत्तम मिश्रा" के रोल के साथ पंकज जी ने न्याय किया और सहज, खुले दिल वाले पिता का किरदार निभाया, जिसे इकलौती बेटी के साथ सिगरेट पीने में आपत्ति नहीं है। "फुकरे रिटर्न्स" में "पंडित जी" और "मुन्ना माइकल" में "बल्ली" बन के आये। मुलाकात के दौरान उन्होंने बताया था कि ''रजनीकांत जी'' के साथ तमिल फिल्म "काला" की शूटिंग कर चुके हैं जिसमें उनके किरदार का नाम "पंकज पाटिल" है।" फिल्म ''अंग्रेजी में कहते हैं" में पंकज जी ने रुग्ण, मरणासन्न पत्नी पर फ़िदा आशिक पति "फ़िरोज़" का किरदार ख़ूबसूरती से निभाया। बुंदेलखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म "फेMOUS'' में वो बाहुबली नेता "त्रिपाठी" बने हैं।
2018 में भोपाल और मध्य प्रदेश के कई शहरों में शूट हुई "स्त्री" फिल्म में "रूद्रा" के रोल में कमाल किया। उन्होंने पंजाबी फिल्म "हरजीता" की जिसमें "कोच" का किरदार निभाया। "भैयाजी सुपरहिट" में "बिल्डर गुप्ता" के रूप में नज़र आये। 2019 में ''लुका छुपी'', "किस्सेबाज़", "ताशकंद फाइल्स" और ''सुपर 30'' रिलीज़ हुयीं। 2020 में ''गुल मकई'', ''अंग्रेज़ी मीडियम'', "गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल" और ''लूडो'' रिलीज़ हुयीं और बेहद सराही गयीं। 2021 के शुरुआत में आयी फिल्म ''कागज़'' में पंकज जी ने साबित कर दिया कि उनमें अद्भुत प्रतिभा है । मार्च में फिल्म ''रूही अफ़ज़ाना'' आयी मगर चर्चित नहीं हुयी। जुलाई में आयी फिल्म "मिमी" में पंकज जी ने हास्य बोध से भरपूर, ‘‘पांडे’’ का सर्वथा अलग किरदार निभाया जो बहुत पसंद किया गया। हर फिल्म के साथ पंकज जी की अदाकारी निखरती जा रही है और अभिनय की लाजवाब अदायगी देखने को मिल रही है जो काबिले-तारीफ़ है।
फिल्मों के अलावा, टीवी सीरियल्स और वेब सीरीज़ में भी पंकज जी ने अभिनय के जलवे बिखेरे हैं।सेक्रेड गेम्स" के दोनों भागों में ''खन्ना गुरुजी" के किरदार में उन्होंने सधा हुआ अभिनय किया। ''मिर्ज़ापुर'' वेब सीरीज़ के दोनों भागों में पंकज जी के दबंगई भरे किरदार, ''अखंडानंद त्रिपाठी'' उर्फ़ ''कालीन भैया'' ने तो भौकाल मचा दिया। ठहराव के साथ गिने-चुने शब्दों में बोले गए डायलॉग्स और यदा-कदा सिर्फ गर्दन हिलाकर विभिन्न भाव प्रकट करने के निराले अंदाज़ से उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुँच गयी। इस वेब सीरीज़ के बाद प्रशंसकों की संख्या में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ और लोग उनकी अभिनय शैली के दीवाने हो गए। पंकज जी ''क्रिमिनल जस्टिस'' में ''माधव मिश्रा'' के रूप में भी पसंद किये गए। पंकज जी ने इन शोज़ के ज़रिए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर जिस तरह ख़ुद को स्थापित किया, वो उनके ही वश की बात है।
देर से ही सही पर पंकज जी की कड़ी मेहनत, विषम परिस्थितियों में अविराम संघर्ष आख़िरकार रंग लाया है। पंकज जी कई सम्मानों और पुरस्कारों से नवाज़े गए हैं पर अब उनको अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल रही है। इस वर्ष मेलबर्न फिल्म महोत्सव में पंकज त्रिपाठी को सिनेमा में विविधता पुरस्कार मिलने की घोषणा पर पंकज जी ने कहा कि ''मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा काम वैश्विक दर्शकों द्वारा पहचाना और सराहा जाएगा और मुझे दूसरे देश की सरकार द्वारा प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा।''
पंकज जी की विशिष्ट, मौलिक अभिनय शैली के दर्शक जैसे दीवाने हैं, उसके मद्देनज़र पंकज जी को अपनी सादगी, सहजता बरकरार रखते हुए, स्वस्थ, उद्देश्यपूर्ण, सार्थक सिनेमा की सौगात देते रहना चाहिए।
(लेखिका कला, साहित्य और सिनेमा की समीक्षिका हैं। यहां व्यक्त विचार निजी हैं।)