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सेंसर बोर्ड की कैंची से घायल हुईं ये पांच फिल्में

इन एक दो सालों में सेंसर बोर्ड ने कुछ फिल्मों पर ऐसी कैंची चलाई कि मत पूछिए।
सेंसर बोर्ड की कैंची से घायल हुईं ये पांच फिल्में

विशाल शुक्ला

इसे लेकर लोगों का मानना है कि सेंसर की वजह से फिल्म के मूल विषय-वस्तु में भारी बदलाव आ गया। सेंसर बोर्ड के इस रवैये को लेकर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी की काफी आलोचना हुई। लेकिन निहलानी साहब अपना काम करते रहे। आइए आपको बताते हैं कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में जिस पर भयंकर कट लगाया गया।

 उड़ता पंजाब

उड़ता पंजाब ही वह फिल्म थी, जिस पर सेंसर के डंडे के बाद सबसे ज्यादा हल्ला हुआ था। पंजाब के युवाओं मे नशे की बढ़ती लत जैसे संजीदा विषय पर आधारित होने के बाद भी 94 कट्स के साथ फिल्म को रिलीज करने का आदेश दिया गया था। बता दें कि सेंसर बोर्ड के मुखिया पहलाज निहलानी ने फिल्म से पंजाब का नाम, पंजाब के विभिन्न शहरों के नाम, एमपी, एमएलए, पार्लियामेन्ट चिट्टा वे, जमीन बंजर ते औलाद कंजर जैसे कई शब्दों को हटाने का आदेश दिया था, माना जाता है इनके बिना फिल्म पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाती। जब पूरी फिल्म इंडस्ट्री के नामचीन चेहरों ने फिल्म के समर्थन में निर्देशक अनुराग कश्यप के साथ प्रेस ब्रीफिंग की, तो केंद्र में नम्बर दो और वित्त मंत्री अरुण जेटली को भी कहना पड़ा था कि "हम प्रमाणन चाहते हैं सेंसर नही।" बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी 'समय के साथ बदलने' की ताकीद बोर्ड को दी थी।

ढिशूम

अगर सबसे हैरतनाक निर्देश सेंसर बोर्ड ने कभी दिए, तो वह शायद यही फिल्म थी। जैकलीन फर्नान्डीज पर फिल्माए गए गाने 'सौ तरह के रोग ले लूं' में एक्ट्रेस छोटे कपड़े पहनकर सिख धर्म का पवित्र कृपाण लेकर नाच रही है, इससे हमारी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है, इस सन्दर्भ की शिकायत दिल्ली सिख गुरद्वारा कमेटी ने की थी। जिसके बाद निहलानी का कहना था कि 'धार्मिक सामग्री से युक्त फिल्मों को सेंसर करने के लिए धार्मिक विद्वानों की मौजूदगी की सिफारिश की थी। यूं तो फ़िल्म के निर्देशक साजिद नाडियाडवाला और एक्टर वरुण धवन ने साफ किया था कि वह कृपाण नही बल्कि अरबी तलवार थी पर अगर उक्त शिकायत को सच भी मान लिया जाए तो सेंसर बोर्ड में धार्मिक विद्वानों की मौजूदगी कहां तक तार्किक है।

लिपस्टिक अंडर माय बुर्का

पहले पहल सेंसर बोर्ड से बैन होकर यह फ़िल्म फेमस गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड के लिए चुनी गई थी। अपनी आजदी के लिए संघर्ष करती छोटे शहरों की चार औरतों की कहानी 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का अंतत एडल्ट सार्टिफिकेट के साथ रिलीज़ हुई थी। सेंसर बोर्ड ने शुरुआत में फ़िल्म को बैन करते वक़्त अपनी टिप्पणी मे लिखा था कि फिल्म कुछ ज्यादा ही महिला प्रधान है।  मामला साफ था बोर्ड अभी भी अपनी सेक्सुअल फैंटेसी को लेकर बात करने वाली औरत को 'अति मॉर्डन' के ढांचे में रखकर ही सोचता है। वह इस बात को स्वीकार ही नही करना चाहता कि औरत की भी यौनिक आजादी को लेकर बात हों सकती है।

फिल्लौरी

अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म फिल्लौरी को लेकर पंकज निहलानी ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि "फिल्म मे दिखाया गया है कि भूत बनी अनुष्का हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद भी वहीं खड़ी रहतीं हैं जबकि हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद भूत भाग जाते हैं।" क्या अब फिल्मे बनाते वक्त इतनी रचनात्मक स्वतंत्रता लेना भी सम्भव नही है। इस तरह से अगर फिल्मों को लॉजिक के स्केल पर कसा जाने लगा तो सलमान खान की शायद सभी फिल्में बैन करनी पड़ें।

जब हैरी मेट सेजल

सांस्कृतिक सुधारों की कड़ी मे ताजा शिकार हुई है शाहरूख खान और अनुष्का शर्मा की 'जब हैरी मेट सेजल'। फिल्म के दूसरे ट्रेल में इस्तेमाल किए गए 'इंटरकोर्स शब्द को लेकर निहलानी को गहरी आपत्ति है। उनकी दलील है 'इंटरकोर्स' शब्द के इस्तेमाल से समाज मे गलत संदेश जाएगा।

 

 

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