भारत में हिंदी सिनेमा का आकर्षण ऐसा है जिससे कोई भी अछूता नहीं है। इस क्षेत्र का आकर्षण ऐसा है कि स्पोर्ट्स इवेंट्स से लेकर इलेक्शन कैंपेन तक में कलाकारों का इस्तेमाल किया जाता रहा है, जिसकी एक लंबी फेहरिस्त है। हिंदी फिल्म जगत में अपनी एक पहचान बनाने के लिए लाखों लोग संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन इसमें कुछ ही खुशकिस्मत होते हैं जो शीर्ष पर पहुंच पाते हैं। एक खास बात ये भी है कि कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो अभी भी मेट्रो सिटीज़ से आने वाली यंग टैलेंट को ही अधिक मौके मिलते हैं।
हालांकि बीच में कई तरह के टैलेंट हंट होते रहे हैं। लेकिन जिस संख्या में लोग संघर्ष करने आते हैं, उसकी तुलना में यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इस दिशा में पहल करते हुए डॉ स्वरूप पुराणिक ने कदम उठाया है। उन्होंने 'द इंटरनेशनल ग्लैमर प्रोजेक्ट की स्थापना की है, जो छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली प्रतिभाओं को ग्लैमर इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए एक मंच उपलब्ध करवाता है।
ये विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र और छोटे शहरों से आने वाली महिलाओं के लिए एक बेहतर मंच साबित हो रहा है। अधिकतर सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भी यह देखा गया है इनमें भाग लेने या जीतने वाली महिलाएं मेट्रो सिटीज़ से या देश के दूसरे बड़े शहरों से संबंध रखती हैं। डॉ पुराणिक का कहना है कि हम बेहद साधारण पृष्ठभूमि से आने वाली इन प्रतिभाओं को मिस टीन, मिस इंडिया और मिसेज इंडिया जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रशिक्षण उपलब्ध करवाते हैं। जिसमें इन्हें सामान्य प्रशिक्षण के अलावा ब्रैंड एंडोर्समेंट और प्रोफेशनल फोटो शूट का भी एक्सपोजर मिलता है।
बकौल पुराणिक इसके इस प्रशिक्षण का लाभ यह होता है कि इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे जगहों पर होने वाली प्रतियोगिताओं का भी हिस्सा बनने का मौका मिलता है। इसके बाद वेब सीरीज और टीवी शोज में काम करने के लिए इनके रास्ते खुलने लगते हैं। दूसरे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और अन्य माध्यमों के जरिए भी इनकी मदद की जाती है। इसके माध्यम से ग्लैमर जगत को अधिक समावेशी और विविध बनाने का प्रयास किया जा रहा है।