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मर्लिन मुनरो: शोहरत से सुसाइड तक का सफर

आज मर्लिन की चर्चित फिल्म 'जेंटलमैन प्रेफर ब्लोन्ड्स' की रिलीज के 60 वर्ष पूरे होने का जश्न दुनिया भर मे उनके प्रशंसक मना रहे हैं।
मर्लिन मुनरो: शोहरत से सुसाइड तक का सफर

विशाल शुक्ला

29 मई वर्ष 1962 का दिन, जगह न्यूयार्क  का मशहूर मेडिसन स्क्वायर, शाम का वक़्त, खूबसूरत सजावट और कुछ बड़े डेमोक्रेट नेताओँ की मौजूदगी के बीच किसी का इंतज़ार हो रहा है। मौका है राष्ट्रपति जान एफ़ कैनेडी के 45वें जन्मदिन के जलसे का। एक काले रंग की लिमोजिन कर से सुनहरे बालों और सफेद फ्रॉक नुमा लिबास पहने एक लड़की उतरती है, व्यक्तित्त्व का असर ऐसा कि इस जेंटलमैन जलसे में भी हर कोई उसे छू भर लेना या करीब से झलक पा लेना चाहता है। खैर! लड़की आगे बढ़ती है माइक हाथ मे लेते ही हैप्पी बर्थडे मिस्टर प्रेसिडेन्ट गाने लगती है। इसके तीन महीने बाद इस लड़की की ड्रग एडिक्शन से मौत हो जाती है और ठीक एक साल बाद जान एफ कैनेडी की हत्या कर दी जाती है। 

यही थीं जग प्रसिद्ध 'मर्लिन मुनरो'

 

 

मर्लिन मुनरो हॉलीवुड की सदाबहार ख़ूबसूरत अभिनेत्री मानी जाती रहीं हैं। उनकी ख़ूबसूरती, उनका ग्लैमर, उनके इश्क़ के क़िस्से और फिर अचानक ही दुनिया से चले जाना सारी बातें किसी खूबसूरत फंतासी से कम नही लगतीं।

शुरुआती सफर

आज मर्लिन की चर्चित फिल्म 'जेंटलमैन प्रेफर ब्लोन्ड्स' की रिलीज़ के 60 वर्ष पूरे होने का जश्न दुनिया भर मे उनके प्रशंसक मना रहे हैं। यूं तो इस फ़िल्म में उनका रोल सपोर्टिंग एक्ट्रेस का था पर मर्लिन के ही शब्दों में, “फ़िल्म के लिए जेन रसेल को फ़िल्म के लिए 2 लाख डॉलर मिले थे जबकि मुझे हफ्ते के 500। मेरे लिए यह एक ठीक ठाक रकम थी पर आख़िरकार मुझसे बर्दाश्त नही हुआ औऱ मैंने कहा- देखिए जो भी हो मैं ब्लोण्ड हूँ और फ़िल्म का नाम है 'जेंटलमैन प्रेफर ब्लोन्ड्स'! मैं लोगों से कहना चाहती हूं  अगर मैं स्टार हूं तो मुझे लोगों ने ही स्टार बनाया है किसी स्टूडियो या प्रोड्यूसर ने नही।”

ऐसी बेबाक मुनरो का जन्म 1 जून 1926 को अमेरिका के लॉस एंजेलिस में हुआ था। उनका असली नाम नॉरमा जीन मोर्टेनसेन था। उनके जन्म के समय नॉरमा के माता पिता शादीशुदा नहीं थे और उनका बचपन काफी मुश्किलों में बीता। कई साल तक अनाथालयों में रहने के बाद केवल 16 साल की ही उम्र में उन्होंने शादी रचा ली। मुनरो के पति एक कमर्शियल याट ड्राइवर थे। काम के सिलसिले में दूर चले जाने पर मुनरो ने कैलिफोर्निया में ही एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली। वहां एक फैशन फोटोग्राफर के कहने पर  मॉडलिंग शुरु कर दी और 1946 में  पति से तलाक ले लिया और इसी साल अपना पहला फिल्म कॉन्ट्रेक्ट साइन किया।

कैलेंडर कांड से आई चर्चा में

वर्ष 1955 में आए गोल्डेन ड्रीम्स कैलेंडर से मुनरो अचानक ही चर्चा में आ गईं। उनकी नग्न तस्वीरों वाला यह कैलेंडर जब बाजार में आया तो एक ओर तो इसके कारण हर ओर उनकी खूब चर्चा हुई तो दूसरी ओर कई लोगों की काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी। फिल्मों में आने पर मुनरो ने अपने गहरे भूरे बालों का रंग बदलकर सुनहरा कर लिया। 1953 में आई फिल्मों 'नियाग्रा' और 'हाउ टू मैरी ए मिलियनेयर' से एक सफल अभिनेत्री के रूप में हॉलीवुड में मुनरो ने अपनी पहचान बना ली।

वर्सेटाइल मुनरो

मुनरो को संगीत का भी शौक था. उन्होंने कई गाने भी।कम्पोज़ करे जिनमें से 'बाय बाय बेबी' और 'लेट्स मेक लव' जैसे गीत खूब मशहूर हुए। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी के जन्मदिन पर गया उनका 'हैप्पी बर्थडे मिस्टर प्रेडिडेन्ट' खूब चर्चित हुआ। इस दिन पहनी गई उनकी ड्रेस  48 लाख डॉलर में बिकी थी, जिसे रिपलेज बिलीव इट ऑर नॉट’ नामक संग्रहहालय समूह ने खरीदा है। इस ड्रेस का बेस प्राइज 30 लख डॉलर रखा गया था।

समकालीनों से अलग थीं मुनरो

मुनरो के दौर की बाक़ी अभिनेत्रियों, एलिज़ाबेथ टेलर, डेबी रेनॉल्ड्स और जेन रसेल की तरह वो कभी बुजुर्ग नहीं हुईं। उनकी ख़ूबसूरती एक पैमाना बन गई. उनके भूरे बाल, अलसाई आंखें और दिलकश मुस्कान उनके किरदार को बाक़ी सबसे अलग करती थी। इसलिए उनकी मौत के बाद भी ब्यूटी आइकॉन या ब्यूटी लीजेंड जैसे खिताबों से उन्हें नवाज़ा गया। बेफिक्री में भी मर्लिन लुभावनी लगती थीं, असल में कितनी बेफ़िक्र थीं, इस पर आज भी उनकी फ़िल्मों से ज़्यादा बहस होती है।

जिंदगी का स्याह पक्ष

ग्लैमर और चकाचौंध से भरी ज़िंदगी का काला धब्बा उनकी रहस्यमयी मौत है। बेसाख्ता बेफिक्री और लत से इंसान का क्या हाल होता है, मुनरो की ज़िंदगी और मौत इसकी मिसाल है। मुनरो की जिंदगी उन सेलिब्रिटीज़ के लिए चेतावनी भी है जो चकाचौंध भरी ज़िंदगी जीना चाहते हैं और कभी  शैम्पेन की बोतलें और कैमरे के फ्लैशो से आगे नही बढ़ पाते हैं।

क्रिएटिव मुनरो

वर्ष 2010 में उनके निजी दस्तावेज छापे गए, जिसने उनके किरदार को और ऊंचे पायदान पर पहुंचा दिया। इन दस्तावेज़ों में मुनरो के अपने हाथ से लिखे ख़त, कविताएं और रोज़ाना के क़िस्से शामिल हैं। मुनरो के लिखे इन दस्तावेज़ों को, 'फ्रैगमेंट्स: पोएम्स, इंटिमेट नोट्स, लैटर्स बाय मर्लिन मुनरो' के नाम से छापा गया था. इसका संपादन स्टैनले बुचथाल और बर्नार्ड कॉमेंट ने किया।

मुनरो की कलम से निकले इन शब्दों को पढ़ने के बाद उनके बारे में आपक़ी राय बदलनी तय हैं। ग्लैमर की चकाचौंध भरी ज़िंदगी से अलग, मर्लिन मुनरो, बेहद समझदार और ज़हीन शख्सियत थी।

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