बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 जुलाई 2025 को 2006 के मुंबई ट्रेन धमाकों के मामले में सभी 12 दोषियों को बरी कर दिया, जिसने 189 लोगों की जान ले ली थी और 800 से अधिक को घायल किया था। जस्टिस अनिल किलोर और श्याम चंदक की पीठ ने कहा कि अभियोजन “मामले को संदेह से परे साबित करने में पूरी तरह विफल रहा” और सबूत विश्वसनीय नहीं थे। 2015 में विशेष मकोका कोर्ट ने पांच आरोपियों को फांसी और सात अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी थी। कमाल अंसारी की 2021 में कोविड से जेल में मृत्यु हो गई थी।
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “12 मुस्लिम पुरुष 18 साल तक जेल में रहे, एक ऐसे अपराध के लिए जो उन्होंने किया ही नहीं। उनका सुनहरा जीवन बर्बाद हो गया। 180 परिवारों को अपने प्रियजनों के लिए कोई न्याय नहीं मिला।” उन्होंने महाराष्ट्र ATS के अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की, जिन्होंने जांच की थी। ओवैसी ने X पर लिखा, “वे 17 साल तक जेल में रहे, एक दिन भी बाहर नहीं आए। क्या सरकार ATS के खिलाफ कार्रवाई करेगी?”
शिवसेना सांसद मिलिंद देवड़ा ने फैसले को अस्वीकार करते हुए कहा, “एक मुंबईकर के रूप में, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता। महाराष्ट्र सरकार से अपील है कि सर्वश्रेष्ठ वकील नियुक्त कर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करें।” बीजेपी नेता किरीट सोमैया ने इसे “बेहद निराशाजनक” बताया और जांच व कानूनी प्रस्तुति में कमियों को जिम्मेदार ठहराया। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने X पर लिखा, “पुलिस के कबूलनामों के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया था। 19 साल तक यातना और जेल का सामना करना पड़ा! उन्हें क्या मुआवजा मिलेगा?” विशेष लोक अभियोजक उज्ज्वल निकम ने कहा कि यह फैसला गंभीर चिंता पैदा करता है और राज्य सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा।
हाईकोर्ट ने गवाहों के बयानों को अविश्वसनीय माना, क्योंकि कई गवाहों ने घटना के चार साल बाद आरोपियों की पहचान की। मकोका के तहत स्वीकारोक्ति बयानों को यातना के बाद लिया गया माना गया। अभियोजन यह भी साबित नहीं कर सका कि धमाकों में किस तरह के विस्फोटक इस्तेमाल हुए। यह फैसला जांच एजेंसियों के लिए झटका है और आतंकी मामलों में सबूतों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।