किताब का नाम- बियॉन्ड नंबर्स
लेखिका: ऋचा सिंह
प्रकाशक: नोशन प्रेस
मूल्य: 900 रुपये
पृष्ठ: 167
आज के समय में जब हर चीज़ तेज़ी से बदल रही है, जब बाज़ार अनिश्चित हैं और जब तकनीक हर दिन कुछ नया लेकर आ रही है, ऐसे दौर में सिर्फ आंकड़ों को देखना काफी नहीं। ज़रूरत है उन्हें समझने, टटोलने और उनसे रास्ता निकालने की। ऋचा सिंह की यह किताब बियॉन्ड नंबर्स हमें यही सिखाती है।
पहले हम सोचते थे कि फाइनेंस का मतलब है कमाई, खर्च, प्रॉफिट। लेकिन इस किताब से पता चलता है कि इन नंबरों के इतर भी एक दुनिया है। कोई भी आंकड़ा सिर्फ एक अंक नहीं है, उसके पीछे एक कहानी है। उसे समझना ही असली फाइनेंशियल समझ है।
ऋचा सिंह खुद एक बड़ी कंपनी की मुख्य वित्त अधिकारी हैं। उन्होंने जो देखा, जिया और सीखा- उसे इस किताब में बड़ी सादगी से लिखा है। ये किताब उन लोगों के लिए है जो फाइनेंस से डरते हैं, जो सोचते हैं कि ये सिर्फ हिसाब-किताब का खेल है। लेकिन लेखिका ठीक इसके अलग दुनिया में ले जाती हैं, छोटे-छोटे पैरा और चैप्टर्स में बड़े-बड़े अंकों को समझने की कला सिखाती हैं।
किताब तीन हिस्सों में बँटी है। पहला, समीक्षा करना। यानी जो कुछ भी हो रहा है, उसे ध्यान से देखना। दूसरा, मूल्यांकन करना। मतलब, समझना कि जो हो रहा है, उसका कारण क्या है, उसमें कहाँ चूक है, और कहाँ सुधार की गुंजाइश है। तीसरा, खोज करना। यानी नए मौके ढूँढना, नई राहें बनाना, और आगे की दिशा तय करना।
किताब में एक जगह लिखा है, "अब वित्त सिर्फ पीछे बैठकर हिसाब रखने वाला नहीं है, वह अब फैसले लेने वालों में है।" वहीं, दूसरी जगह, "पुराने तरीके से बनाए गए बजट अब इस तेज़ दौर के हिसाब से काम नहीं आते।" क्योंकि दुनिया अब हर पल बदल रही है। ऐसे में कोई भी कंपनी अगर लचीली नहीं होगी, तो वह पीछे रह जाएगी। यानी, बजट अब सख्त नहीं, नरम और समझदार होना चाहिए।
लेखिका ने कई असली उदाहरणों के ज़रिए ये बात समझाई है। जैसे, एक तरफ ऐसी कंपनियाँ हैं (एपल) जिन्होंने सोचा, समझा और फिर पैसा लगाया। उन्होंने तकनीक में निवेश किया, इनोवेशन को बढ़ावा दिया और सालों तक लाभ में रहीं। वहीं दूसरी तरफ, एक समय की मशहूर एयरलाइन (जेट एयरलाइन) और एक बड़ी ऑफिस स्पेस कंपनी (वी वर्क) ने बिना सोच के विस्तार किया और अंत में गिर पड़ीं। कारण? उनके पास आंकड़े तो थे, पर दृष्टि नहीं थी।
ऋचा बताती है कि हर कमाई एक जैसी नहीं होती। कोई कमाई तात्कालिक हो सकती है, तो कोई स्थायी। असली समझ यही है कि आप जानें कि जो पैसा आ रहा है, वह टिकेगा या नहीं।
सबसे असरदार हिस्सा वह है जहाँ एक कर्मचारी विनय की कहानी सामने आती है। विनय एक सामान्य वित्त कर्मी है, जो पहले बस आंकड़े जोड़ता था। लेकिन जब उसने इन तीन शब्दों 'समीक्षा, मूल्यांकन और खोज' को अपनाया, तो उसकी सोच बदल गई। अब वह केवल हिसाब नहीं करता, बल्कि हर खर्च और हर योजना के पीछे का उद्देश्य समझने लगा। यही बदलाव उसकी टीम और उसकी कंपनी में भी उतर गया।
हर अध्याय के बाद एक छोटा सारांश दिया गया है, जिससे आप थकें नहीं, बल्कि और समझें। भाषा इतनी आसान है कि अगर आप पहली बार भी वित्त शब्द सुन रहे हैं, तब भी आपको डर नहीं लगेगा।
कुल मिलाकर, बियॉन्ड नंबर्स एक ज़रूरी किताब है। यह आपको बताती है कि अब केवल गिनती काफी नहीं, सोच ज़रूरी है। पैसा आ रहा है, अच्छा है। पर वह क्यों आ रहा है, टिकेगा या नहीं, और उससे हम क्या सीख सकते हैं, यही असली सवाल है।
अगर आप विद्यार्थी हैं, कामकाजी हैं, कोई व्यापार कर रहे हैं या सिर्फ यह समझना चाहते हैं कि कंपनियाँ कैसे सोचती हैं, तो यह किताब आपको नई दृष्टि दे सकती है।