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'बिहार में गजब का खेल': "जिसके पास नाव नहीं उसे भी मिलता हैं बाढ़ में 30,000 रूपए का मुआवजा", हकदार रहते हैं मोहताज

इस वक्त बाढ़ में 'बिहार' है! और इसमें गजब का खेल चल रहा है। लोगों का आरोप है कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में...
'बिहार में गजब का खेल':

इस वक्त बाढ़ में 'बिहार' है! और इसमें गजब का खेल चल रहा है। लोगों का आरोप है कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में जिन लोगों के पास नाव नहीं है या वो बाढ़ के दौरान इसे नहीं चलाते हैं। फिर भी उन्हें इसकी राशि मुआवजे के तौर पर मिल जाती है। जबकि कई नाविक, जो कई सालों से बाढ़ के दौरान नाव चला रहे हैं और उन्हें इसकी राशि नहीं मिल रही है। मुजफ्फरपुर के कई प्रखंड इस समय बाढ़ से ग्रसित हैं। बोचहां प्रखंड का आथर सरीखे दर्जनों गांव बहने वाली बूढ़ी गंडक नदी के उफान से प्रभावित है। इस इलाकें के करीब 3,000 से अधिक आबादी डूब चुकी है। अब लोगों ने बांध और अन्य स्थानों, सरकारी विद्यालयों में आसरा ले लिया है।

स्थानीय प्रशासन और सरकार पर आरोप लगाते हुए आउटलुक को रमेश चौधरी बताते हैं, "पिछले चार साल से हर वर्ष बाढ़ आने पर नाव चलाते हैं लेकिन सरकार की तरफ से एक चवन्नी नहीं मिला। जिसके पास नाव नहीं है। जिसका नाव घर में बंधा रहता है। उसे मुआवजे मिल रहा हैं। कई बार ब्लॉक का चक्कर काट चुके हैं। लेकिन, कोई सुनने वाला नहीं है।"

रमेश चौधरी की बातों में हामी भरते हुए 70 वर्षीय बालेश्वर मिश्र कहते हैं, "हर साल करीब 30,000 से 40,000 हजार रूपए एक नाव के नाम पर मिलता है। आप सोच सकते हैं कि जो हकदार है वो मोहताज है और जिसके पास नाव के नाम पर कुछ नहीं है, वो पैसा ले रहा है।" आगे मिश्र कहते हैं, "बिशुनपुर जगदीश पंचायत के मुखिया विनोद राम, जिनके पास नाव नहीं है,  वो भी मुआवजे की राशि प्राप्त कर रहे हैं।"

वहीं, आगे बांध पर इन लोगों के साथ खड़े उमेश ठाकुर, जो इस बार भी नाव चला रहे हैं, कहते हैं, "दरअसल में जिसका रजिस्ट्रेशन (परमाना) होता है, उसे पैसे मिलते हैं। जिसका नहीं हुआ, उसे नहीं मिलता है। आप देखें तो कल ही (14 जुलाई) नाव की गिनती की गई, जिसमें मात्र 21 नाव चल रहे हैं जबकि रजिट्रेशन 42 नावों का है। अब ये बचे नाव कागज पर चल रहे हैं और बाढ़ खत्म होने के बाद इनके खातें में पैसे आ जाएंगे। यही खेल हर साल चल रहा है।"

एक और पीड़ित शिवनारायण पासवान पूर्व में जनवितरण प्रणाली दुकान चलाने वाले डीलर रह चुके हैं। इस वक्त उन्हें निलंबित कर दिया गया है। वो भी रमेश चौधरी की बातों को दोहराते हुए और बोचहां अंचलाधिकारी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहते हैं, "यहां के अधिकारी को सिर्फ पैसा चाहिए। कुछ सालों में ही अरबों की जमीन खरीद लेते हैं और जनता बाढ़ में त्रस्त रहती है। देखिए ना, मैंने अधिकारी को 50,000 रूपए घूस के तौर पर नहीं दिए इसलिए मुझे और एक और डीलर को निलंबित कर दिया। मैंने अधिकारी से कहा कि हम सिर्फ 5,000 रूपए ही देते हैं। " आगे वो बताते हैं, "हर साल बाढ़ में गोदाम में रखे अनाज सड़ जाते हैं। लेकिन, उसकी ऑडिट समय से नहीं होती है। गरीबी की वजह से कार्रवाई के नाम में ये दुर्गती की जा रही है।"

लोगों का आरोप है कि नाव के रजिट्रेशन कराने के लिए घूस के तौर पर दो हजार रूपए मांगे जाते हैं। जो देता है उसका रजिट्रेशन कर दिया जाता है। भले ही उस व्यक्ति के पास नाव ना हो। वहीं, जिनके पास नाव है लेकिन वो पैसा नहीं देते हैं, उनके नाव का रजिट्रेशन नहीं हो पाता है। 

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