ऐसा लगता है कि सत्ताधारी दल के नेताओं को विपक्षी नेताओं की तुलना में रसूखदार नौकरशाहों की बाबूगिरी का ज्यादा डर है और वही उनके लिए प्रमुख विपक्ष बन गए हैं।
एनडीए के मंत्री, सांसद और विधायक- ये उन लोगों में शामिल हैं, जो सालों से इस बात का दावा करते आए हैं कि राज्य के प्रमुख प्रशासनिक और पुलिस पदों पर वरिष्ठ बाबुओं के कथित तौर पर मनमाने रवैये को झेलने को विवश हैं।
अब 'निरंकुश' सरकारी अधिकारियों के मनमाने रवैये के खिलाफ और कोई नहीं बल्कि बिहार के समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी हैं, वे अपने विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद से इतने खफा हैं कि उन्होंने आनन-फानन में नीतीश कैबिनेट से इस्तीफे की घोषणा कर दी। इसने बिहार में कई वर्षों से निष्क्रिय पड़े सांसदों और विधायकों सहित जनप्रतिनिधियों के बीच गहरे असंतोष का पर्दाफाश कर दिया है।
दरभंगा से आने वाले जद(यू) नेता सहनी ने नीतीश के नेतृत्व वाले मंत्रालय को छोड़ने के अपने फैसले की घोषणा करके और उनके जैसे मंत्रियों पर ध्यान न देने के लिए नौकरशाहों पर निशाना साधकर बहुत सारी समस्याएं खड़ी कर दी है। वे कहते हैं (अधिकारी), "वे बस हमारी बात नहीं सुनते, "सचिव की तो बात ही छोड़िए, चपरासी भी हमारी परवाह नहीं करते।"
सहनी का कहना है कि इसीलिए उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, “मैं छह साल से मंत्री हूं लेकिन मैं अपने कार्यकाल के दौरान यह सब झेलता रहा हूं। अगर मैं राज्य के लोगों की सेवा करने में सक्षम नहीं हूं, तो मैं एक मंत्री के रूप में मुझे प्रदान किए गए बड़े बंगले और बड़ी कारों का क्या करूंगा। साथ ही उनका कहना है, अन्य मंत्री उनसे बेहतर स्थिति में नहीं हैं। “
सहनी को हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का भरपूर समर्थन मिला है, जिनकी पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। बीजेपी के एक विधायक हरीभूषण ठाकुर का भी कहना है कि राज्य में बाबुओं ने विधायकों को चपरासी का दर्जा दे दिया है।
कहा जा रहा है कि सहनी अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी प्रसाद से नाराज हैं क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर उनकी सिफारिशों की अवहेलना कर तबादला पोस्टिंग की फाइलों को दबा दिया। मंत्री पद को छोड़ने के लिए यह तत्काल उकसावे की बात हो सकती है, लेकिन पिछले 15 वर्षों से नीतीश के कार्यकाल के दौरान विभिन्न विभागों में मंत्रियों और सचिवों के बीच मतभेदों की खबरें आती रही हैं।
इससे पहले भी कई मंत्रियों, सांसदों और विधायकों ने शीर्ष नौकरशाहों द्वारा 'घोर उपेक्षा' का आरोप लगाते हुए सीधे नीतीश से शिकायत की है। कई मौकों पर उन्होंने बाबुओं द्वारा उनके साथ किए गए 'अशिष्ट व्यवहार' पर भी खुलकर नाराजगी जताई है।
एक अत्यंत पिछड़ी जाति के नेता सहनी, हाल के दिनों में "निरंकुश" राज्य नौकरशाही पर अपनी नाराजगी व्यक्त करने वाले एकमात्र जद(यू) या सत्तारूढ़ गठबंधन नहीं हैं। खगड़िया के परबट्टा से जदयू विधायक डॉ. संजीव कुमार ने भी अपनी जान को खतरा बताते हुए जिला पुलिस अधीक्षक को तत्काल हटाने की मांग की। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखे पत्र में उन्होंने आरोप लगाया है कि खगड़िया के एसपी अमितेश कुमार अपराधियों के साथ सांठगांठ कर रहे हैं।
कई सत्तारूढ़ गठबंधन नेताओं का कहना है कि नौकरशाह और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मुख्यमंत्री के अलावा किसी को महत्व नहीं देते हैं। विपक्ष का आरोप है कि नीतीश जनप्रतिनिधियों की तुलना में नौकरशाहों को अधिक महत्व देते हैं, जिसने इन नौकरशाहों को मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की अवहेलना करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
हालांकि, नीतीश सरकार ने समय-समय पर नौकरशाहों को जनप्रतिनिधियों को 'उचित सम्मान' देने का निर्देश देते हुए अलग-अलग सर्कुलर जारी किए हैं, लेकिन उनके बीच की खाई लगातार गहरी होती जा रही है। नवंबर 2005 में नीतीश के सत्ता में आने के तुरंत बाद, सभी प्रमुख सचिवों, संभागीय आयुक्तों, जिलाधिकारियों और शीर्ष पुलिस अधिकारियों को केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा उल्लिखित मानदंडों के अनुसार सांसदों/विधायकों के साथ 'आधिकारिक कार्य नैतिकता' का पालन करने का निर्देश दिया गया था।
साल 2013 में, राज्य सरकार ने नौकरशाहों को फिर से सांसद, विधायक या एमएलसी की अगवानी करते हुए “अपनी कुर्सियों से खड़े होने” को कहा था। उन्हें यह भी निर्देश दिया गया था कि यदि उन्हें नेताओं से कोई "मिस्ड" कॉल या संदेश प्राप्त होता है, तो वे फॉलो करें। इसके अलावा, उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के सांसदों और विधायकों को सप्ताह में कम-से-कम एक बार नियुक्ति देने और उन्हें धैर्यपूर्वक सुनने के लिए कहा गया था। लेकिन सरकार द्वारा जारी किए गए इन सभी निर्देशों को बाबुओं ने एक नियमित प्रशासनिक आदेश के अलावा और कुछ नहीं समझा।