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बिहार विधानसभा चुनाव ’25 नजरियाः राजनीति में धर्म का घातक घोल

चुनाव जीतने के लिए धर्म को औजार बनाना देश के मूल विचार, आदर्शों और लोकतंत्र के विरुद्ध  अगर चुनावी...
बिहार विधानसभा चुनाव ’25 नजरियाः राजनीति में धर्म का घातक घोल

चुनाव जीतने के लिए धर्म को औजार बनाना देश के मूल विचार, आदर्शों और लोकतंत्र के विरुद्ध

 अगर चुनावी रैलियों में नीतियों और वादों के बजाय धार्मिक पहचान के नारे गूंजते हैं, तो समझिए कि हमारे संविधान की बुनियाद और प्रतिज्ञा, धर्मनिरपेक्षता खतरे में है। स्वतंत्रता सेनानी और हमारे गणतंत्र के निर्माता बंटवारे की कड़वी यादों से जानते थे कि धर्म को राजनीति में मिलाने से लोकतंत्र और आस्था दोनों ही नष्‍ट होती है। लेकिन सात दशक बाद भी चुनावी फायदे के लिए धर्म का सहारा लेने का प्रलोभन राजनैतिक नेताओं को लुभाता रहता है। इससे थोड़े वक्‍त के लिए जीत भले मिले, मगर उसके दीर्घकालिक नतीजे संगीन होते हैं। इससे समाज खंडित होता है, भाईचारा कमजोर पड़ता है और समानता पर चोट पड़ती है। यही वह नींव है जिस पर भारतीय लोकतंत्र टिका है।

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