बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और 243 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में एक बार फिर एनडीए को सरकार बनाने का जनादेश मिला है। राज्य में महागठबंधन की अगुवाई करने वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बावजूद सत्ता से दूर रह गई है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी दिख रही है कि जो सीमांचल इलाका है जहां 24 सीटे हैं जिनमें से आधी से ज़्यादा सीटों पर मुसलमानों आबादी आधी से ज्यादा है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने पांच सीटों पर जीत हासिल की है, जिसकी वजह से खेल बिगड़ गया है। सीमांचल से पांच सीटें मिलने के बाद ऐसे आरोप भी लग रहे हैं एआईएमआईएम ने बजेपी के लिए बी टीम का काम किया है।
हालांकि चुनाव परिणाम से पहले कई विश्लेषकों का मानना था कि सीमांचल के मुसलमान मतदाता ओवैसी की पार्टी के बजाए धर्मनिरपेक्ष छवि रखने वाली महागठबंधन की पार्टियों को तरजीह देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बता दें कि सीमांचल में ओवैसी की पार्टी को पांच सीटों- जोकीहाट, आमौर, बाइसी, बहादुरगंज और कोचाधमन पर जीत मिली है। अगर एनडीए की बात करें तो किशनगंज में एक भी सीट नहीं मिली है जबकि पूर्णिया, अररिया और कटिहार में क्रमश: चार-चार सीटों पर जीत हासिल की है। महागठबंधन को किशनगंज में 2, पूर्णिया में एक, अररिया में एक और कटिहार में तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा है।
दरअसल, माना जा रहा है कि इस चुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की पांच सीटों पर हुई जीत के लिहाज से हुआ है। यह जीत तेजस्वी यादव और संपूर्ण महागठबंधन के लिए करारा झटका साबित हुई है। साफ शब्दों में कहें तो ओवैसी ने पांच सीटें जीतकर तेजस्वी यादव को 11 सीटों पर नुकसान पहुंचाया है, यदि ओवैसी बिहार चुनाव में मैदान में नहीं उतरते, तो शायद तेजस्वी अपना सपना पूरा होते देखने की स्थिति में पहुंच सकते थे। ओवैसी की पार्टी ने तेजस्वी की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए मुस्लिम वोट और कुछ हद तक दलित वोट भी अपनी तरफ खींच लिए, जिसकी वजह से महागठबंधन की सीटों का आंकड़ा कम रह गया।
बता दें कि बिहार के सीमांचल इलाके में 24 सीटे हैं, जिनमें से आधी से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम आबादी अधिक है। यहीं से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर जीत हासिल की है। चुनाव नतीजे आने से पहले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि सीमांचल के मुसलमान मतदाता ओवैसी की पार्टी के बजाए धर्मनिरपेक्ष छवि रखने वाली महागठबंधन की पार्टियों को तरजीह देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब ये साफ हो गया है कि सीमांचल के मतदाताओं ने बदलाव के लिए वोट किया है।
आंकड़ों पर नजर
आंकड़ों पर नजर डालें पूर्णिया की अमौर सीट पर लंबे समय से विधायक रहे कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान को इस बार 11 फीसदी के आसपास वोट मिले, जबकि AIMIM के अख्तर-उल-ईमान 55% से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रहे। इसी तरह, बहादुरगंज सीट पर कांग्रेस के तौसीफ 10 प्रतिशत मतों से संतोष करना पड़ा और ओवैसी की पार्टी को 47 फीसदी से अधिक मत मिले। इससे स्पष्ट है कि ओवैसी ने महागठबंधन के वोटबैंक में सेंध लगाकर उसकी जीत के रास्ते में रोड़ा अटका दिया।
प्रचार में ओवैसी ने महागठबंधन को बनाया था निशाना
चुनाव प्रचार के दौरान ओवैसी ने आरेजडी-कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन पर जमकर निशाना साधा था और सीमांचल की अनदेखी का आरोप लगाया था। वहीं महागठबंधन ने ओवैसी को बीजेपी की बी टीम और वोटकटवा का आरोप लगाया था। हालांकि, कांग्रेस ने चुनाव परिणाम के बाद माना कि सीमांचल में ओवैसी ने महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया।