भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने बुधवार को कानून मंत्रालय से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई को अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति गवई 14 मई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। मौजूदा सीजेआई खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। जानकारों के मुताबिक यह नियुक्ति ऐतिहासिक मानी जा रही है, क्योंकि न्यायमूर्ति गवई दलित समुदाय से आने वाले दूसरे व्यक्ति होंगे जो इस पद को संभालेंगे। इससे पहले केवल के. जी. बालकृष्णन दलित समुदाय से CJI बने थे।
न्यायमूर्ति गवई का जन्म 24 नवंबर, 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उन्होंने 16 मार्च, 1985 को वकील के रूप में अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की। अपने करियर के शुरुआती वर्षों में वे पूर्व महाधिवक्ता और बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे स्वर्गीय राजा. एस. भोंसले के अधीन कार्यरत रहे। इसके बाद उन्होंने 1987 से 1990 के बीच बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र रूप से वकालत की। उसके बाद वह नागपुर बेंच में संवैधानिक और प्रशासनिक कानून में विशेषज्ञता हासिल करते हुए स्थायी रूप से कार्य करने लगे। उन्होंने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के लिए स्थायी वकील के रूप में सेवाएँ दीं। जिससे उन्हें सार्वजनिक प्रशासन से जुड़े मामलों की गहरी समझ मिली।
न्यायिक पदों पर उनकी पहली नियुक्ति बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश का पद पर 14 नवंबर, 2003 को हुयी। 12 नवंबर, 2005 को वे उसी उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने। अपने न्यायिक कार्यकाल के दौरान उन्होंने मुंबई की प्रिंसिपल सीट के अलावा नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की बेंचों में भी काम किया। जिससे उन्हें विविध न्यायिक पृष्ठभूमियों में कार्य करने का अनुभव प्राप्त हुआ।
24 मई, 2019 को उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। न्यायमूर्ति गवई को संवैधानिक और प्रशासनिक कानून में गहरी पकड़ रखने वाले न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है। जस्टिस बी. आर. गवई देश की न्यायिक इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं। वे उस पांच-सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे। जिसने सर्वसम्मति से केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के निर्णय को वैध ठहराया था। यह फैसला जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को समाप्त करने से जुड़ा था और संवैधानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना गया।
इसके अलावा वे उस पीठ में भी शामिल थे। जिसने राजनीतिक चंदे के लिए लागू की गई चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया। यह फैसला पारदर्शिता और चुनावी वित्त व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया। वर्ष 2016 की नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार के फैसले पर सुनाए गए 4:1 के बहुमत वाले फैसले में भी उन्होंने उसका समर्थन किया।
जस्टिस गवई आरक्षण व्यवस्था से जुड़े अहम निर्णय में सात सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे। इस पीठ ने 6:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया कि राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों के भीतर अति-पिछड़े वर्गों के लिए उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है। यह फैसला सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना गया।
जस्टिस गवई 23 नवंबर, 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।