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दलाई लामा: कौन और कैसे बनेगा उत्तराधिकारी

दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग और...
दलाई लामा: कौन और कैसे बनेगा उत्तराधिकारी

दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्‍प तक सभी के मन में एक ही सवाल है, तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक नेता के रूप में उनकी जगह कौन लेगा?

उनके संभावित उत्तराधिकारी को लेकर अटकलें दशकों से चल रही हैं, लेकिन तिब्बती नेता की बढ़ती उम्र के कारण अब यह सवाल गंभीर होता जा रहा है। आध्यात्मिक प्रतीक तथा वैश्विक हस्ती दलाई लामा कुशल रणनीतिकार भी हैं। उन्होंने निर्वासन, तिब्बत में अपने लोगों के दमन और कम्युनिस्ट चीन की सत्ता के बावजूद बड़ी सफाई से अपना रास्ता निकाला है। वे अपने अनुयायियों को एकजुट रखने और तिब्बती प्रश्न को जीवित रखने में कामयाब रहे हैं।

बीजिंग उनके बाद अपनी पसंद का आज्ञाकारी उत्तराधिकारी नियुक्त करने की फिराक में है। क्योंकि इसमें कोई शक नहीं कि यह आध्यात्मिक नेता दुर्जेय राजनैतिक शक्ति बना हुआ है। हालांकि उन्हें बेचैन तिब्‍बती युवाओं की आलोचना भी झेलनी पड़ी। युवा उनके अहिंसक मध्य मार्ग, चीन में रहने के उनके निर्णय, पूर्ण स्वतंत्रता के बजाय सांस्कृतिक-धार्मिक अधिकारों को बरकरार रखने और कुछ विवादास्‍पद कदमों की वजह से नाराजगी जाहिर कर रहे थे।

खुद को ‘‘साधारण भिक्षु’’ कहने वाले दलाई लामा हमेशा मरून रंग का चोला और कभी-कभी कलाई पर रोलेक्स घड़ी पहने दिखाई देते हैं। वे नामचीन शख्सियतों में से एक हैं। 1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। हॉलीवुड अभिनेता रिचर्ड गेरे, दो दशकों से भी ज्‍यादा समय से उनके अनुयायी रहे हैं। ईवा लोंगोरिया, लेडी गागा, शेरोन स्टोन, सेलेना गोमेज भी इसमें शामिल हैं।

वरिष्ठ नौकरशाह तथा तिब्बती मामलों पर गृह मंत्रालय के सलाहकार अमिताभ माथुर तिब्बती नेता से अपनी पहली मुलाकात के बारे में कहते हैं, ‘‘उनमें कुछ ऐसा है, जो आपको प्रभावित करता है। मुझे पेरिस में उनसे अपनी पहली मुलाकात याद है, जब उनकी आगवानी के लिए मैं हवाई अड्डे पर था। उन्‍हें देखकर मैं अवाक रह गया, एकदम अभिभूत। उनमें एक प्रकार की ऊर्जा और करुणा है, जो प्रवाहित होती है और आस-पास के सभी लोगों को प्रभावित करती है।’’

जो भी उनसे मिला, वह उनके हंसमुख स्वभाव का कायल हुए बिना नहीं रहा। वे अपने पिता की मूंछें नोचनें की याद करते हुए बताते हैं, ‘‘मुझे याद है कि एक बार मैंने उनकी मूंछें नोच ली थीं और मेरी पिटाई हुई थी।’’ उन्हें खुश बच्चों को देखकर मुंह बनाना बहुत पसंद है। लेकिन बच्चों के प्रति उनका यह प्रेम 2023 में एक बड़े विवाद का कारण बन गया था। एक वीडियो में वे एक छोटे लड़के के होंठों को चूमते हुए उससे पूछ रहे थे, ‘‘क्या तुम मेरी जीभ चूस सकते हो?’’ इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई और उनके कार्यालय ने माफी मांगी।

पुनर्जन्म

दलाई लामा ने 2011 में एक बार कहा था उनके साथ ही इस आध्‍यात्मिक संस्था का अंत हो सकता है। एक बार उन्होंने मजाक में कहा था कि कोई ‘‘गोरी महिला’’ उनकी उत्तराधिकारी हो सकती है।

उन्होंने अपनी नई किताब वॉयस फॉर द वॉयसलेस में साफ लिखा है कि उनका उत्तराधिकारी ‘स्वतंत्र दुनिया’ में पैदा होगा, जाहिर है चीन से बाहर। 30 जून को धर्मशाला में एक धार्मिक समारोह में रिकॉर्ड किए गए संदेश में कहा, अगले दलाई लामा को परंपरा के अनुसार खोजा और मान्यता दी जाएगी और यह खोज गादेन फोडरंग ट्रस्ट को सौंपी जाएगी, जिसकी स्थापना उन्होंने 2015 में की थी।

उत्तराधिकार की भू-राजनीति

अधिकांश मामलों में किसी धार्मिक नेता के उत्तराधिकार का मामला संबंधित धर्म के लोगों के अलावा बाकी दुनिया में शायद ही किसी चर्चा का विषय बनता है। लेकिन दलाई लामा के आसन्न उत्तराधिकार का मामला लगभग एक भू-राजनैतिक विवाद का केंद्र बन गया है। इससे तीन प्रमुख शक्तियों: चीन, भारत और अमेरिका में हलचल है। बीजिंग के लिए दांव बहुत ऊंचा है। उसके लिए अगले दलाई लामा पर नियंत्रण तिब्बत पर पकड़ मजबूत करने और अपने शासन को वैध बनाने की उसकी व्यापक रणनीति का हिस्सा है। चीनी विदेश कार्यालय की प्रतिक्रिया ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ऐसे व्‍यक्ति का चयन करना चाहेगी, जो कम्युनिस्ट पार्टी की लाइन पर चलेगा और तिब्बती प्रतिरोध को कमजोर करेगा।

भारत दलाई लामा और 1959 से निर्वासित तिब्बती सरकार का घर है, इसलिए खुद को एक नाजुक स्थिति में फंसा पाता है। भारत शायद तिब्बती मुद्दे को चुपचाप समर्थन देता रहेगा और चीन के साथ सीधे टकराव से बचेगा। भारत और चीन 2020 में लद्दाख में हुए टकराव के बाद संबंधों को सुधारने की दिशा में बढ़ रहे हैं।

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री तथा अरुणाचल प्रदेश से सांसद किरेन रिजिजू ने चीन के बयान के फौरन कहा कि उत्तराधिकारी का फैसला केवल दलाई लामा का कार्यालय ही करेगा। भारत के रणनीतिक हलकों में कई लोगों का मानना है कि ‘‘तिब्बत कार्ड’’ खेलने का समय आ गया है, जो चीन को प्रतीकात्मक चेतावनी होगी कि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को चीन के समर्थन के मद्देनजर नई दिल्ली भी तिब्बत में हलचल मचा सकता है।

अमेरिका-सीआइए का सवाल

अमेरिका के रुख में कोई दुविधा नहीं है। उसने दलाई लामा और तिब्बतियों के बिना किसी हस्तक्षेप के अपना आध्यात्मिक नेता चुनने के अधिकार का लगातार समर्थन किया है। वॉशिंगटन को दलाई लामा के समर्थन के जरिए चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने और बीजिंग के दबदबे को रोकने के व्यापक प्रयास में एक और मोर्चा खोलने का मौका मिलता है। सीआइए 1950 के दशक के अंत से 1970 तक तिब्बत में सक्रिय रही है। अमेरिकियों ने उसे साम्यवाद के प्रसार को रोकने के रूप में देखा। उस समय तक पूंजीवाद, साम्यवाद के बीच वैचारिक युद्ध शुरू हो चुका था।

खास मुलाकात ः 2007 में वॉशिंग्टन कैपिटल हिल में दलाई लामा के साथ राष्ट्रपति बुश

अमेरिका ने तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन को राजनयिक समर्थन देने के अलावा, तिब्बती प्रतिरोध आंदोलन को प्रशिक्षण देने, हथियार देने और वित्तपोषित करने में सक्रिय रूप से मदद की। सीआइए ने दलाई लामा के भाई ग्यालो थोंडुप से संपर्क किया, जो तिब्बतियों के एक समूह को शस्‍त्र प्रशिक्षण के लिए कोलोराडो ले गए। प्रशिक्षित समूह को पैराशूट से तिब्बत में भेजा गया, लेकिन चीनी अधिकारियों ने उन्हें तुरंत पकड़ लिया और मार डाला। निक्सन और किसिंजर की चीन यात्रा और चेयरमैन माओ त्से तुंग के साथ बैठक के बाद सीआइए ने अपने अभियान बंद कर दिए थे। चीन के साथ अमेरिका का हनीमून अब खत्म हो चुका है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्‍प सहित सभी पूर्व अमेरिकी सरकारें भी चीन के बढ़ते राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को अपनी शक्ति के लिए चुनौती मानती हैं। इसलिए, चीन अगर अगले दलाई लामा के रूप में किसी आधिकारिक उम्मीदवार को थोपने की कोशिश करता है, तो वाशिंगटन निश्चित रूप से चीन पर उंगली उठाएगा। इसलिए अगले तिब्बती आध्यात्मिक नेता का चुनाव केवल आस्था का मामला नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन का भी मामला है।

प्रारंभिक जीवन

1933 में 13वें दलाई लामा के निधन के बाद एक किसान परिवार में पैदा हुआ दो वर्षीय बालक ल्हामो थोंडुप खोजा गया और वरिष्ठ लामाओं ने उसका पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा की। 1940 की सर्दियों में ल्हामो थोंडुप को पोटाला महल ले जाया गया, जहां उन्हें आधिकारिक तौर पर तिब्बत का आध्यात्मिक नेता नियुक्त किया गया।

बीजिंग में 1950 में स्थापित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना ध्यान तिब्बत की ओर लगाया। सीपीसी ने दावा किया कि तिब्बत चीन का हिस्सा है। चीनी और तिब्बती स्थानीय सरकारों के बीच एक सत्रह-सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए और अक्टूबर 1951 में उसकी पुष्टि हुई। तिब्बतियों ने बाद में कहा कि उन्हें दबाव में इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था। चीनियों ने शुरुआत में तिब्बत को वैसा ही रहने दिया जैसा वह था, लेकिन धीरे-धीरे तिब्बत में पोटाला महल के लामाओं की कथित ‘‘सामंती दासता’’ के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया।

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों के लगभग एक दशक तक दमन के बाद, 10 मार्च 1959 को तिब्बती लोग जुटे और ल्हासा स्थित पोटाला पैलेस को घेर लिया, इस डर से कि चीन दलाई लामा को गिरफ्तार कर लेगा, दलाई लामा को नेपाल के रास्ते भारत भागना पड़ा। भारत में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनका स्वागत किया। उन्हें और उनके अनुयायियों को धर्मशाला में बसाया गया, जहां दलाई लामा ने निर्वासन में सरकार स्थापित की। तब से तिब्बती नेता निर्वासित हैं। 2011 में उन्होंने एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री को सत्ता सौंप दी और सांसारिक कार्यों से सेवानिवृत्त हो गए।

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