नागरिकता कानून में विवादास्पद संशोधनों और एनआरसी के खिलाफ अब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के 51 प्रोफेसरों ने एक हस्ताक्षर अभियान चलाकर विरोध जताया है। उन्होंने कानून को लेकर दुख और चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह सब पूरी तरह आजादी की लड़ाई और हमारे बहुलतावादी लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है। गांधी, बाबा साहब आंबेडकर, और टैगोर की धरती पर इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
बीएचयू और संबद्ध कॉलेजों के प्रोफेसरों ने लिखा है, ' साफ-साफ यह समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश है ताकि आम जन-जीवन के वास्तविक मुद्दे पीछे धकेले जा सकें।' हम सीएए और एनआरसी को लागू किए जाने को लेकर बहुत दुखी और चिंतित हैं।
नागरिकता को खारिज किया जाना दुखद
पत्र में लिखा है, 'दुनिया भर में प्रगतिशील मूल्यों के अगुवा होने का दावा करने वाला और विश्वगुरु का लक्ष्य रखने वाला हमारा आधुनिक भारत ऐसी नीति लेकर आया है, जो समाज और इतिहास की समझ से परे है। यह नीति समावेश की भारतीय दार्शनिक रवायत के खिलाफ है। यह दुखद है कि भारत के समावेश की महान परंपरा अब ऐसी जगह पहुंच चुकी है, जहां अपने ही देश में हमारे अपने ही भाइयों को नागरिकता से खारिज किया जा रहा है।
दूरगामी परिणामों पर सोचने की अपील
उन्होंने सरकार से इस कानून के दूरगामी परिणामों के बारे में सोचने की अपील की है। साथ ही उम्मीद जताई है कि पार्टी हित के ऊपर राष्ट्रहित का ख्याल रखा जाएगा। हम विरोध करने वालों से भी अपील करते हैं कि वे शांतिपूर्ण तरीके से विरोध दर्ज करें। हम जामिया मिलिया इस्लामिया, बीएचयू जैसे विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों के दमन की भी निंदा करते हैं।
बीएचयू में पिछले दिनों नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आवाज उठाई गई थी। इसके बाद कुछ छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया था। इन छात्रों के समर्थन में रजत नामक एक छात्र ने दीक्षांत समारोह में अपनी डिग्री लेने से इनकार कर दिया था।