Advertisement

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति कोविंद का संदेश, गरीबी के अभिशाप को मिटाना है

69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र के नाम संबोधन दिया....
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति कोविंद का संदेश, गरीबी के अभिशाप को मिटाना है

69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र के नाम संबोधन दिया. राष्ट्र के नाम संदेश में सबसे पहले देश वासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी, साथ ही देश में योगदान देने वालों को नमन किया।

उन्होंने कहा, अपने देश के, उनहत्तरवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई! यह राष्ट्र के प्रति सम्मान की भावना के साथ, हमारी सम्प्रभुता का उत्सव मनाने का भी अवसर है। यह, उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के महान प्रयासों और बलिदान को, आभार के साथ याद करने का दिन है, जिन्होंने अपना खून-पसीना एक करके, हमें आज़ादी दिलाई, और हमारे गणतंत्र का निर्माण किया। आज का दिन हमारे लोकतान्त्रिक मूल्यों को, नमन करने का भी दिन है।

हर वर्ग हमारे देश के लिए नए सपने देख रहा है

राष्ट्रपति ने कहा, देश के लोगों से ही लोकतंत्र बनता है। हमारे नागरिक, केवल गणतंत्र के निर्माता और संरक्षक ही नहीं हैं, बल्कि वे ही इसके आधार स्तम्भ हैं। हमारा हर नागरिक, हमारे लोकतन्त्र को शक्ति देता है - हर एक सैनिक, जो हमारे देश की रक्षा करता है; हर-एक किसान, जो हमारे देशवासियों का पेट भरता है; हर-एक पुलिस और अर्ध-सैनिक बल, जो हमारे देश को सुरक्षित रखता है; हर-एक मां, जो देशवासियों का पालन-पोषण करती है; हर-एक डॉक्टर, जो देशवासियों का उपचार करता है; हर-एक नर्स, जो देशवासियों की सेवा करती है; हर-एक स्वच्छता कर्मचारी, जो हमारे देश को साफ़-सुथरा और स्वच्छ रखता है; हर-एक अध्यापक, जो हमारे देश को शिक्षित बनाता है; हर एक वैज्ञानिक, जो हमारे देश के लिए इनोवेशन करता है; हर-एक मिसाइल टेक्नोलॉजिस्ट, जो हमारे देश की क्षमता को एक नयी ऊंचाई पर ले जाता है; हर-एक जागरूक आदिवासी, जो हमारे देश के पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखता है; हर-एक इंजीनियर, जो हमारे देश को एक नया स्वरुप देता है; हर-एक कामगार, जो हमारे देश का निर्माण करता है; हमारे वरिष्ठ नागरिक, जो गर्व के साथ यह देखते हैं कि वे अपने लोकतंत्र को कितना आगे ले आये हैं; हर-एक युवा, जिसमे हमारे देश की ऊर्जा, आशाएं, और भविष्य समाए हुए हैं; और हर-एक प्यारा बच्चा, जो हमारे देश के लिए नए सपने देख रहा है।

ऐसे और भी बहुत सारे लोग हैं, जिनका मैं उल्लेख नहीं कर पाया, वे भी  अलग-अलग तरीकों से, देश को अपना योगदान दे रहे हैं। आप सभी को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं!

संविधान ने सभी नागरिकों के बीच बराबरी का आदर्श स्थापित किया

उन्होंने कहा, 26 जनवरी, 1950 को, भारत एक गणतंत्र के रूप में स्थापित हुआ। हमारे राष्ट्र निर्माण की यात्रा में, यह दूसरा महत्त्वपूर्ण पड़ाव था। हमें आजादी हासिल किये हुए, लगभग ढाई साल ही बीते थे। लेकिन संविधान का निर्माण करने, उसे लागू करने और भारत के गणराज्य की स्थापना करने के साथ ही, हमने वास्तव में, ‘सभी नागरिकों के बीच बराबरी’ का आदर्श स्थापित किया, चाहे हम किसी भी धर्म, क्षेत्र या समुदाय के क्यों न हों। समता या बराबरी के इस आदर्श ने, आज़ादी के साथ प्राप्त हुए स्वतंत्रता के आदर्श को पूर्णता प्रदान की। एक तीसरा आदर्श भी था, जो हमारे लोकतंत्र के निर्माण के सामूहिक प्रयासों को, और हमारे सपनों के भारत को, सार्थक बनाता था। यह था, बंधुता या भाईचारे का आदर्श! मिलजुलकर रहने और काम करने का आदर्श!

जैसा कि हम जानते हैं, हमारी आजादी, हमें एक कठिन संघर्ष के बाद मिली थी। इस संग्राम में, लाखों लोगों ने हिस्सा लिया था। उन स्वतंत्रता सेनानियों ने, देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। बहुतों ने तो अपने प्राणों की आहुति दे दी। आज़ादी के सपने से पूरी तरह प्रेरित हो कर, महात्मा गाँधी के नेतृत्व में, ये महान सेनानी, मात्र राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करके संतुष्ट हो सकते थे। उनका लक्ष्य उन्हें प्राप्त हो चुका था। लेकिन, उन्होंने पल भर भी आराम नहीं किया। वे रुके नहीं, बल्कि दुगने उत्साह के साथ, संविधान बनाने के महत्त्वपूर्ण कार्य में, पूरी निष्ठा के साथ जुट गए। उनकी नजर में, हमारा संविधान, हमारे नए राष्ट्र के लिए केवल एक बुनियादी कानून ही नहीं था, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक दस्तावेज भी था।

राष्ट्र निर्माण एक अभियान

राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, हमारे संविधान निर्माता बहुत दूरदर्शी थे। वे ‘कानून का शासन’ और ‘कानून द्वारा शासन’ के महत्त्व और गरिमा को भली - भांति समझते थे। वे हमारे राष्ट्रीय जीवन के एक अहम दौर के प्रतिनिधि थे। हम सौभाग्यशाली हैं कि उस दौर ने, हमें संविधान और गणतंत्र के रूप में, अनमोल विरासत दी है।

जिस शुरुआती दौर में, हमारे संविधान का स्वरुप तय किया गया, उस दौर से मिली हुई सीख, हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है। हम जो भी कार्य करें, जहां भी करें, और हमारे जो भी लक्ष्य हों – उस दौर की  सीख, हर क्षेत्र में हमारे लिए उपयोगी है। वह हमारे राष्ट्र निर्माण के अभियान को प्रेरणा देती है।

राष्ट्र निर्माण एक भव्य और विशाल अभियान है। साथ ही साथ, यह लाखों ही नहीं, बल्कि करोड़ों छोटे - बड़े अभियानों को जोड़कर बना, एक सम्पूर्ण अभियान है। ये सभी छोटे - बड़े अभियान समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।

नागरिकों के चरित्र का निर्माण करना, परिवारों द्वारा अच्छे संस्कारों की नींव डालना, गली – मुहल्ले - गांव और शहर में भाईचारे का माहौल बनाना, छोटे-बड़े कारोबारों की शुरुआत करना, संस्थाओं को सिद्धांतों और मूल्यों के आधार पर चलाना, और समाज से अंध-विश्वास तथा असमानता को मिटाना, ये सभी राष्ट्र-निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान हैं।

जहां बेटियों को, बेटों की ही तरह, शिक्षा, स्वास्थ्य और आगे बढ़ने की सुविधाएं दी जाती हैं, ऐसे समान अवसरों वाले परिवार और समाज  ही, एक खुशहाल राष्ट्र का निर्माण करते हैं। महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए, सरकार कानून लागू कर सकती है और नीतियां भी बना सकती है - लेकिन ऐसे कानून और नीतियां तभी कारगर होंगे जब परिवार और समाज, हमारी बेटियों की आवाज़ को सुनेंगे। हमें  परिवर्तन की इस पुकार को सुनना ही होगा।

युवा ही एक प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करते हैं

उन्होंने कहा, आत्म-विश्वास से भरे हुए, और आगे की सोच रखने वाले युवा ही, एक आत्म-विश्वास-पूर्ण और प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करते हैं। हमारे 60 प्रतिशत से अधिक देशवासी, 35 वर्ष से कम उम्र के हैं। इन पर ही हमारी उम्मीदों का दारोमदार है। हमने साक्षरता को काफी बढ़ाया है; अब हमें शिक्षा और ज्ञान के दायरे और बढ़ाने होंगे। शिक्षा-प्रणाली में सुधार करना, उसे ऊंचा उठाना, और उसके दायरे को बढ़ाना – तथा इक्कीसवीं सदी की डिजिटल अर्थव्यवस्था, जीनोमिक्स, रोबोटिक्स और ऑटोमेशन की चुनौतियों के लिए समर्थ बनाना - हमारा उद्देश्य होना चाहिए।

हमने अपने युवाओं को शिक्षा और कौशल प्रदान करने के लिए, बहुत से कार्यक्रम शुरू किए हैं, ताकि वे आज की दुनियां में, विश्व स्तर पर, अपनी जगह बना सकें। इन कार्यक्रमों के लिए व्यापक संसाधन मुहैया कराए गए हैं। अपार संभावनाओं से भरे, हमारे प्रतिभावान युवाओं को, इन अवसरों का भरपूर लाभ उठाना चाहिए।

इनोवेटिव बच्चे ही एक इनोवेटिव राष्ट्र का निर्माण करते हैं। इस लक्ष्य को पाने के लिए, हमें एक जुनून के साथ, जुट जाना चाहिए। हमारी शिक्षा- प्रणाली में, खासकर स्कूल में, रटकर याद करने और सुनाने के बजाय, बच्चों को सोचने और तरह-तरह के प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हमने खाद्यान्न उत्पादन में काफी बढ़ोतरी की है, लेकिन अभी भी, कुपोषण को दूर करने और प्रत्येक बच्चे की थाली में जरुरी पोषक तत्व उपलब्ध कराने की चुनौती बनी हुई है। यह हमारे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए, और हमारे देश के भविष्य के लिए, बहुत ही महत्वपूर्ण है। 

सजग नागरिकों से सजग राष्ट्र का निर्माण

राष्ट्रपति ने कहा, मुहल्ले-गांव और शहर के स्तर पर सजग रहने वाले नागरिकों से ही, एक सजग राष्ट्र का निर्माण होता है। हम अपने पड़ोसी के निजी मामलों और अधिकारों का सम्मान करते हैं। त्योहार मनाते हुए, विरोध प्रदर्शन करते हुए या किसी और अवसर पर, हम अपने पड़ोसी की सुविधा का ध्यान रखते हैं। किसी दूसरे नागरिक की गरिमा, और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में भी, हम असहमत हो सकते हैं। ऐसे उदारतापूर्ण व्यवहार को ही, भाईचारा कहते हैं।

नि:स्वार्थ भावना वाले नागरिकों और समाज से ही, एक नि:स्वार्थ भावना वाले राष्ट्र का निर्माण होता है। स्वयंसेवी समूह बेसहारा लोगों और बच्चों, और यहां तक कि बेघर पशुओं की भी, देखभाल करते हैं; समुद्री तटों जैसे सार्वजनिक स्थानों और नदियों को साफ रखते हैं। यहां हम किसी अपरिचित व्यक्ति की मदद करने के लिए, रक्तदान या अंगदान करने को तैयार रहते हैं। यहां आदर्शों से प्रेरित नागरिक, दूर-दराज के इलाकों में जाकर, बच्चों को, लगन के साथ, पढ़ाते हैं, और शिक्षा के माध्यम से उन बच्चों की जिंदगी संवार देते हैं। वे किसी के कहने पर नहीं, बल्कि अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर, ऐसा करते हैं।

ऐसे राष्ट्र में, संपन्न परिवार ,अपनी इच्छा से, अपनी सुविधा का त्याग कर देता है - आज यह सब्सिडी वाली एलपीजी हो, या कल कोई और सुविधा भी हो – ताकि इसका लाभ किसी ज्यादा जरूरतमंद परिवार को मिल सके। आइए, हम सभी अपनी तमाम सुविधाओं को एक साथ जोड़कर देखें। और इसके बाद ,हम अपने ही जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले, उन वंचित देशवासियों की ओर देखें, जो आज भी वहीं खड़े हैं, जहां से कभी हम सबने अपनी यात्रा शुरू की थी। हम सभी अपने-अपने मन में झांके, और खुद से यह सवाल करें ‘क्या उसकी जरूरत, मेरी जरूरत से ज्यादा बड़ी है? परोपकार करने और दान देने की भावना, हमारी युगों पुरानी संस्कृति का हिस्सा है। आइए, हम सब इस भावना को, और भी मजबूत बनाएं।

मेलजोल और सौहार्द से भरे विश्व के निर्माण में भारत को योगदान देना है

सांस्कृतिक परंपराओं, कलाओं तथा हस्तशिल्प को संरक्षण और बढ़ावा देने के सामूहिक संकल्प से, एक जीवंत संस्कृति वाले राष्ट्र का निर्माण होता है। चाहे लोक रंगमंच के कलाकार हों, पारंपरिक संगीतकार हों, बुनकर और हथकरघा कारीगर हों, या फिर वे परिवार हों जो सदियों से, लकड़ी के बेहतरीन खिलौने, या रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले बांस के सामान, बनाते आ रहे हैं, इन सबके हुनर को जिन्दा रखने के लिए, तथा उन्हें और आगे बढाने के लिए, प्रभावी प्रयास करने होंगे।

अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से, एक अनुशासित और नैतिक राष्ट्र का निर्माण होता है। ऐसी संस्थाएं, अन्य संस्थाओं के साथ ,अपने भाई-चारे का सम्मान करती हैं। उत्कृष्टता के साथ कोई समझौता किए बिना, वे अपने कामकाज में ईमानदारी, अनुशासन और मर्यादा बनाए रखती हैं। ऐसी संस्थाओं में, वहां काम करने वाले लोगों की नहीं, बल्कि संस्था की महत्ता सबसे ऊपर होती है। इन संस्थाओं के सदस्य, देशवासियों के ट्रस्टी के रूप में, अपने पद की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं।

भारत के राष्ट्र निर्माण के अभियान का एक अहम उद्देश्य, एक बेहतर विश्व के निर्माण में योगदान देना भी है – ऐसा विश्व, जो मेलजोल और आपसी सौहार्द से भरा हो तथा - जिसका अपने साथ, और प्रकृति के साथ, शांतिपूर्ण सम्बन्ध हो। यही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सही अर्थ है। आज के तनाव भरे और आतंकवाद से प्रभावित युग में, यह आदर्श भले ही व्यावहारिक न लग रहा हो, परंतु यही आदर्श हजारों वर्षों से हम सबको प्रेरणा देता आया है। इसकी झलक हमारे संविधान के मूल्यों में भी देखी जा सकती है। हमारा समाज, इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है। और यही आदर्श, हम विश्व समुदाय के सामने भी प्रस्तुत करते हैं।

यही भावना, हम प्रवासी भारतीय परिवारों के विषय में भी अपनाते हैं। जब विदेशों में रहने वाले भारतीय, किन्ही परेशानियों से घिर जाते हैं तब, स्वाभाविक रूप से, हम उनकी मदद करने के लिए आगे आते हैं।

मैंने अभी-अभी, स्वतंत्रता प्राप्ति और पहले गणतंत्र दिवस के बीच के महान दौर का उल्लेख किया। यह दौर – पूरी लगन, संकल्प और प्रतिबद्धता के साथ, देश को संवारने, और समाज की विसंगतियों को दूर करने के लिए किए गए - निरंतर प्रयासों का दौर था। आज फिर, हम एक ऐसे ही मुकाम पर खड़े हैं। एक राष्ट्र के रूप में हमने बहुत कुछ हासिल किया है, परंतु अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। हमारे लोकतंत्र का निर्माण करने वाली पीढ़ी ने, जिस भावना के साथ काम किया था, आज फिर उसी भावना के साथ काम करने की जरुरत है। 

स्वतंत्रता सेनानियों के रास्ते पर चलना उद्देश्य

वर्ष 2020, में हमारे गणतन्त्र को सत्तर वर्ष हो जाएंगे। 2022 में, हम अपनी स्वतंत्रता की पचहत्तरवीं वर्षगांठ मनाएंगे। निकट भविष्य में आने वाले ये बहुत ही महत्वपूर्ण अवसर हैं। स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान के निर्माताओं द्वारा दिखाए रास्तों पर चलते हुए, हमें एक बेहतर भारत के निर्माण के लिए प्रयास करना है – एक ऐसे भारत के निर्माण के लिए, जो अपनी योग्यता के अनुरूप, इक्कीसवीं सदी में, विकास की नई ऊंचाइयों पर खड़ा होगा और जहां हर-एक नागरिक अपनी क्षमता का भरपूर उपयोग कर सकेगा।

जिस तरह एक मां, अपने बच्चों का पेट भरने के लिए, हमेशा तत्पर रहती है, उसी तरह, इस देश के 130 करोड़ से ज्यादा लोगों का पेट भरने के लिए, हमारे किसान, दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं। हमेँ अपने किसान भाई-बहनों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए, और ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है।

गरीबी के अभिशाप को मिटाना है

हमारी सशस्त्र सेनाओं तथा पुलिस और अर्धसैनिक बलों के बहादुर जवानों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप साधन एवं उपकरण मिलते रहें, इसके लिए, हमें अपने सामरिक निर्माण क्षेत्र को निरंतर आधुनिक और मजबूत बनाए रखना होगा।

हम ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इन लक्ष्यों के तहत हम गरीबी को समाप्त करने, सभी के लिए उत्तम शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने और हमारी बेटियों को हर-एक क्षेत्र में समान अवसर दिलाने के लिए वचनबद्ध हैं।

हमें स्वच्छ, हरित और सक्षम ऊर्जा, कम दरों पर, लोगों तक पहुंचानी है। हमें ‘सभी के लिए आवास’ के लक्ष्य को ,उन करोड़ों परिवारों तक पहुंचाना है, जिन्हें आज भी, अपने घर का इंतजार है। हमें एक ऐसे आधुनिक भारत की रचना करनी है, जो प्रतिभावान लोगों का, और उनकी प्रतिभा के उपयोग के लिए असीम अवसरों वाला देश हो।

आज भी, हमारे बहुत से देशवासी, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। वे गरीबी में, किसी तरह, अपनी जिन्दगी गुजार रहे हैं। हमारे इन भाइयों और बहनों को सम्मान देते हुए उनकी बुनियादी जरूरतों को पर्याप्त मात्रा में पूरा करना, और विकास के अवसर निरंतर प्रदान करते रहना, हमारे लोकतन्त्र का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है। उनके जीवन को खुशहाल बनाना ही, हमारे लोकतन्त्र की सफलता की कसौटी है। गरीबी के अभिशाप को, कम-से-कम समय में, जड़ से मिटा देना हमारा पुनीत कर्तव्य है। यह कर्तव्य पूरा करके ही, हम संतोष का अनुभव कर सकते हैं।

हम सबका सपना है कि भारत एक विकसित देश बने। उस सपने को पूरा करने के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं। हमारे युवा - अपनी कल्पना, आकांक्षा और आदर्शों के बल पर – देश को आगे ले जाएंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे देशवासी अपनी कल्पना, आकांक्षा और आदर्शों के लिए अपने लोकतांत्रिक मूल्यों ,और भारत के प्राचीन आदर्शों से, हमेशा प्रेरणा लेते रहेंगे।

मैं एक बार फिर, आप सभी को, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं, और आप सभी के उज्ज्वल और सुखद भविष्य की मंगल-कामना करता हूं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad