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आरएसएस, विहिप की ‘हुंकार सभा’ के चलते अयोध्या बनी छावनी

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर माहौल फिर गरमाया हुआ है। यहां 25 नवंबर को आरएसएस और विश्व हिंदू...
आरएसएस, विहिप की ‘हुंकार सभा’ के चलते अयोध्या बनी छावनी

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर माहौल फिर गरमाया हुआ है। यहां 25 नवंबर को आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में जुटेंगे और राममंदिर के लिए मार्च करेंगे। हिंदू संगठनों के द्वारा इसे 'हुंकार सभा' नाम दिया गया है। इसके चलते अयोध्या में खासी संख्या में सुरक्षा बल की तैनाती की गई है और इसे छावनी में तब्दील कर दिया गया है।

बढ़ते तनाव को देखते हुए अयोध्या में शहर की सुरक्षा जिम्मेदारी एडीजीपी  स्तर के पुलिस अधिकारी को सौंपी गई है। इसके अलावा एक डीआईजी, तीन एसएसपी, 10 एएसपी, 21डीएसपी, 160 इंस्पेक्टर, 700 कॉन्सटेबल, 42 पीएसी कंपनियां, पांच आरएएफ कंपनियां, एटीएस कमांडो की तैनाती की गई है तथा हालात पर ड्रोन कैमरों से भी नजर रखी जाएगी। 

एडीजी, लॉ एंड ऑर्डर आनंद कुमार ने कहा कि यूपी सरकार और जिला प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं। हमारा मकसद है कार्यक्रम शांतिपूर्ण हो और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का उल्लंघन न हो। 

रैली पर रोक लगाने से कोर्ट का इनकार

आरएसएस, वीएचपी की हुंकार सभा अयोध्या के अलावा बेंगलुरु में भी आयोजित की गई है। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने गुरूवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हुंकार रैली पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। आरएसएस 25 नवंबर को इस रैली का आयोजन कर रहा है। इसमें अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने के लिए समर्थन इकट्ठा किया जाएगा।

1990 जैसे हालात बनने के आसार

ऐसा माना जा रहा है कि राम मंदिर के निर्माण के लिए इतनी बड़ी संख्या में मार्च 1990 के जैसे आंदोलन का रुप लेगी, ताकि मंदिर निर्माण की दिशा में कदम उठाया जा सके और सरकार पर दबाव बनाया जा सके। मंदिर निर्माण आंदोलन को मंगलवार को तब बल मिला जब बाबरी मस्जिद मामले के पक्षकार इकबाल अंसारी ने कोर्ट में कहा कि सरकार अगर राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश  लाती है तो उन्हें कोई एतराज नहीं है। हालाकि बाद में अपने बयान पर यू टर्न लेते हुए उन्होंने कहा कि वह मामले में कोर्ट के फैसले को ही मानेंगे।

29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले की सुनवाई टालकर इसे अगले साल जनवरी के सुनवाई तय कर दी थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

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