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भीमा कोरेगांव मामले में पुणे की कोर्ट ने की 6 आरोपियों की जमानत खारिज

भीमा कोरेगांव मामले में पुणे की सेशन कोर्ट ने बुधवार को 6 नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की जमानत खारिज कर...
भीमा कोरेगांव मामले में पुणे की कोर्ट ने की 6 आरोपियों की जमानत खारिज

भीमा कोरेगांव मामले में पुणे की सेशन कोर्ट ने बुधवार को 6 नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की जमानत खारिज कर दी। इससे पहले तीन आरोपियों की जमानत मुंबई हाईकोर्ट खारिज कर चुका है। 

जिन आरोपियों की जमानत खारिज की गई, उनमें रोना विल्सन, शोमा सेन, सुरेंद्र गाडगिल, महेश राउत, वरवर राव और सुधीर धवले हैं। कोरेगांव-भीमा लड़ाई के 200 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित एक सभा के दौरान माओवादियों से संपर्क रखने और दंगा भड़काने के आरोप में वरवर राव, सुधा भारद्वाज व अन्य को गिरफ्तार किया गया था। जिसके बाद पुलिस ने पूछताछ के लिए इन्हें रिमांड पर लेने की कोर्ट में गुहार लगाई थी। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना असहमत आवाजों के लोकतंत्र नहीं चल सकता।

मुंबई हाई कोर्ट से हो चुकी है जमानत खारिज

वहीं, मुंबई हाई कोर्ट ने मामले में तीन अन्य आरोपियों सुधा भारद्वाज, वर्नन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा को जमानत देने से इनकार कर दिया था। मामले में आरोपी गौतम नवलखा को सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से चार और हफ्ते की अंतरिम सुरक्षा दी है। इससेप पहले सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से गौतम नवलखा के खिलाफ सुबूत देने को कहा था और उन्हें 15 अक्टूबर तक गिरफ्तारी से राहत दी थी।

पिछले साल पहली जनवरी  को भीमा कोरेगांव में आयोजित सभा के दौरान हिंसा भड़क उठी थी। इस हिंसा के दौरान बड़े पैमाने पर आगजनी की घटनाएं भी हुई थी। इसमें एक की मौत हो गई थी और दस पुलिसकर्मियों समेत कई घायल हो गए थे।

ये है भीमा कोरेगांव मामला

महाराष्ट्र के पुणे जिले में भीम-कोरेगांव जैसे छोटे से गांव में 200 साल पहले 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कपंनी की सेना ने पेशवा की बड़ी सेना को हरा दिया था जिसका नेतृत्व बाजीराव द्वितीय कर रहे थे। दलितों के मुताबिक, इस लड़ाई में दलितों के खिलाफ अत्याचार करने वाले पेशवा की हार हुई थी। इस उपलक्ष्य में हर साल जब एक जनवरी को दुनिया भर में नए साल का जश्न मनाया जाता है उस समय दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगांव में जमा होते है और वहां 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं।

2018 इस युद्ध का 200वां साल था। इस बार यहां दलित और बहुजन समुदाय के लोगों ने एल्गार परिषद के नाम से शनिवार वाड़ा में कई जनसभाएं की। इसमें कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाषण भी दिए थे और इसी दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी।

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