मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता में न्यायालय की एक पीठ ने सरकार से इस प्रश्न का उत्तर भी मांगा है कि क्या वसूली न्यायाधिकरण इस तरह के मामलों पर एक निश्चित समय सीमा में कानून के तहत निर्णय करने की पर्याप्त क्षमता रखते हैं या नहीं?
इससे पहले न्यायालय ने कहा था कि गैर-निष्पादित आस्तियों का आंकड़ा कई लाख करोड़ रुपये का है और इसकी वसूली की प्रक्रिया तर्कसंगत नहीं है। इसके अलावा बैंकों और वित्तीय संस्थानों के ऋण की वसूली के लिए बनाई गई डीआरटी और ऋण वसूली अपलीय न्यायाधिकरण (डीआरएटी) की व्यवस्था खराब हालत में है।
न्यायालय ने पहले कहा था कि गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) का आंकड़ा कई लाख करोड़ रुपये का है और इसकी वसूली नहीं हो पाने के कारणों में से एक वसूली की प्रक्रिया का तर्कसंगत नहीं होना है। इससे पहले न्यायालय ने जनहित याचिका में उठाए गए एक मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। यह डीआरटी और डीआरएटी में ढांचागत सुविधाएं, श्रमबल एवं अन्य सुविधाओं में कमी से संबंधित था। गौरतलब है कि डीआरटी और डीआरएटी बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के फंसे हुए कर्ज की वसूली याचिकाओं का निपटारा करते हैं।
न्यायालय सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। यह याचिका वर्ष 2003 में दाखिल की गई थी जिसमें सरकारी कंपनी आवास एवं शहरी विकास निगम (हडको) द्वारा कुछ कंपनियों को बांटे गए ऋण का मुद्दा उठाया गया है।
याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2015 में करीब 40,000 करोड़ रुपये के कारपोरेट ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया गया। (एजेंसी)