“ऐसे संगीन साइबर अपराध के लिए आइटी कानून बेमानी, नए कानून में गैर-जमानती धाराओं और कड़ी सजा के प्रावधान होना चाहिए”
तकरीबन एक दशक पुराना है सेक्सटॉर्शन का फिनॉमिना। इसमें आपका सेक्स संबंधी कॉन्टेंट आपकी इजाजत के बगैर रिकॉर्ड कर लिया जाता है और उसके बाद आपसे पैसों की मांग की जाती है। आपको धमकी दी जाती है कि आप फलां रकम दें वरना आपकी फोटो/वीडियो वायरल कर दी जाएगी। इसमें डर दिखाकर उगाही की जाती है। सेक्सटॉर्शन और ब्लैकमेलिंग में काफी समानताएं हैं लेकिन ब्लैकमेलिंग सेक्सटॉर्शन ही नहीं, कई तरह के मामलों में की जा सकती है। आज सेक्सटॉर्शन बहुत बड़ी समस्या हो गई है। इसका कारण है कि आज की जनरेशन न केवल ऑनलाइन वीडियो कॉल के माध्यम से जिस्मानी संबंध बनाती है, बल्कि उसे किसी न किसी डिवाइस में रिकॉर्ड भी करती है। इससे आप और आसानी से शिकार हो जाते हैं। अगर मैं बड़े शहरों की बात करूं तो 25-30 प्रतिशत लोग सेक्सटॉर्शन के शिकार हो जाते हैं, लेकिन टियर-3 शहरों में यह आंकड़ा 35 से 40 प्रतिशत तक पहुंच जाता जाता है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 10 से 15 प्रतिशत है।
भारत में कानून सेक्सटॉर्शन को लेकर पूरी तरह से सक्षम नहीं है। सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा-67 को ही सेक्सटॉर्शन पर लागू किया जाता है जो नाकाफी है। सेक्सटॉर्शन में आपसे उगाही, आपको मानसिक और सामाजिक आघात पहुंचाया जाता है और इस डर से कुछ आत्महत्या भी कर लेते हैं। यह मामला अगर कोर्ट में जाए तब भी अधिक कामयाबी लोगों को नहीं मिलेगी क्योंकि कोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को दिखाना होता है जो बहुत बड़ी चुनौती है। यही नहीं, ऐसे मामलों में पुलिस का रवैया भी बहुत ही ढीला होता है। ज्यादातर मामलों में पुलिस केस दर्ज नहीं करती है और करती भी है तो कमजोर धारा लगाती है। सेक्सटॉर्शन के शिकार लोगों को सबसे पहले उन लोगों से संपर्क तोड़ देना चाहिए। आप इसकी चिंता बिल्कुल छोड़ दीजिए कि आपकी आपत्तिजनक सामग्री पब्लिक हो जाएगी। आप यह मान के चलिए कि वह पब्लिक हो गई है, जिसकी कुछ दिनों तक चर्चा होगी और फिर वह मामला दब जाएगा, हालांकि यह इतना आसान नहीं है इसलिए इन मामलों में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। लेकिन आपको ऐसे कदम उठाने से बचना चाहिए। मुझे इस तरह की दो घटनाएं याद आ रही हैं जिसमें दो अलग-अलग पीडि़तों ने आत्महत्या कर ली। एक मामले में मध्यमवर्गीय परिवार की एक लड़की ने सुसाइड कर लिया। लड़की के पास फिरौती देने के लिए पैसा नहीं था। उसको लगा कि उसका वीडियो वायरल होने के कारण उसके माता-पिता की समाज में नाक कट जाएगी, जिसके कारण उसने सुसाइड कर लिया। दूसरी घटना में पीडि़त बहुत ज्यादा डिप्रेशन में आ गई थी और उसने सुसाइड कर लिया। इस तरह के ज्यादातर मामलों में पीडि़त लड़कियां ही होती हैं क्योंकि लड़कियां बहुत अधिक संवेदनशील होती हैं। लड़कों को उतना फर्क नहीं पड़ता है। इस तरह के मामले में सुसाइड का एक बड़ा कारण समाज का दबाव भी होता है।
भारतीय कानूनों में ढेर सारे बदलाव और सुधारों की आवयश्कता है। साथ ही, नए कानून बनाने की आवश्यकता है। हमें यह पहचानने की आवश्यता है कि आइटी एक्ट सेक्सटॉर्शन के मामले में बिल्कुल ही बेकार है। इसलिए सरकार महिलाओं और बच्चों को ध्यान में रखकर नया कानून बनाए, जो खासकर सेक्सटॉर्शन जैसे साइबर क्राइम के लिए हो। इसे गैर-जमानती अपराध भी बनाया जाना चाहिए और कम से कम 5 से 7 साल की सजा का प्रावधान होना चाहिए। ऑनलाइन सर्विस प्रोवाइडर जैसे वॉट्सएेप, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम आदि के लिए एक पैरामीटर बनाने की आवश्यकता है जिसमें एक्सटॉर्शन को बढ़ावा न मिले और उन पर निगरानी रखी जा सके। अमेरिका में ऐसा प्रावधान है जहां महिलाओं और बच्चों को लेकर कानून हैं। यूरोपीय देशों में भी इसके लिए कानून सशक्त है, लेकिन एशिया में ऐसे मामलों को तवज्जो नहीं दी जाती है। ऐसे मामलों को राजनीतिक रूप से भी उठाया जाना चाहिए और लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। अब तो बच्चों के हाथ में भी मोबाइल है, इसलिए बच्चों को पहली कक्षा से साइबर क्राइम की शिक्षा देने की जरूरत है। यही नहीं, हम काउंसलिंग पर जितना जोर देंगे उतनी ही मजबूती से इससे लड़ पाएंगे।
(लेखक इंटरनेशनल कमीशन ऑन साइबर सिक्योरिटी लॉ के संस्थापक तथा अध्यक्ष हैं। राजीव नयन चतुर्वेदी से बातचीत पर आधारित)