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मीडिया में 'दलित' शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

मीडिया में ‘दलित’ शब्द का प्रयोग करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने रोक लगाने के लिए...
मीडिया में 'दलित' शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

मीडिया में ‘दलित’ शब्द का प्रयोग करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं। पीटीआई के मुताबिक, भीमशक्ति सेना के विदर्भ महासचिव पंकज मेश्राम की जनहित याचिका पर बुधवार को अदालत ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और सूचना प्रसारण मंत्रालय को यह निर्देश दिए। न्यायमूर्ति भूषण धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति जेड. ए. हक की खंडपीठ में इस मामले पर सुनवाई हुई।

दायर की गई थी जनहित याचिका 

बता दें दलित और हरिजन शब्द के प्रयोग पर एक याचिका में आपत्ति जताई गई थी। 'दलित’ शब्द असंवैधानिक तथा आपत्तिजनक है। इसके प्रयोग से नागरिकों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है, इसलिए इस शब्द के प्रयोग पर रोक लगाकर सरकारी रिकार्ड से हटाने व प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया में इस्तेमाल रोकने के संबंध में जनहित याचिका दायर की गई थी। न्यायालय ने दलित शब्द प्रयोग पर रोक लगाने का आदेश जारी कर याचिका का निपटारा किया। सरकारी रिकार्ड से चार सप्ताह में ‘दलित’ शब्द हटाने का निर्णय लेने का सरकार की ओर से अदालत को विश्वास दिया गया। मेश्राम की आेर से एड. शैलेश नारनवरे ने अदालत में पक्ष रखा।

सरकार पहले ही जारी कर चुकी है अधिसूचना 

उल्लेखनीय है कि ‘दलित’ तथा ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग सरकारी दस्तावेजों में नहीं किया जाएगा, इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर दी गई है। 15 मार्च 2018 को सामाजिक न्याय विभाग के संचालक अरविंद कुमार सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को दलित शब्द प्रयोग नहीं करने के निर्देश दे चुके हैं। ‘दलित’ अथवा ‘हरिजन’ शब्द की जगह अनुसूचित जाति का प्रयोग करने के लिए कहा गया है। केंद्र से अधिसूचना जारी कर दलित शब्द हटाने की मांग भी एड. नारनवरे ने हाईकोर्ट से की थी। दलित की जगह अब अनुसूचित जाति का प्रयोग सरकारी दस्तावेज में किया जाएगा।  अदालत ने दोनों मांगों को मान्य किया है। सरकार की ओर से अतिरिक्त सरकारी वकील दीपक ठाकरे ने अदालत में पक्ष रखा।

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