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लद्दाखः आखिर क्यों है अनसुनी पुकार

लेह और करगिल के राजनीतिक समूहों की अपनी मांगों पर केंद्र से वार्ता कामयाब होती नहीं दिख रही लद्दाखी...
लद्दाखः आखिर क्यों है अनसुनी पुकार

लेह और करगिल के राजनीतिक समूहों की अपनी मांगों पर केंद्र से वार्ता कामयाब होती नहीं दिख रही

लद्दाखी नेताओं के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक उपकमेटी की 19 फरवरी को दिल्ली में बैठक हुई। लद्दाख के नेताओं ने बैठक को सफल करार दिया, हालांकि 4 मार्च को हुई हालिया बैठक से कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद कई लद्दाखी नेताओं ने इसे विफल  बताया है। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2 जनवरी, 2023 को गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय की अध्यक्षता में लद्दाख से जुड़ी चिंताओं के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी बनाई थी। कमेटी से कहा गया कि वह लद्दाख के नेताओं के साथ बैठकर इस क्षेत्र की विशिष्ट संस्कृति और भाषा के संरक्षण के लिए समग्र उपाय खोजे। कमेटी के कार्यभारों में यहां जमीन और रोजगार का संरक्षण भी था। इसके अलावा उसे लेह और करगिल के लद्दाख स्वाायत्त पहाड़ी विकास परिषद के सशक्तीकरण और संवैधानिक सुरक्षा प्रावधानों पर भी उपाय करने थे। इस कमेटी के गठन ने यहां के लोगों में उत्साह भरा था, लेकिन 4 मार्च की विफल बैठक के चलते कुछ  जानकारों ने संभावित राजनीतिक अस्थिरता को लेकर चेताया है।

जानकारों का मानना है कि पूर्ण राज्य का दर्जा और छठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ लद्दाख के नेताओं के हालिया टकरावों के मद्देनजर सरकार को कोई भी फैसला लेने से पहले उन तमाम वजहों को संज्ञान में लेना चाहिए जो भारत के दो प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ लद्दाख की रणनीतिक अवस्थिति से उपजते हैं।

क्राइसिस ग्रुप के सीनियर एनालिस्ट, इंडिया, के प्रवीन धोंती आउटलुक से बातचीत में कहते हैं कि 2019 में तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के दो केंद्र-शासित प्रदेशों में पुनर्संयोजन के बाद केंद्र ने जम्मू और कश्मीर की तरह लद्दाख के लिए कभी भी पूर्ण राज्य के दर्जे की बात नहीं की थी। वे बताते हैं, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कश्मीर के लोगों को आश्वस्त  किया था कि राज्य की बहाली की जाएगी और चुनाव करवाए जाएंगे, लेकिन इस मोर्चे पर कोई प्रगति नहीं दिखती। लिहाजा यह संभव ही नहीं है कि नई दिल्ली लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देगा क्योंकि एक तो चीन के साथ सीमा संकट से उसका ताल्लुक है और दूसरा, कश्मीर को लेकर सरकार की योजनाओं से वह नत्थी है।’’

हक की बातः पूर्ण राज्य और छठी अनूसूची के लिए लेह में रैली

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वे कहते हैं, ‘‘छठवीं अनुसूची में उसे लेना एक ऐसी नजीर पेश कर देगा, जिससे निपटना केंद्र के लिए कठिन होगा। मसलन, मणिपुर में कुकी समुदाय भी अलग प्रशासन और छठवीं अनुसूची की मांग कर रहा है। हां, यह हो सकता है कि वहां की संस्कृति, भाषा, जमीन, पारिस्थितिकी और रोजगारों के संरक्षण के लिए कुछ रियायतें दे दी जाएं।’’

दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर विजिटिंग फेलो और इंस्टिट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज में फेलो सिद्दीक वाहिद कहते हैं, ‘‘या तो दिल्ली ने कम आबादी के चलते लद्दाख को गंभीरता से नहीं लिया है या फिर अगस्त 2019 के बाद अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के उपजे खतरे के खिलाफ उसके प्रतिरोध और संकल्प की उपेक्षा की है। चाहे जो हो, भारत ऐसा कर के अपने दो प्रतिद्वंद्वियों के साथ अपनी सीमा पर अस्थिरता को ही बढ़ावा दे रहा है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नए खतरे पैदा कर सकता है। भारत को ऐसा करना गवारा नहीं होगा। कोई न कोई तो इस बात को समझता ही होगा’’

लद्दाख के विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक समूहों को मिलाकर 2020 में लेह एपेक्स बॉडी (लैप) का गठन हुआ था। इस संगठन का उद्देश्य लद्दाख के लिए छठवीं अनुसूची के मुद्दे पर संघर्ष करना था। भारतीय जनता पार्टी इसका एक घटक है। करगिल में राजनीतिक समूहों ने मिलकर 2020 में करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) बनाया। पूर्ण राज्य और छठवीं अनुसूची के मसले पर लैप और केडीए पिछले साल से केंद्र सरकार के साथ संवाद कर रहे हैं। पूर्ण राज्य और छठवीं अनुसूची के मुद्दों पर केंद्र के अडि़यल रवैये के बाद मुख्य सवाल यह उठता है कि लेह और करगिल के ये राजनीतिक समूह अगला कौन सा कदम उठाएंगे। इस पर ही बाकी बातें निर्भर होंगी।

 

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