ए राजा ने अपनी आने वाली पुस्तक 'इन माई डिफेंस' (In My Defense) में अपने दावे को दोहराया है कि फैसले तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लिए थे और जिम्मेदार उन्हें ठहराया गया, उन्हें बलि का बकरा बना दिया गया। समाचार चैनल एनडीटीवी की वेबसाइट के अनुसार, राजा ने दावा किया है कि नीतियां शीर्ष नेता पी. चिदंबरम् और प्रणब मुखर्जी ने बनाई थीं। ग्राहकों को सस्ती सेवाएं प्रदान करने के कारण भारत बड़े सेलफोन बाजारों में से एक बन चुका था।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने 2010 में कहा था कि 2-जी घोटाले में सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सेकंड जेनरेशन (2-जी) के एयरवेव (स्पेक्ट्रम) के आवंटन का मामला था। सीएजी के अनुसार, यह स्पेक्ट्रम उन सभी कंपनियों को मुफ्त में दे दिया गया, जिनके पास बाज़ार से भी कम कीमत पर हासिल किए गए मोबाइल नेटवर्क लाइसेंस मौजूद थे। सीएजी का कहना था कि स्पेक्ट्रम की नीलामी की जानी चाहिए थी, और ए राजा ने उन टेलीकॉम कंपनियों को 'आउट ऑफ टर्न' लाइसेंस जारी कर दिए, जिन्होंने उन्हें रिश्वत दी थी।
इस मामले की दिल्ली में सुनवाई चल रही है और ए. राजा खुद अपनी पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी आने वाली पुस्तक में इस टेलीकॉम घोटाले को कॉरपोरेट घरानों की जंग और संस्थागत संघर्ष का परिणाम बताया है। संस्थागत संघर्ष से ए राजा का इशारा टेलीकॉम नीतियों व नियमों को लेकर संसद, कैबिनेट व ट्राई की एक तरह की सोच (सभी को बराबरी का मौका मिलना चाहिए) और सीवीसी, सीएजी और सीबीआई की अलग तरह की सोच (कमाई के लिए नीलामी होनी चाहिए) से था। वर्ष 2010 में राजा ने टेलीकॉम मंत्री के पद से इस्तीफा दिया था, और उसके सिर्फ तीन ही महीने बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था।
ए राजा ने पुस्तक में दावा किया है कि 2-जी के लाइसेंसों का आवंटन किए जाने से कई महीने पहले वह प्रधानमंत्री (डॉ मनमोहन सिंह) से मिले थे, और उन लोगों की शिकायत की थी, जो उन्हें खरीदना चाहते थे। उनका इशारा कॉरपोरेट और उन कैबिनेट मंत्रियों की ओर था, जो कथित रूप से उन पर प्रक्रिया में देरी करते रहने के लिए दबाव डाल रहे थे। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ए. राजा के इस दावे को लेकर पहले भी यही कहते रहे हैं कि उन्होंने ए. राजा से बोली की प्रक्रिया का पालन करने का आग्रह किया था।
ए. राजा लिखते हैं कि नए लाइसेंसों का वितरण किए जाने से पहले ही शीर्ष उद्यमी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देना चाहते थे, ताकि वे अपने पक्ष में माहौल बना सकें। उस वक्त मोबाइल फोन के लिए ज़्यादा लोकप्रिय जीएसएम प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने वाले एयरटेल और वोडाफोन जैसे ऑपरेटर चाहते थे कि सीडीएमए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने वाली अन्य कंपनियों (जैसे अनिल अंबानी की रिलायंस कॉम) का रास्ता रोक दिया जाए। रियल एस्टेट डेवलपर यूनिटेक जैसी कंपनियों का भी रास्ता रोका जाए, जो टेलीकॉम के क्षेत्र में पांव पसारने की योजना बना रही थीं।
दूसरी ओर, जांच एजेंसी सीबीआई का आरोप है कि ए. राजा ने लाइसेंस दिए जाने से पहले अपने घर पर यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा तथा स्वान रियल्टी के शाहिद बलवा से मुलाकात की। उस मुलाकात में ग्रुप ने गलत तरीके से टेलीकॉम अधिकार पाने की साज़िश रची। इन दोनों को भी ए. राजा के साथ जेल में डाला गया था। दोनों पर रिश्वत देने का आरोप है।
अपनी पुस्तक में पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री ने बताया है कि उन्होंने सितंबर, 2007 में भारती टेलीकॉम के मुखिया सुनील मित्तल से भी अपने घर पर मुलाकात की थी। उस मुलाकात का इंतज़ाम तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदम्बरम के पुत्र कार्ती चिदम्बरम ने किया था। एनडीटीवी के अनुसार, कार्ती का स्पष्टीकरण था कि `मुझे यह बहुत अजीब लग रहा है कि (सुनील) मित्तल के स्तर के किसी उद्योगपति को किसी कैबिनेट मंत्री से मुलाकात करने के लिए मेरी मदद की ज़रूरत पड़ी होगी।` उधर, सुनील मित्तल की कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे।