ईपीएफओ ने नोटबंदी के बाद बैंक जमाओं में वृद्धि तथा बचत पर घटती दरों के मद्देनजर यह फैसला किया है। ईपीएफओ ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए अपने चार करोड़ अंशधारकों को 8.8 प्रतिशत की दर से सालाना ब्याज दिया था। इससे पहले 2013-14 व 2014-15 में यह 8.75 प्रतिशत व 2012-13 में 8.5 प्रतिशत थी।
केंद्रीय श्रम व रोजगार राज्यमंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने संवाददाताओं से कहा, हमने 2016-17 के लिए ईपीएफ अंशधारकों को 8.65 प्रतिशत ब्याज देने का फैसला किया है। सभी भागीदारों के साथ व्यापक चर्चा के बाद यह फैसला किया गया है। हमने यह फैसला बहुत सोच विचार कर किया है।
ईपीएफओ की शीर्ष निर्णायक इकाई केंद्रीय न्यासी बोर्ड सीबीटी की 215वीं बैठक के बाद मंत्री ने कहा, 8.65 प्रतिशत ब्याज देने के बाद भी हमारे पास 269 करोड़ रुपये का अधिशेष है।
उन्होंने कहा कि ब्याज दर में कटौती के बावजूद ईपीएफ दूसरी लोक जमाओं जैसे पीपीएफ, जीपीएफ व डाकघर सावधि जमाओं की तुलना में ऊंचा ब्याज दे रहा है।
मंत्री ने कहा, कुल मिलाकर जो परिदृश्य है उसमें ब्याज दरें घट रही हैं। हम कर्मचारियों को सबसे अधिक ब्याज दे रहे हैं। यह कर्मचारियों के हितों की रक्षा की हमारे मंत्रालय व प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को दिखाता है।
ऐसा माना जाता है कि वित्त मंत्रालय, श्रम मंत्रालय पर जोर दे रहा है कि वह ईपीएफ की ब्याज दर को भी सरकार की पीपीएफ जैसी अन्य योजनाओं पर दिये जाने वाले प्रतिफल के अनुसार लाए। वित्त मंत्रालय ने इसी साल ईपीएफ पर ब्याज दर को 2015-16 के लिए घटाकर 8.7 प्रतिशत कर दिया था जबकि केन्द्रीय न्यासी बोर्ड ने 8.8 प्रतिशत को मंजूरी दी थी। ट्रेड यूनियनों के विरोध के बाद हालांकि मंत्रालय ने अपना फैसला वापस ले लिया।
एक अधिकारी ने कहा कि 2016-17 के लिए पीएफ निवेश से ब्याज आय की गणना का अनुमान मुख्य रूप से आलोच्य वित्त वर्ष में मिली या मिलने वाली ब्याज आय के आधार पर की गई है। इसमें पिछले साल का 410 करोड़ रुपये का अधिशेष भी शामिल है।
ईपीएफओ के केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त वीपी जाय ने कहा पिछले साल ब्याज दर 8.8 प्रतिशत रखी गई थी। तब ईपीएफओ की आय के साथ पिछले साल का 1,600 करोड़ रुपये अधिशेष भी था। इस साल आय के साथ 410 करोड़ रुपये का अधिशेष उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि पिछले साल की तुलना में अधिशेष में कमी को ध्यान में रखते हुए ब्याज दर में 0.15 प्रतिशत कमी की गई है।
श्रम मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि सीबीटी ने कर्मचारी जमा सम्बद्ध बीमा योजना, 1976 के कार्यान्वयन में प्रशासनिक शुल्क को समाप्त करने की सिफारिश की है।
भाषा