देशभर में कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के चलते लागू किए गए लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है। सरकार की कोशिशों के बावजूद कई परिवारों तक अभी भी राशन और खाने का सामान नहीं पहुंच पाया है। ऐसे में उन्हें बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक तंगी और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पा रहे लोग आत्महत्या का सहारा लेने लगे हैं। ताजा मामला दिल्ली से सटे गुरुग्राम का है। यहां पर सरस्वती कुंज इलाके में स्थित झुग्गियों में पत्नी और 4 बच्चों के साथ रहने वाले मुकेश ने गुरुवार दोपहर अपने ही घर में फांसी लगाकर जान दे दी।
काम नहीं होने के कारण मुकेश के पास पैसे नहीं थे। पत्नी और चार बच्चों को वह क्या खिलाएगा, यह सोच-सोचकर वह काफी समय से परेशान चल रहा था। परिवार की स्थिति ऐसी थी कि मुकेश के अंतिम संस्कार तक के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे। पड़ोसियों की मदद से ही परिवार मुकेश का अंतिम संस्कार कर सका।
राशन लाने के लिए भी नहीं थे पैसे
बताया जा रहा है कि आत्महत्या करने वाला 30 वर्षीय प्रवासी मजदूर मुकेश बिहार का रहने वाला था, जो 24 मार्च लॉकडाउन के ऐलान के बाद अपने परिवार के साथ फंस गया था। गुड़गांव में डीएलएफ फेज-5 के पीछे सरस्वती कुंज में बनी झुग्गियों में मुकेश अपने परिवार के साथ रहता था। शहर में पेंटर का काम करने वाला मुकेश पिछले कई दिनों से पैसे न होने के कारण परेशान था। जो थोड़ी बहुत जमापूंजी थी वो भी खत्म हो चुकी थी। आर्थिक तंगी होने के कारण मुकेश के पास घर में राशन लाने तक के भी पैसे नहीं थे।
फोन बेचकर लाया था राशन
इस तरह की स्थिति के बीच हाल ही में मुकेश ने अपना फोन बेच दिया, जो ढाई हजार में बिका था। उन रुपये से वह आटा, दाल, चीनी सहित राशन लेकर आया था। इसके अलावा गर्मी से बचने के लिए पंखा भी लेकर आया और बाकी बचे पैसे उसने अपनी पत्नी को दिए थे। उसके बाद वह झुग्गी में जाकर लेट गया और पत्नी बाहर नीम के पेड़ के नीचे बैठी हुई थी, लेकिन थोड़ी ही देर बाद जब वह झुग्गी के अंदर गई तो देखा मुकेश पंखें से लटका हुआ था।
पेंटिंग का काम करता था मुकेश
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मुकेश के ससुर उमेश मुखिया के अनुसार, पिछले करीब दो महीने से मुकेश को पेंटिग का काम रोजाना नहीं मिलने से परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था, जो उसके कमाने का मुख्य जरिया था। तो उसने दिहाड़ी पर काम करने का मन बना लिया, जो भी काम मिलता वह करने के लिए तैयार था, लेकिन 24 मार्च यानी देश में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के बाद वह भी मिलना मुश्किल हो गया था, जो भी सेविंग्स थी वो भी खत्म हो चुकी थी। मुकेश पर काफी कर्ज और उधार भी हो गए थे।
रुपये जुटाकर दाह संस्कार
मुकेश ससुर उमेश का पैर टूटा हुआ है। वह चल फिर नहीं पा रहा है। उनका कहना है कि मुकेश कई दुकानों से राशन का सामान उधार लेकर आता था और रुपये आने पर चुकाता था। अब दुकानदार भी उधार सामान नहीं दे रहा था। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। उमेश के मुताबिक, दाह संस्कार के लिए भी रुपये नहीं थे। झुग्गियों मे रहने वालों ने रुपये एकत्रित किए और उसके बाद दाह संस्कार किया।