भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के अध्यक्ष सजी नाराणन ने सरकार से केंद्र सरकार से मांग की है कि वह पूरे देश भर में सभी तरह के रोजगारों में निश्चित अवधि रोजगार योजना (फिक्स्ड टर्म इंप्लायमेंट) से संबंधित नई अधिसूचना को तत्काल वापस ले। उन्होंने कहा कि इस अधिसूचना के अनुसार औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) केंद्रीय नियम, 1946 में संशोधन कर औद्योगिक क्षेत्र में स्थाई रोजगार समाप्त हो जाएगा और समस्त नौकरियों को एक निश्चित अवधि के लिए अस्थाई ठेका कर्मियों में परिवर्तित कर दिया जाएगा। बीएमएस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि यह संशोधन वहुत ही जल्दबाजी में लाया गया।
सजी नाराणन ने कहा कि नियोक्ता द्वारा मात्र दो सप्ताह का नोटिस देकर एकतरफा रूप से सेवा को रद्द करने का प्रावधान काफी आपत्तिजनक है। उन्होंने कहा कि बीएमएस की किसी भी आपत्ति को सरकार ने स्वीकार नहीं किया है। इससे श्रमिक क्षेत्र में ‘रखो निकालो नीति’ वैधानिक नियम धारण कर लेगी, जिससे उद्योग एवं श्रमिकों के बीच कोई भी स्थाई संबंध नहीं होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे कर्मचारियों को तैयार करना जिनका स्थाई प्रतिबद्धता या संबंध न होना औद्योगिक विकास के लिए खतरा है। बीएमएस प्रमुख ने कहा कि संयुक्त श्रम संगठनों की मांग के अनुसार सरकार को स्थाई नौकरियों में बढ़ती हुई ठेका प्रणाली में रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कहा कि निश्चित अवधि एक नई प्रणाली है जो मध्यवर्ती व्यक्ति जैसे ठेकेदार को ठेका नियोजन से मुक्त करती है।
सजी नाराणन ने कहा कि कि भारतीय संसद ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के 144वें प्रस्ताव में पारित श्रम संघ परामर्श का अनुमोदन किया है पर वित्त मंत्री ने इसका उल्लंघन करते हुए निश्चित अवधि रोजगार की घोषणा कर दी। यह कदम जल्दबाजी में उठाया गया। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस मामले में श्रम संगठनों से विभिन्न रूप से विभिन्न स्तरों पर परामर्श नहीं किया। यह महत्वपूर्ण संशोधन संसद और श्रमिकों के लिए स्थापित संसदीय स्थायी समिति की जांच के बिना एक कार्यकारी आदेश द्वारा लाया गया है। बीएमएस अध्यक्ष ने आरोप लगाय कि यह संशोधन नौकरशाही द्वारा शक्तिशाली औद्योगिक घराने के दबाव में बैक डोर से लाया गया है।
सजी नाराणन ने कहा कि यूरोप में किया गया अध्ययन यह दर्शाता है कि निश्चित अवधि रोजगार बेरोजगारी को बढ़ाता है। नियोक्ता इस स्थिति में आसानी से स्वचालन के लिए जा सकता है या एक समय बाद अपना व्यापार बंद कर सकता है। उन्होंने कहा कि इस संशोधन से आसानी से व्यापार करना (इज ऑफ डूइंग बिजनेस) आसानी से व्यापार बंद करना (इज ऑफ क्लोजिंग बिजनेस) में परिवर्तित हो जाएगा। अध्ययन यह दर्शाते हैं कि श्रम क्षेत्र में पूंजी निवेशों के प्रोत्साहन को घटाता है और अधिक अनुभवी कर्मचारी के काम पर न होने के कारण दुर्घटनाओं को भी बढ़ाता है।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार का शासकीय अध्यादेश सेवा सुरक्षा को समाप्त करता है। नियोक्ता किसी भी श्रमिक को बिना किसी सूचना के, बिना किसी क्षतिपूर्ति के और बिना किसी सूचित वेतन के निष्कासित कर सकता है। सजी नाराणन ने कहा कि इस अध्यादेश के बाद नियोक्ता कभी भी स्थायी रोजगार देने का इच्छुक नहीं होगा। इतना ही नहीं यह आदेश अकुशल और अर्धकुशल श्रमिकों को प्रतिकूल रूप से ज्यादा प्रभावित करेगा। निश्चित अवधि के रोजगार की शुरुआत 2003 में वाजपेयी सरकार के समय हुई थी लेकिन संप्रग सरकार ने श्रम संगठनों के विरोध को देखते हुए विवादित संशोधन वापस ले लिया था। परंतु वर्तमान सरकार ने पुनः इस आदेश को वस्त्र और खाद्य संसाधन में लागू कर दिया और अब इसे बढ़ाकर कभी कार्य क्षेत्रों में कर दिया गया।
बीएमएस प्रमुख ने कहा कि संयुक्त श्रम संगठनों की मांग है कि अनुबंधित श्रम कानून में संशोधन करके स्थाई कर्मचारियों की भांति अनुबंधित कर्मचारियों को भई सभी सुविधाएं प्रदान की जाए। इस लिए स्थाई आदेश नियम में संशोधन के बजाय अनुबंधित श्रम कानून में यह निश्चित किया जाए कि अनुबंधित कर्मचारियों का शोषण न हो।