अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने कई भारतीय राज्यों के श्रम कानूनों में किए गए हालिया बदलावों पर "गहरी चिंता" व्यक्त की है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि वे केंद्र और राज्य सरकारों को स्पष्ट संदेश दें कि देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को बरकरार रखा जाए और प्रभावी सामाजिक संवाद को सुनिश्चित किया जाए।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था का यह बयान विभिन्न ट्रेड यूनियनों की ओर से भेजे गए पत्र के बाद आया है, जिसमें उन्होंने आईएलओ से गुजारिश की थी कि वे देश के विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में हो रहे बदलावों को लेकर हस्तक्षेप करें और श्रमिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें।
श्रमिक संगठनों ने लिखा था पत्र
श्रमिक संगठनों एआईसीसीटूयी, एआईटीयूसी, सीटी और एचएमएस द्वारा लिखे पत्र में आईएलओ के महानिदेशक को कहा कि वे मामले में तुरंत हस्तक्षेप करें और पीएम से हालिया बदलावों को के लिए संदेश देने के लिए अपील करें। साथ ही इस विषय पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा प्राप्त होने वाली अपडेट की जानकारी देने की बात भी कही गई।.
बदलाव सीधे तौर पर मानकों का उल्लंघन
इससे पहले, कोरोनोवायरस लॉकडाउन के बीच देश के विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में किए गए बदलावों के खिलाफ व्यापार मंडल ने आईएलओ को लिखा था। इसमें 13 मई की आईएलओ की एक प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते हुए कहा गया कि देश के विभिन्न राज्य अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए के नाम पर श्रम कानूनों में बदलाव कर रहे हैं। केंद्र की सहमति से राज्य सरकारो द्वरा किए जा रहे ये बदलाव सीधे तौर पर आईएलओ के मानकों का उल्लंघन हैं।
अधिकारों को कमजोर करने का लगाया आरोप
पत्र में कई राज्यों में किए गए बदलावों के बारे में बताया गया है जिसमें दोनों भाजपा अन्य दलों (महाराष्ट्र, पंजाब और ओडिशा) द्वारा शासित राज्य हैं। खासतौर पर मध्यप्रदेश, यूपी औह गुजरात ट्रेन यूनियन कानून 1926 के प्रावधानों पर भी रोक लगा रहे हैं जिसके तहत हड़ताल वगैरा के साथ कई अहम श्रम कानून को तीन सालों के लिए कमजोर किया जा रहा है। बता दें कि पिछले दिनों देश की विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिया गया था और तथा विभिन्न श्रम कानूनों को तीन साल के लिए दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया था। हालांकि आलोचनाओं के बाद कई राज्यों ने काम के घंटे पर यूटर्न भी लिया।