यह समझौता सैन्य अड्डे बनाने का समझौता नहीं है। दोनों ही नेताओं ने अपने साझा बयान और साझा संवाददाता सम्मेलन में यह स्पष्ट किया कि यह रक्षा समझौता सैन्य अड्डे स्थापित करने के लिए नहीं है। दोनों देशों के बीच एक दशक से ज्यादा समय तक चर्चा के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। पेंटागन में दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई। इसके बाद कार्टर के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में पर्रीकर ने संवाददाताओं से कहा, भारत में किसी भी सैन्य अड्डे को स्थापित करने या इस तरह की किसी गतिविधि का कोई प्रावधान नहीं है।
कुछ ही महीने पहले अमेरिका ने भारत को अहम सैन्य साझेदार का दर्जा दे दिया था, जो आमतौर पर बेहद करीबी मित्र देशों को दिया जाता है। मौजूदा दौर में अमेरिका से सैन्य साजो-सामान का सबसे बड़ा आयातक है भारत और 2007 से अब तक भारत से लगभग 14 अरब डॉलर के अनुबंध हासिल कर चुका है। भारत सबसे ज्यादा सैन्य अभ्यास अमेरिका के साथ कर रहा है। दोनों ही देश जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के सैन्य ठिकानों की मदद लेते रहे हैं, लेकिन इस समझौते से उस पर एक औपचारिक मुहर लग गई है। यह भी माना जा रहा है कि अमेरिका और भारत के बीच सैन्य समझौते से चीन के बढ़ते प्रभाव को काबू करने में मदद मिलेगी।
पेंटागन में मनोहर पर्रीकर के साथ साझा संवाददाता सम्मेलन में एश्टन कार्टर ने कहा कि भारत को दिया गया बड़े रक्षा सहयोगी का दर्जा अमेरिका को रणनीतिक एवं तकनीकी दोनों ही क्षेत्रों में सहयोग करने में मदद करेगा। बड़े रक्षा सहयोगी के दर्जे ने उन पुराने अवरोधकों को तोड़ दिया है, जो रक्षा और रणनीतिक सहयोग के आड़े आते थे। इस रणनीतिक सहयोग में सह-उत्पादन, सह-विकास परियोजनाएं एवं अभ्यास शामिल हैं। मनोहर पर्रीकर ने कहा कि हम हमारी रक्षा कंपनियों के बीच संबंधों को प्रोत्साहन देने वाले एक दक्ष तंत्र को स्थापित करने के प्रयासों को जारी रखने पर सहमत हुए हैं।
बाकी समझौते करने में जल्दबाजी नहीं
अमेरिका के साथ महत्वपूर्ण साजो-सामान समझौता करने के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने संकेत दिए कि भारत को दो अन्य बुनियादी समझौते करने की कोई जल्दी नहीं है। अमेरिका बीते कई साल से इन समझौतों पर जोर दे रहा है। पर्रिकर ने अमेरिकी रक्षामंत्री एश्टन कार्टर के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, इस साजो-सामान समझौते को करने में हमें 12- 13 साल का वक्त लगा है, लेकिन साजो-सामान समझौते का सैन्य अड्डे बनाने से घालमेल किया जा रहा है। पहले मुझे इस समझौते को जनता के बीच ले जाने दीजिए और इस बारे में विस्तार से समझाने दीजिए। उसके बाद हम दूसरे पहलुओं पर विचार करेंगे। यहां पर्रीकर दो बुनियादी समझौतों के भविष्य के बारे में जवाब दे रहे थे। ये दो बुनियादी समझौते हैं- कम्युनिकेशंस एंड इन्फॉर्मेशन सिक्युरिटी मेमोरंडम ऑफ एग्रीमेंट (सीआईएसएमओए) और बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट (बीईसीए) फॉर जियोस्पेटियल इंटेलिजेंस। रक्षा संबंधों को और मजबूत करने के लिए अमेरिका एक दशक से भी ज्यादा समय से कुल चार बुनियादी समझौतों पर जोर देता आ रहा है। इन चार समझौतों में जनरल सिक्युरिटी ऑफ मिलिटरी इंफॉरमेशन एग्रीमेंट (जीएसओएमआईए) पर 2002 में दस्तखत किए गए थे, जबकि लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (एलईएमओए) पर हस्ताक्षर पर्रीकर के ताजा दौरे में हुए हैं।
पर्रीकर ने कश्मीर और आतंकवाद का मुद्दा उठाया
रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने भारत के पड़ोस से चरमपंथ को मिटाने के लिए नई दिल्ली के प्रयासों में मिल रहे अमेरिकी सहयोग की सराहना की है और कहा है कि आतंकवाद से मुकाबला भारत और अमेरिका का एक महत्वपूर्ण साझा लक्ष्य है। पर्रिकर ने कहा, 'हमने आतंकवाद से निपटने के मामले में अपना सहयोग जारी रखने का संकल्प लिया है।' उन्होंने कश्मीर में तनाव के लिए सीमा पार की ताकतों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि घाटी में कुछ प्रतिशत लोगों ने अधिकतर लोगों को बंधक बना रखा है।
(साथ में एजेंसी)