लगभग 3600 करोड़ रुपये के अगस्ता-वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे में रिश्वत देने की जांच कर रहीं भारतीय एजेंसियों को तब करारा झटका लगा है। जब इटली ने इस सौदे में कथित तौर पर एजेंट की भूमिका निभाने वाले कार्लो गेरोसा को भारत प्रत्यर्पित करने से इनकार कर दिया है।
इटली का कहना है कि उसकी भारत के साथ कोई भी पारस्परिक कानूनी सहायता संधि नहीं है। इसलिए वह कार्लो गेरोसा को भारत को नहीं सौंप सकता है। गेरोसा को इस रिश्वत घोटाले का मास्टरमाइंड माना जाता है।
सीबीआई ने इस बारे में विदेश मंत्रालय को सूचित कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, ये देखा जा रहा है कि दोनों देशों के बीच कानूनी सहायता संधि नहीं होने की स्थिति में किस तरह से गेरोसा को भारत में प्रत्यर्पित कराया जा सकता है।
पिछले साल इटली में गेरोसा को किया गया था गिरफ्तार
सीबीआई द्वारा जारी किए इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस के बाद गेरोसा को पिछली साल इटली में गिरफ्तार किया गया था। भारतीय नेताओं, रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठों, एयरफोर्स के अधिकारियों के अलावा पूर्व एयर चीफ एसपी त्यागी व उनके परिवार को कथित तौर पर रिश्वत खिलाने के पूरे षडयंत्र में गेरोसा शामिल रहा था।
इस सौदे के तीन एजेंट्स में से एक है गेरोसा
इटली और स्विस नागरिकता रखने वाला 71 वर्षीय कार्लो वेलेंटिनो फर्डिनांडो गेरोसा इस सौदे के तीन दलालों में से एक है। अन्य दो दलाल गाइडो हैशके और क्रिस्चियन माइकल थे। इन तीनों में से गेरोसा को इस रिश्वत घोटाले का मास्टरमाइंड माना जाता है।
इस मामले में ईडी और सीबीआई के लिए गेरोसा का बयान अहम
बताया जा रहा है कि गेरोसा ने वीवीआईपी हेलिकॉप्टर के लिए तय मानकों में हेरफेर कराने की अहम भूमिका निभाई थी। आरोप है कि गेरोसा ने ये हेरफेर भारतीय एयरफोर्स के पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एसपी त्यागी के चचेरे भाई के साथ मीटिंग के जरिए कराया था। ऐसे में उसका बयान इस मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई के लिए बेहद अहम हो सकता है।
जानिए क्या है ये घोटाला?
भारत को 12 वीवीआईपी हेलिकॉप्टर खरीदने थे। ब्रिटिश कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड ने करीब 3600 करोड़ रुपये के ये हेलिकॉप्टर सप्लाई करने में दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन उड़ान की ऊंचाई के तय मानकों के दायरे में उसके हेलिकॉप्टर नहीं आ रहे थे। गेरोसा व अन्य दोनों दलालों ने वर्ष 2005 में भारतीय वायुसेना में रिश्वत के जरिए मानकों को 6 हजार मीटर से घटाकर 4500 मीटर करा दिया। इसके लिए 423 करोड़ रुपये की रिश्वत दिए जाने का आरोप है। केंद्र सरकार ने 1 जनवरी, 2014 को ये सारी बाते सामने आने पर सौदा खारिज कर दिया था।