वजन मापने की इकाई ‘किलोग्राम’ अब पहले जैसी नहीं रह जाएगी। पूरी दुनिया में किलोग्राम बदल रहा है। इसकी तकनीकी परिभाषा बदल रही है। देश में भी अब इसे बदलने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सबसे पहले स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों और पाठ्यक्रमों में ‘किलोग्राम’ की परिभाषा बदली जाएगी। स्कूलों में इस्तेमाल की जा रही इन पाठ्य पुस्तकों में ‘किलोग्राम’ की परिभाषा को कभी देश के इंजीनियिरंग कॉलेजों की सिफारिश पर तैयार किया गया था।
अभी तक ‘किलोग्राम’ का आधार था फ्रांस का ‘ब्लॉक’
सोमवार तक किलोग्राम फ्रांस के इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एंड मेजर्स में रखे प्लेटिनम-इरिडियम एलॉय के एक ब्लॉक के आधार पर तय होता था। दुनिया भर में वजन मापने के राष्ट्रीय मानक और उसके नमूने का आधार फ्रांस का यही ब्लॉक रहा है। नई दिल्ली के सीएसआइआर की नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी भी इसी से सटीकता सुनिश्चित करती थी और देश में वजन मापने के लिए हर तरह का संदर्भ लेती थी। लेकिन अब आगे ऐसा नहीं होगा।
भौतिक वस्तु के तौर पर नहीं होगा ‘किलोग्राम’
विगत 20 मई से किलोग्राम भी मापने की दूसरी इकाइयों जैसे सेकेंड, मीटर, एंपियर, केल्विन, मोल और कैंडेला की तरह माना जाने लगा है। दूसरी इकाइयों से अन्य कई तरह की वस्तुओं की माप होती है। जैसे एंपियर से बिजली की माप होती है तो केल्विन से तापमान मापा जाता है। अब ‘किलोग्राम’ को भौतिक वस्तु के रूप में परिभाषित नहीं किया जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो जैसे मापने की दूसरी इकाइयों में भौतिक स्वरूप का मायने नहीं होता है। उसी तरह किलोग्राम को भी भौतिक वस्तु की तरह मापा नहीं जाएगा। सभी मापक अब अपरिवर्तीय फिजिकल कांस्टेंट (जो हर जगह और हर समय अपरिवर्तित रहता है) के आधार पर तय होते हैं। अब किलोग्राम भी प्लैंक कांस्टेंट (इलेक्ट्रोमेग्नेटिक एक्शन की मात्रा) की परिभाषा के आधार पर निर्भर होगा।
एनपीएल की सिफारिश पर पाठ्यक्रम में बदलाव
भारत की आधिकारिक माप-तौल इकाइयों को परिभाषित और प्रमाणित करने वाली सीएसआइआर-एनपीएल ने सोमवार को सिफारिशें जारी की हैं, जिसके अनुसार स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों, इंजीनियरिंग की पुस्तकों और अन्य कोर्सों के कार्यक्रम में किलोग्राम की परिभाषा दुरुस्त करनी होगी। एनपीएल के डायरेक्टर डा. दिनेश असवाल ने बताया कि हमने एनसीईआरटी और एआइसीटीई को पाठ्यक्रम अपडेट करने के लिए लिखा है।
भारत खुद बना रहा किबिल बैलेंस
एनपीएल के असवाल ने कहा कि इंस्टीट्यू अपना खुद का किबिल बैलेंस बना रहा है। किबिल बैलेंस में इलेक्ट्रिक करेंट के जरिये सटीक वजन लिया जा सकता है। किबिल बैलेंस का इस्तेमाल प्लैंक कांस्टेंट को मापने के लिए इस्तेमाल होता है। इसी के आधार पर किलोग्राम को दुरुस्त किया जाता है। कम से कम एक किलोग्राम को मापने में सक्षम एक किबिल बैलेंस को बनाने में करीब 50 करोड़ रुपये का खर्च आता है। इस पर काम चल रहा है।
तुरंत नहीं बदलनी होंगी वजन की मशीनें
किलोग्राम को अपडेट करना का आशय यह नहीं है कि हर जगह तराजू और वजन तौलने की मशीनों से वेट्स (बांट) रद्द हो जाएंगे। रोजमर्रा के उपकरणों फिर चाहे ड्रग मैन्यूफैक्चरिंग की अत्याधुनिक वजन तौलने की मशीन हो या फिर खुदरा दुकानों पर इस्तेमाल होने वाली सामान्य तराजू या वजन मशीनें हों, पहले की तरह काम करते रहे हैं। हालांकि उपभोक्ता नई और सटीक मशीनों की अपेक्षा करते हैं, ऐसे में इन्हें आने वाले समय में बाजार में धीरे-धीरे बदला जा सकता है। एनपीएल भी एक किलोग्राम वजन को सटीक बनाए रखने के लिए अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंट टेक्नोलॉजी पर निर्भर है। डा. असवाल का कहना है कि एक किलोग्राम को मापने के लिए हमारा खुद का किबिल बैलेंस बनने पर हम पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएंगे।