सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए धारा 377 को अतार्किक करार दिया है। इसी के साथ देश में समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर बुद्धिजीवियों और शीर्ष संस्थाओं की ओर से प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी इस मुद्दे पर अपना नजरिया पेश किया है। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जारी बयान में कहा है- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की तरह हम भी इस को अपराध नहीं मानते। समलैंगिक विवाह और संबंध प्रकृति से सुसंगत एवं नैसर्गिक नहीं है इसलिए हम इस प्रकार के संबंधों का समर्थन नहीं करते। परंपरा से भारत का समाज भी इस प्रकार के संबंधों को मान्यता नहीं देता। मनुष्य सामान्यतः अनुभवों से सीखता है इसलिए इस विषय को सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर ही संभालने की आवश्यकता है।
अब तक धारा 377 में क्या था?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में था। इसमें 10 साल या फिर जिंदगी भर जेल की सजा का भी प्रावधान था, वो भी गैर-जमानती यानी अगर कोई भी पुरुष या महिला इस एक्ट के तहत अपराधी साबित होते हैं तो उन्हें बेल नहीं मिलती। इतना ही नहीं, किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान था।
समलैंगिकता की इस श्रेणी को LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) के नाम से भी जाना जाता है। इसी समुदायों के लोग काफी लंबे समय से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तहत इस धारा में बदलाव कराने और अपना हक पाने के लिए सालों से लड़ाई लड़ रहे थे।