पुणे के भीमा-कोरेगांव में हिंसा मामले के आरोपी मिलिन्द एकबोटे को पुणे पुलिस ने शिवाजीनगर से हिरासत में ले लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट के बाद मिलिन्द की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी जिसके बाद उसकी गिरफ्तारी की संभावनाएं बढ गई थीं।
Milind Ekbote, accused in Bhima Koregaon violence, has been detained from his house at Shivajinagar in Pune: PRO Pune Rural Police #Maharashtra
— ANI (@ANI) March 14, 2018
मिलिन्द एकबोटे को सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से अंतिरम संरक्षण प्रदान कर रखा था लेकिन महाराष्ट्र पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट के बाद कोर्ट ने अग्रिम जमानत खारिज कर दी थी। महाराष्ट्र पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा था कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। एक बार पूछताछ में वो देरी से शामिल हुआ। यहां तक कि मोबाइल फोन के बारे में वो कह रहा है कि उसका फोन खो गया है और चूंकि उसके पास रसीद नहीं थी, इसलिए उसने इसकी शिकायत दर्ज नहीं कराई।
बता दें कि एकबोटे के खिलाफ एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक आयोजन के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। इस हिंसा के बाद हुए विरोध प्रदर्शन मे मुंबई का सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ था। मुम्बई हाईकोर्ट ने दो फरवरी को एकबोटे की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी थी। इससे पहले, पुणे की अदालत ने भी उनकी अग्रिम जमानत याचिका खरिज कर दी थी। असल में यह पूरा विवाद एक जनवरी 1818 के दिन हुए उस युद्ध को लेकर है, जो अंग्रेजों और पेशवा बाजीराव द्वितीय के बीच कोरेगांव भीमा में लड़ा गया था। इस युद्ध में अंग्रेजों ने पेशवा को शिकस्त दे दी थी। अहम बात यह है कि ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज में बड़ी संख्या में दलित भी शामिल थे। उस युद्ध में अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए ही दलित समुदाय की तरफ से पुणे में कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिस पर बवाल हो गया।
दर्ज हैं 12 मामले
56 वर्षीय मिलिंद एकबोटे गोरक्षा अभियान चलाने के लिए जाने जाते हैं। मुंबई मिरर के मुताबिक, एकबोटे 1997 से लेकर 2002 तक भाजपा के पार्षद रहे हैं। एकबोटे ने 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के टिकट पर चुनाव भी लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पुणे से समस्त हिंदू आघाडी संगठन चलाने वाले मिलिंद एकबोटे को कट्टर हिंदुत्ववादी के तौर पर पहचाना जाता है। उनका संगठन गोमाता, खाशाबा जाधव प्रतिष्ठान और अन्य सामाजिक मुद्दों को लेकर काम करता है। इससे पहले इनके खिलाफ दंगा भड़काना, दो समाजों के बीच द्वेष फैलाना, अतिक्रमण करना और अपराध कृत्य जैसे 12 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें से पांच मामलों में उन्हें दोषी भी ठहराया गया है।