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गरीबी सूचकांक रिपोर्ट 2023 के निष्कर्षों की पुनर्व्याख्या की आवश्यकता : कांग्रेस

लखनऊ। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) बेरोजगारी का डेटा जारी करने वाली नीति आयोग की...
गरीबी सूचकांक रिपोर्ट 2023 के निष्कर्षों की पुनर्व्याख्या की आवश्यकता : कांग्रेस

लखनऊ। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) बेरोजगारी का डेटा जारी करने वाली नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट 2023 के निष्कर्षों की पुनर्व्याख्या की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्यों ने भी इस डेटा की विश्वसनीयता पर संदेह जताया है। वहीं पांचवे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएचएफएस- 5) के प्रस्तुत आंकड़े की कड़वी सच्चाई यह है कि 2020-21 और वर्ष 2022 तक कोरोना महामारी के कारण उत्तर प्रदेश समेत समूचे देश के लिए, यह तीनों वर्ष असामान्य वर्ष रहा है। ताजा नीति आयोग की रिपोर्ट में साफ तौर से उल्लेख किया गया है कि इस सर्वेक्षण का 70 प्रतिशत डेटा महामारी से ठीक पहले, 2019-20 में एकत्र किया गया था। यह बातें यूपी कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने कही।

श्रीवास्तव ने बताया कहा कि  नीति आयोग बहुआयामी गरीबी सूचकांक तीन व्यापक आयामों स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर पर आधारित 12 संकेतों के माइक्रो रिसर्च से तय करता है। जिसमें सभी आयामों को समान महत्व दिया जाता है जिसमें तीन स्वास्थ्य से, दो शिक्षा से और सात जीवन स्तर से। तीनों आयामों के तथ्यात्मक अध्ययन व विशेषज्ञों की राय के उपरांत कांग्रेस का भी स्पष्ट मानना है कि नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) द्वारा जारी बहुआयामी गरीबी रिपोर्ट में खामियां हैं और क्योंकि जब हम महामारी के वर्षों सहित पिछले तीन वर्षों के कई आंकड़ों पर विचार करते हैं तो कई संदेह के द्वार खुलते है।

कांग्रेस प्रवक्ता विकास ने कहा कि प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्यों के साथ ही कांग्रेस पार्टी का भी स्पष्ट मानना है कि अधिकांश सर्वेक्षणों में इस्तेमाल किये गये नमूने गलत है क्योंकि यह गरीबी स्तर का सर्वेक्षण रिपोर्ट 2011 की जनगणना के अनुसार ही तैयार किया गया है। आज 2023, यानि बीते एक दशक में सर्वेक्षण के सभी मानक काफी हद तक बदल चुके हैं ,जिसका अनुपालन नीति आयोग ने सर्वेक्षण के दौरान नहीं किया है। कोरोना काल के तीन वर्षों की वस्तुस्थिति का इस सर्वेक्षण में घोर उपेक्षा की गई है। आजीविका की तलाश में शहरी भारत में आए अकेले उत्तर प्रदेश में ही लगभग 35-40 लाख ग्रामीणों को बिना किसी सरकारी मदद संसाधन के अपनी बेरोजगारी व गरीबी के साथ पैदल, भूखे प्यासे ही वापस अपने गांव लौटना पड़ा था। 2020-21 करोना महामारी के दौरान जब उत्तर प्रदेश के गरीबों मजदूरों के साथ साथ छोटे व्यापारी व किसानों को गंभीर रूप से नुकसान उठाना पड़ा।

प्रवक्ता ने बताया कि रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 के लिए डेटा जनवरी 2020 से अप्रैल 2021 तक एकत्र किया गया था। जबकि यह डेटा भारत में कोरोनावायरस की पहली और दूसरी बहुत गंभीर लहर की वस्तुस्थिति से साथ मेल नहीं खाता है। क्योंकि उनके पास काम छूट गया था और उनके पास कोई आय नहीं थी। वे किराया देने या भोजन खरीदने में असमर्थ थे। कई लोग बीमार पड़ गए और उन्हें इलाज के लिए भारी खर्च करना पड़ा, जिसके लिए उन्होंने भारी ब्याज दरों पर ऋण लिया। कई लोगों की मौत हो गई, जैसा कि अस्पतालों के बाहर, एंबुलेंसों में मर रहे लोगों और नदियों में तैरते शवों की तस्वीरें उत्तर प्रदेश के विकास व उत्थान की बहुत ही अलग तस्वीर प्रस्तुत कर चुके हैं। भयावह सच यह था कि इनमें से कई मौतें सरकारी रिकार्डाे में दर्ज तक नहीं की गईं। लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में छोटे और सूक्ष्म व्यवसाय बंद हो गए, कई स्थायी रूप से बंद हो गए।

विकास ने कहा कि लोग बाद में खुद को पुनर्स्थापित करने और अनौपचारिक मुद्रा बाजारों से अत्यधिक ब्याज दरों पर लिए गए ऋणों के कारण भारी कर्ज तले आज तक दबे हुए हैं। तमाम औद्योगिक इकाइयों के बंद होने का मतलब न केवल श्रमिकों के लिए बल्कि मालिकों के लिए भी काम और आय का स्थायी नुकसान का सबूत है। अमीर, गरीब सभी बच्चों की शिक्षा बाधित हो गई। स्कूल बंद कर दिए गए। ऑनलाइन कक्षाएं, जिसके लिए स्मार्टफोन और लैपटॉप की आवश्यकता थी, यानि गरीब बच्चे अब शिक्षा का खर्च आम जनमानस के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन कर उभरा। देश में बेरोजगारी की रैंकिंग में टॉप-3 वाले उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की स्थिति अत्यधिक विस्फोटक है। इकलौती गैर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के ताजा सर्वे के मुताबिक यूपी में 29.72 लाख लोगों ने नौकरी खोजना बंद कर दिया हैं। आज यूपी के कुल बेरोजगार 28.41 लाख से भी ज्यादा है। वहीं यूपी में महिलाओं की बेरोजगारी की दर 25.8प्रतिशत है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो हर चार में से एक महिला बेरोजगार है।

कांग्रेस द्वारा प्राप्त डेटा के मुताबिक सबसे उत्तर प्रदेश में ग्रेजुएशन तक पढ़ाई कर चुके 13.89 लाख युवा नौकरी की तलाश कर रहे हैं। बिहार और राजस्थान की बेरोजगारी के आंकड़ों को गिना कर उत्तर प्रदेश की बेतहाशा बेरोजगारी की समस्या से पल्ला झाड़ने वाली योगी सरकार को ज्ञात होना चाहिए कि यूपी की आबादी बिहार से दोगुना और राजस्थान से तीन गुना ज्यादा है।

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