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उमर अब्दुल्ला के हिरासत मामले पर सुप्रीम कोर्ट 5 मार्च को करेगा सुनवाई

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) के नेता उमर अब्दुल्ला की जन सुरक्षा कानून...
उमर अब्दुल्ला के हिरासत मामले पर सुप्रीम कोर्ट 5 मार्च को करेगा सुनवाई

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) के नेता उमर अब्दुल्ला की जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 5 मार्च को सुनवाई करेगा। उमर की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पर सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह इस याचिका पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से जवाब दाखिल करेंगे। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए। 

पीठ ने याचिका को गुरुवार के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर प्रशासन के जवाब पर अपना जवाबी हलफनामा दायर कर सकती हैं। सारा अब्दुल्ला पायलट ने सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपने भाई की पीएसए के तहत हिरासत के पांच फरवरी के प्रशासन के आदेश को चुनौती दे रखी है।

मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है हिरासत में रखना

याचिका में पायलट ने कहा है कि हिरासत का आदेश गैरकानूनी है और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में उनके भाई से किसी तरह का खतरा होने का सवाल ही नहीं है। याचिका में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला को पहले से ही छह महीने की हिरासत में रखा गया है। अब नए सिरे से हिरासत में रखने का आदेश मौलिक अधिकारों का उल्लघंन है। उमर के खिलाफ अभी कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है कि उन्हें हिरासत में लिया जाए।

गतिविधियों को प्रशासन ने बताया है खतरा

वहीं, जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष पेश किए गए हलफनामे मे उमर की नजरबंदी वैध बताते हुए कहा है कि 24 फरवरी को सलाहकार बोर्ड द्वारा स्वीकृत भी है। हलफनामे में कहा गया है कि दस्तावेज स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं, 'अतीत में हुई घटनाओं के बीच इस बात के संबंध मौजूद हैं कि उमर की गतिविधियां सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा हो सकती है।' हलफनामे में कहा गया है कि पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद उमर इसके मुखर आलोचक थे।

जवाब में कहा गया है, "यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि 1990 के बाद से अब तक जम्मू और कश्मीर में 71,038 घटनाओं में 41,866 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसमें 14,038 नागरिक, सुरक्षा बलों के 5,293 जवान और 22,536 आतंकवादी शामिल हैं।

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