यह पहली बार है, जब भारतीय अंतरिक्षीय प्रतिष्ठान कई करोड़ रूपए के उपग्रह को बनाने के लिए निजी क्षेत्र के उद्योग की मदद ले रहा है।
उपग्रह निर्माण की गति के साथ तालमेल बैठा पाने में मुश्किलों के चलते अब इसरो ने इस अंतर को पाटने के लिए निजी उद्योग को इसमें शामिल कर लिया है।
अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज, बेंगलूरू के नेतृत्व वाले एक संघ को भारत के नेविगेशन तंत्र के लिए दो पूर्ण उपग्रह बनाने का काम दिया गया है।
लगभग 150 मिशन और तीन दशक तक के अंतरिक्षीय कार्य के बाद अब इसरो एक अभूतपूर्व अभियान पर काम कर रहा है। अब वह एक पूर्ण नेविगेशन उपग्रह बनाने के लिए निजी क्षेत्र से हाथ मिला रहा है।
इसके लिए बेंगलूरू के एक हाईटेक रक्षा उपकरण आपूर्तिकर्ता अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज को पहले निजी उद्योग के तौर पर चुना गया है और इसरो के लिए दो पूर्ण उपग्रह बनाने का काम सौंपा गया है।
अगले छह माह में उड़ान के लिए तैयार उपग्रह बनाने के लिए 70 इंजीनियरों का दल कड़ी मेहनत कर रहा है।
भारत को इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन्स :ईवीएम: की पहली खेप दिलाने में मदद करने वाले कर्नल एच एस शंकर इस संघ का नेतृत्व कर रहे हैं और निर्माण प्रक्रिया पर कड़ी नजर रख रहे हैं।
अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक शंकर ने कहा, उपग्रह को जोड़ने और उसके परीक्षण करने का काम अपने हाथ में लेना किसी भी भारतीय कंपनी के लिए चुनौतीपूर्ण काम है, वह भी तब जबकि ऐसा भारत में पहली बार हो रहा है।
कक्षा में सात उपग्रहों की मौजूदगी के साथ नाविक या स्वदेशी जीपीएस प्रणाली आज पूरी तरह सक्रिय है। लेकिन एहतिहात के तौर पर इसरो को जमीन पर दो अतिरिक्त उपग्रह चाहिए, जिन्हें किसी गड़बड़ी की स्थिति में जल्दी से प्रक्षेपित किया जा सके।
इसरो ने भारत को उसका पहला बड़ा निजी उपग्रह दिलाने के लिए 400 करोड़ रूपए की इस कंपनी के साथ करार किया है।
इसरो हमेशा से एक ऐसी व्यवस्था बनाना चाहता है, जहां निजी क्षेत्र भविष्य में आगे बढ़े। बेंगलूरू में इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक एम अन्नादुरई कहते हैं, अभी हम जो कर सकते हैं और जो हमें करना चाहिए इनके बीच एक अंतर है। यह अंतर जरूरत और हमारी क्षमता का है। उद्योग की मदद से हम इस अंतर को पाटना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, हमें हर साल 16 से 17 उपग्रह बनाने होते हैं। ऐसे में यह वाकई एक बड़ी छलांग है और हमारा मानना है कि इस अंतर को पाटने के लिए उद्योग जगत को लाया जा सकता है।
उपग्रह निर्माण में अत्यधिक सटीकता की जरूरत होती है क्योंकि इनपर सैंकड़ों करोड़ रूपए की लागत आती है। प्रक्षेपण के बाद ये 10 साल तक के लिए सक्रिय रहते हैं और इनकी मरम्मत की कोई संभावना नहीं होती।
अंतरिक्षीय पर्यावरण की स्थितियां बेहद खराब हैं और अच्छी तरह से परीक्षण न किया गया हो तो प्रक्षेपणों की विफलता तय है। इन स्थितियों में अंतरिक्षीय अभियान बेहद जोखिमपूर्ण हैं।
अन्नादुरई का मानना हे कि इसरो निजी क्षेत्र पर निर्भर करके कोई जोखिम नहीं ले रहा है। उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि यह कोई जोखिम है। हम अब तक जो कुछ कर चुके हैं, यह उससे आगे बढ़ने के लिए एक सुधार है। यदि आप नाविक उपग्रह समूह को देखें तो पाएंगे कि पहले उपग्रह के अलावा शेष सभी उपग्रहों में लगे 95 प्रतिशत से अधिक के तंत्र इस उद्योग से ही आए।
उन्होंने कहा, इस अभियान में भी यही किया जा रहा है। पहले अतिरिक्त आईआरएनएसएस उपग्रह के लिए हम निजी दल के साथ मिलकर काम करेंगे। लगभग 70 युवा इंजीनियर हैं जो यह देखेंगे कि हम क्या कर रहे हैं। तब उपग्रह निर्माण के अंत में निजी दल एक दस्तावेज लेकर आएगा कि उन्होंने क्या समझा और वे दूसरा उपग्रह किस तरह बनाएंगे। इस दस्तावेज की जांच इसरो का गुणवत्ता आश्वासन दल करेगा।
इसरो के दल से मंजूरी मिल जाने पर और निजी दल के वाकई प्रशिक्षित होने एवं जरूरी कौशलों से लैस होने का यकीन हो जाने पर ही दूसरे उपग्रह का निर्माण उन्हें खुद करने दिया जाएगा।
उन्होंने कहा, उम्मीद है कि हम एकसाथ मिलकर सफल हो सकेंगे क्योंकि वे हमारी निगरानी में सीख रहे हैं। तो एकबार वे इस तरह एक या दो उपग्रहों पर काम शुरू कर दें, फिर वे अपने आप बाद में उपग्रह बना पाएंगे। भाषा