प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को भाषा के आधार पर भेदभाव करने के प्रयासों के प्रति आगाह करते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच कभी कोई दुश्मनी नहीं रही है और प्रत्येक भाषा ने एक-दूसरे को समृद्ध किया है।
यहां 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन (एबीएमएसएस) के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए मोदी ने मराठी को एक संपूर्ण भाषा बताया और संत ज्ञानेश्वर की एक पंक्ति सुनाई जिसमें मराठी को "अमृत से भी मीठा" बताया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें मराठी भाषा और संस्कृति से विशेष लगाव है और उन्हें इस बात पर गर्व है कि एक उल्लेखनीय मराठी भाषी व्यक्ति ने 100 साल पहले आरएसएस के बीज बोए थे।
मोदी ने कहा, "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मुझ जैसे लाखों लोगों को देश के लिए जीने के लिए प्रेरित किया है और संघ की वजह से ही मुझे मराठी भाषा और मराठी परंपरा से जुड़ने का सौभाग्य मिला है।" उद्घाटन समारोह में एबीएमएसएस की स्वागत समिति के अध्यक्ष एनसीपी-एसपी प्रमुख शरद पवार, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और 98वें अखिल भारतीय मराठी सम्मेलन की अध्यक्ष साहित्यकार तारा भवालकर समेत कई लोग मौजूद थे। हिंदी को "थोपने" को लेकर राजनीतिक विवाद की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच कभी कोई दुश्मनी नहीं रही है। उन्होंने कहा, "भाषाओं ने हमेशा एक-दूसरे को प्रभावित और समृद्ध किया है।"
मोदी ने कहा कि अक्सर जब भाषाओं के आधार पर विभाजन पैदा करने की कोशिश की जाती है, तो भारत की साझा भाषाई विरासत ने इसका माकूल जवाब दिया है। उन्होंने कहा, "इन गलत धारणाओं से खुद को दूर रखना और सभी भाषाओं को अपनाना और समृद्ध करना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है।" प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी उस दिन आई है, जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने अपनी टिप्पणी दोहराई कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का कार्यान्वयन पूरे देश में तीन-भाषा फॉर्मूला लागू करने का एक प्रयास है।
मोदी ने कहा कि भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, क्योंकि इसने लगातार विकास किया है, नए विचारों को अपनाया है और नए बदलावों का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, "यह तथ्य कि भारत में दुनिया की सबसे बड़ी भाषाई विविधता है, इसका प्रमाण है। यह भाषाई विविधता हमारी एकता का सबसे बुनियादी आधार भी है।" तीन दिवसीय अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन राष्ट्रीय राजधानी में 71 वर्षों के अंतराल और मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के एक साल बाद आयोजित किया जा रहा है।
मोदी ने कहा कि यह आयोजन छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक के 350वें वर्ष, पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती, बी आर अंबेडकर के प्रयासों से बनाए गए संविधान की 75वीं वर्षगांठ और आरएसएस के शताब्दी समारोह में दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन 1878 में अपने पहले संस्करण से लेकर अब तक भारत की 147 वर्षों की यात्रा का गवाह रहा है।
मोदी ने कहा कि महादेव गोविंद रानाडे, हरि नारायण आप्टे, माधव श्रीहरि अने, शिवराम परांजपे और वीर सावरकर जैसी कई विभूतियों ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी और उन्होंने पवार को इस गौरवशाली परंपरा का हिस्सा बनाने के लिए धन्यवाद दिया। मोदी ने कहा कि कुछ महीने पहले मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था, जिसके लिए भारत और दुनिया भर में 12 करोड़ से अधिक मराठी भाषी दशकों से इंतजार कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वह इसे अपने जीवन का सौभाग्य मानते हैं कि उन्हें यह कार्य पूरा करने का अवसर मिला। उन्होंने कहा, "भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति की वाहक है।" मोदी ने कहा कि भाषाएं समाज में जन्म लेती हैं, लेकिन वे इसे आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा कि मराठी ने महाराष्ट्र और अन्य स्थानों में कई व्यक्तियों के विचारों को अभिव्यक्ति दी है और सांस्कृतिक विकास में योगदान दिया है।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह महाराष्ट्र और मुंबई ही हैं जिन्होंने मराठी फिल्मों और हिंदी सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। मोदी ने मराठी लेखक शिवाजी सावंत द्वारा लिखी गई किताब पर आधारित छत्रपति संभाजी की बायोपिक का जिक्र करते हुए कहा, "नई फिल्म छावा इस समय हर जगह सुर्खियां बटोर रही है।"
मोदी ने कहा कि सम्मेलन की परंपरा 2027 में 150 साल पूरे करेगी, जो इस आयोजन का 100वां संस्करण भी होगा। उन्होंने सभी से इस अवसर को खास बनाने और अभी से तैयारियां शुरू करने का आग्रह किया। सम्मेलन पहली बार 1878 में आयोजित किया गया था, जिसके अध्यक्ष प्रसिद्ध विद्वान और समाज सुधारक महादेव गोविंद रानाडे थे। यह 1926 से लगभग हर साल आयोजित किया जाता रहा है और इसमें विद्वान, आलोचक और साहित्यकार एक साथ मिलकर कई मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं, जिसमें बदलते समय में मराठी की प्रासंगिकता भी शामिल है।