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ये है राफेल डील की ABCD जिस पर मचा है घमासान, जानें कब, कैसे और क्या हुआ

राफेल सौदे को लेकर पिछले काफी समय से केंद्र की मोदी सरकार और कांग्रेस पार्टी आमने-सामने हैं। कांग्रेस...
ये है राफेल डील की ABCD जिस पर मचा है घमासान, जानें कब, कैसे और क्या हुआ

राफेल सौदे को लेकर पिछले काफी समय से केंद्र की मोदी सरकार और कांग्रेस पार्टी आमने-सामने हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी देश-दुनिया के हर मंच से राफेल सौदे में घोटाले का दावा कर रहे हैं, तो सरकार की तरफ से पलटवार भी किया जा रहा है। कांग्रेस राफेल की कीमत को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रही है। उनका आरोप है कि एनडीए सरकार हर विमान को करीब 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है। जबकि यूपीए सरकार 526 करोड़ रुपये प्रति विमान की कीमत पर 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत कर रही थी।

राहुल गांधी लगातार ये भी आरोप लगा रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने ऑफसेट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी के रिलायंस समूह की एक कंपनी का चयन करने के लिए फ्रेंच कंपनी दसॉल्ट एविएशन को मजबूर किया था, ताकि उसे लाभ पहुंचाया जा सके। कांग्रेस राफेल डील से एचएएल के बाहर होने पर भी लगातार सवाल उठा रही है।

विपक्ष की तरफ से लगातार केंद्र सरकार पर उठने वाले इन सवालों के बीच आइए जानते हैं यूपीए सरकार के समय हुई इस डील के बारे में कि कब क्या-क्या हुआ।

यूपीए सरकार के समय शुरू हुई थी बातचीत

भारत ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी। तब तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी। इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंग का एफ/ए-18 एस और डसॉल्ट एविएशन का राफेल शामिल था।

लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई। डसॉल्ट एविएशन ने डील के लिए सबसे कम बोली लगाई थी। मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे जबकि 108 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे। यूपीए सरकार और डसॉल्ट के बीच कीमतों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर लंबी बातचीत हुई थी।

अंतिम वार्ता 2014 की शुरुआत तक जारी रही लेकिन सौदा नहीं हो सका। प्रति राफेल विमान की कीमत का विवरण आधिकारिक तौर पर घोषित नहीं किया गया था, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने संकेत दिया था कि सौदा 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा। कांग्रेस ने प्रत्येक विमान की दर एवियोनिक्स और हथियारों को शामिल करते हुए 526 करोड़ रुपये (यूरो विनिमय दर के मुकाबले) बताई थी।

4 सितंबर, 2008: मुकेश अंबानी नीत रिलायंस समूह ने रिलायंस एरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (आरएटीएल) का गठन किया।   

मई 2011: भारतीय वायुसेना ने राफेल और यूरो लड़ाकू विमानों को शॉर्टलिस्ट किया।

30 जनवरी, 2012: दसॉल्ट एविएशंस के राफेल विमानों ने सबसे कम मूल्य का निविदा पेश किया।    

13 मार्च, 2014: हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड और दसॉल्ट एविएशन के बीच 108 विमानों को बनाने को लेकर समझौता हुआ। 

8 अगस्त, 2014: तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने संसद को बताया कि समझौते पर हस्ताक्षर होने के 3-4 साल के भीतर प्रयोग के लिए पूरी तरह से तैयार 18 विमान प्राप्त हो जाएंगे। बाकि के 108 विमान अगले 7 साल में मिलने की संभावना है। 

8 अप्रैल, 2015: तत्कालीन विदेश सचिव ने कहा कि दसॉल्ट, रक्षा मंत्रालय और एचएएल के बीच विस्तृत बातचीत चल रही है। वहीं, इसी साल 10 अप्रैल को फ्रांस ने प्रयोग के लिए पूरी तरह से तैयार 36 विमानों के नए सौदे की घोषणा की।

10 अप्रैल, 2015:  फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकारों के स्तर पर समझौते के तहत भारत सरकार 36 राफेल विमान खरीदेगी। घोषणा के बाद, विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी के बिना कैसे इस सौदे को अंतिम रूप दिया। मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद के बीच वार्ता के बाद 10 अप्रैल, 2015 को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि वे 36 राफेल जेटों की आपूर्ति के लिए एक अंतर सरकारी समझौता करने पर सहमत हुए।

26 जनवरी, 2016: भारत और फ्रांस ने 36 लड़ाकू विमानों के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया।    

23 सितंबर, 2016: भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 7.87 अरब यूरो (लगभग 5 9, 000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए। विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी।

18 नवंबर, 2016: सरकार ने संसद को बताया कि प्रत्येक राफेल विमान की कीमत करीब 670 करोड़ रुपये होगी और सभी विमान अप्रैल 2022 तक प्राप्त हो जाएंगे।  

31 दिसंबर, 2016: दसॉल्ट एविएशन की वार्षिक रिपोर्ट से पता चला कि 36 राफेल विमानों की वास्तविक कीमत करीब 60,000 करोड़ रुपये है। यह सरकार द्वारा संसद में बताई गई कीमत से दोगुने से ज्यादा है। 

13 मार्च, 2018: फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदी संबंधी केन्द्र के फैसले की स्वतंत्र जांच और संसद के समक्ष सौदे की कीमत का खुलासा करने का अनुरोध करते हुए एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर।

5 सितंबर, 2018: राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए कोर्ट तैयार हो  गया।

18 सितंबर, 2018: कोर्ट ने मामले की सुनवाई 10 अक्टूबर तक स्थगित की। 

8 अक्टूबर, 2018: कोर्ट ने 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के समझौते से जुड़ी जानकारियां ‘सीलबंद लिफाफे’ में मुहैया कराने का निर्देश केन्द्र को देने संबंधी नई जनहित याचिका पर भी 10 अक्टूबर को सुनवाई करने की बात कही।   

10 अक्टूबर, 2018: कोर्ट ने केन्द्र से कहा कि वह राफेल सौदे पर निर्णय लेने की प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी सीलबंद लिफाफे में मुहैया कराए।

24 अक्टूबर, 2018: पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण भी न्यायालय पहुंचे, राफेल लड़ाकू विमान सौदा मामले में प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की। 

31 अक्टूबर, 2018: न्यायालय ने केन्द्र से कहा कि वह 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत से जुड़ी जानकारी उसे सीलबंद लिफाफे में सौंपे।   

12 नवंबर, 2018: केन्द्र ने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत से जुड़ी जानकारी सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपी। उसने राफेल सौदे की प्रक्रिया संबंधी जानकारी भी सौंपी। जानें सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने क्या कहा था-

केंद्र सरकार ने राफेल विवाद में सुप्रीम कोर्ट को सौदे से संबंधित जानकारियां दी थीं। इसमें विमान की कीमत (सीलबंद लिफाफे में) से लेकर HAL के डील से बाहर होने की वजह विस्तार से बताई गई। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान राफेल के लिए हुई डील में 2013 की रक्षा खरीद प्रक्रिया का ही पालन करते हुए और बेहतर शर्तों पर बाचतीच की गई थी। सौदे से पहले मंत्रिमंडल की सुरक्षा समिति ने भी मंजूरी दी थी।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी के आरोपों का भी जवाब दिया है। इसमें कहा गया है कि सरकार ने आरडीएल को डील में शामिल करने के लिए फ्रेंच कंपनी दसॉल्ट एविएशन पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया। ऐसा संभव भी नहीं है, क्योंकि रक्षा ऑफसेट दिशानिर्देशों के अनुसार दसॉल्ट एविएशन, ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने के लिए अपने भारतीय ऑफसेट सहयोगी का चयन करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है।

14 नवंबर, 2018: कोर्ट ने राफेल सौदे की जांच अदालत की निगरानी में कराने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी की।    

14 दिसंबर, 2018: राफेल सौदे पर कोर्ट ने केन्द्र को क्लीन चिट दी। सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदी के मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार क्लीन चिट देते हुए सौदे में कथित अनियमितताओं के लिए सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली सभी याचिकाओं को खारिज किया। 

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि अरबों डॉलर कीमत के राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। ऑफसेट साझेदार के मामले पर तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि किसी भी निजी फर्म को व्यावसायिक लाभ पहुंचाने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि लड़ाकू विमानों की जरूरत है और देश इन विमानों के बगैर नहीं रह सकता है।

2 जनवरी, 2019: भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर राफेल सौदे की जांच की मांग खारिज करने वाले फैसले को चुनौती दी है।

जानें राफेल विमान के बारे में 

राफेल विमान फ्रांस की दसॉल्ट कंपनी द्वारा बनाया गया 2 इंजन वाला लड़ाकू विमान है। राफेल लड़ाकू विमानों को ओमनिरोल विमानों के रूप में रखा गया है, जो कि युद्ध के समय अहम रोल निभाने में सक्षम हैं। हवाई हमला, जमीनी समर्थन, वायु वर्चस्व, भारी हमला और परमाणु प्रतिरोध ये सारी राफेल विमान की खूबियां हैं।

राफेल की खास बातें

-    राफेल एक मिनट में 60 हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है।

-    अधिकतम भार उठाकर इसके उड़ने की क्षमता 24500 किलोग्राम है।

-    विमान में फ्यूल क्षमता 17,000 किलोग्राम किलोग्राम है।

-    यह दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है, जो भारतीय वायुसेना की पहली पसंद है। हर तरह के मिशन में भेजा जा सकता।

-    24,500 किलो उठाकर ले जाने में सक्षम और 60 घंटे अतिरिक्त उड़ान की गारंटी।

 

भारतीय वायुसेना ने राफेल को ही क्यों चुना

वित्तीय कारणों से भारतीय वायुसेना ने लंबे टेस्ट के बाद राफेल को चुना। दरअसल राफेल विमान भारत सरकार के लिए एकमात्र विकल्प नहीं था। जानकारी के मुताबिक, इस डील के लिए कई अंतरराष्ट्रीय विमान निर्माताओं ने भारतीय वायुसेना से पेशकश की थी। इनमें से छह बड़ी विमान कंपनियों को चुना गया। जिसमें लॉकहेड मार्टिन का एफ-16, बोइंग एफ/ए -18 एस, यूरोफाइटर टाइफून, रूस का मिग -35, स्वीडन की साब की ग्रिपेन और राफेल शामिल थे।

भारतीय वायुसेना ने विमानों के परीक्षण और उनकी कीमत के आधार पर राफेल और यूरोफाइटर को शॉर्टलिस्ट किया। यूरोफाइटर टायफून काफी महंगा है। इस कारण भी डलास से 126 राफेल विमानों को खरीदने का फैसला किया गया।

लड़ाकू विमानों की वास्तविक खरीद प्रक्रिया 2007 में शुरू हुई

भारतीय वायुसेना ने वर्ष 2001 में अतिरिक्त लड़ाकू विमानों की मांग की थी। रक्षा मंत्रालय ने लड़ाकू विमानों की वास्तविक खरीद प्रक्रिया 2007 में शुरू की। इस सौदे की शुरुआत 10.2 अरब डॉलर यानी 5,4000 करोड़ रुपये में होनी थी। 126 विमानों में 18 विमानों को तुरंत देने और अन्य की तकनीक भारत को सौंपने की बात थी। लेकिन बाद में किसी कारणवश इस सौदे की प्रकिया रुक गई।

सरकार ने शुरुआत में 126 जेट खरीदने की योजना बनाई थी

रिपोर्ट्स के मुताबिक, विमान की कीमत लगभग 740 करोड़ रुपये है। लेकिन भारत सरकार इन विमानों को 20 फीसदी कम लागत पर खरीदना चाहती थी। सरकार ने शुरुआत में 126 जेट खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में इसे घटाकर 36 कर दिया है।

कांग्रेस का आरोप  

कांग्रेस इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है। उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि यूपीए सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी। पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्यों सरकारी एयरोस्पेस कंपनी एचएएल को इस सौदे में शामिल नहीं किया गया। कांग्रेस ने विमान की कीमत और कैसे प्रति विमान की कीमत 526 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,670 करोड़ रुपये की गई, यह भी बताने की मांग की है। हालांकि सरकार ने भारत और फ्रांस के बीच 2008 समझौते के एक प्रावधान का हवाला देते हुए विवरण साझा करने से इनकार कर दिया है।

हालांकि रक्षामंत्री निर्मला सीतारण ने सितंबर 2018 में इस डील को लेकर किए गए सवाल का भी जवाब दिया था। उन्होंने बताया था कि राफेल विमान को नई हथियार प्रणाली और दूसरे एड-ऑन फीचर के साथ और आधुनिक किया गया है। ये फीचर व हथियार पहले की डील में शामिल नहीं थे। रक्षा मंत्री ने कहा था कि 526 करोड़ की कीमत वाला विमान सिर्फ उड़ने और उतरने की क्षमता रखता था। इसमें लगाए जाने वाले साजों सामान के चलते कीमत में यह बढ़ोत्तरी हुई है। बावजूद विमान नौ फीसद सस्ता पड़ रहा है।

कांग्रेस के आरोपों पर मोदी सरकार की प्रतिक्रिया

लगभग दो साल पहले, रक्षा राज्य मंत्री ने संसद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था कि प्रत्येक राफेल विमान की लागत लगभग 670 करोड़ रुपये है, लेकिन संबंधित उपकरणों, हथियार और सेवाओं की कीमतों का विवरण नहीं दिया। बाद में, सरकार ने कीमतों के बारे में बात करने से इनकार कर दिया।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को एक फेसबुक पोस्ट लिखकर कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी पर सौदे के बारे में झूठ बोलने और दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार द्वारा हस्ताक्षरित सौदा यूपीए सरकार के तहत 2007 में जिस सौदे के लिये सहमति बनी थी उससे बेहतर है। इसपर राहुल गांधी ने कहा कि सरकार संयुक्त संसदीय समिति बना मामले की जांच क्यों नहीं करा लेती है।

 

 

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