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बिना प्रक्रिया अपनाए जेल भेजना उचित नहीं कहा जा सकताः सुप्रीम कोर्ट

एससी-एसटी एक्ट मामले में केंद्र सरकार की रिव्यू पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व फैसले पर मुहर लगाई...
बिना प्रक्रिया अपनाए जेल भेजना उचित नहीं कहा जा सकताः सुप्रीम कोर्ट

एससी-एसटी एक्ट मामले में केंद्र सरकार की रिव्यू पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व फैसले पर मुहर लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि बिना निष्पक्ष और उचित प्रक्रिया अपनाए संसद भी किसी की गिरफ्तारी की मंजूरी नहीं दे सकती। पहले शिकायत की जांच जरूरी है। प्रत्येक कानून को जीवन के अधिकार से संबंधित मौलिक अधिकार के दायरे में देखना होगा। मामले में अगली सुनवाई दो जुलाई को होगी।

जस्टिस ए. के. गोयल और यू. यू. ललित की बेंच ने मामले में कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया। यानी सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही अमल में रहेगा। बेंच ने कहा कि हम सभ्य समाज में रह रहे हैं और अगर हम किसी निर्दोष को सलाखों के पीछे भेजते हैं तो यह एक तरफा कार्रवाई होगी। कोर्ट ने कहा कि ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद मामले में सभी पक्षों को विस्तार से सुना जाएगा। बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस गोयल छह जुलाई को रिटायर हो रहे हैं।

बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि जो भी कानून है उसे अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार के दायरे में देखना होगा। इस अधिकार को न तो संसद और न ही संविधान छीन सकता है। अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि अनुच्छेद-21 में जीवन का अधिकार है और गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। लोककल्याणकारी राज्य का दायित्व है कि सभी को रोजगार मुहैया कराए और सरकार सभी को रोजगार का प्रयास करती है लेकिन सभी को रोजगार देना संभव नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लेकिन सरकार का मकसद तो यही है कि लोगों के अधिकार सुनिश्चित हों

क्या है मामला

सुप्रीम कोर्ट ने इस एससी-एसटी अत्याचार निवारण एक्ट-1989 के दुरुपयोग होने का हवाला देते हुए इसके तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दिया था। इसके साथ ही ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान भी किया गया था। जबकि मूल कानून में अग्रिम जमानत की व्यवस्था नहीं की गई है। कोर्ट के फैसले के अनुसार दर्ज मामलों में गिरफ्तारी से पहले डिप्टी एसपी या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी आरोपों की जांच करेगा और फिर कार्रवाई होगी।

दायर की थी रिव्यू पिटीशन

सुप्रीम कोर्ट के इस कानून को 'कमजोर' किए जाने के फैसले को लेकर विपक्षी पार्टियों और कुछ भाजपा  नेताओं के दवाब के बाद केंद्र सरकार ने रिव्यू पिटीशन दायर की थी। कोर्ट के फैसले के खिलाफ देश भर में दलित संगठनों ने दो अप्रैल को प्रदर्शन भी किया था जिसमें कई राज्यों में हिंसा हुई थी। इस हिंसा में देश भर में 11 लोगों की मौत हुई थी।

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