एनसीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद डीपी त्रिपाठी का गुरुवार को निधन हो गया। वह लंबे समय से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। दिल्ली के अस्पताल में उनका निधन हुआ। वह 67 वर्ष के थे। उन्हें शरद पवार का बेहद करीबी माना जाता था।
एनसीपी की नेता और पार्टी सुप्रीमो शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने ट्वीट करके कहा, 'डी पी त्रिपाठी के निधन से गहरा दुख पहुंचा है। वह एनसीपी के महासचिव होने के साथ ही हम सबके मार्गदर्शक थे।' सुले ने कहा, 'हम उनके सलाह और मार्गदर्शन की कमी महसूस करेंगे, जो वह एनसीपी बनने के बाद से लगातार देते रहे हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।'
कभी भुलाया नहीं जा सकेगाः प्रफुल्ल पटेल
एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने भी डीपी त्रिपाठी के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने कहा, 'अपने सहयोगी डीपी त्रिपाठी के निधन से गहरा सदमा लगा है। उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।'
सबसे करीबी मित्र को खो दियाः येचुरी
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने अपने छात्र जीवन के समय से लेकर अब तक के सबसे करीबी मित्र को खो दिया है। येचुरी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘कामरेड त्रिपाठी साथी छात्र, जीवन के सहयात्री और बहुत कुछ थे। विश्वविद्यालय के दिनों से लेकर उनके जीवन के अंतिम दिनों तक हमारा संवाद अंतहीन था। बहस और असहमति के बीच हमने एक दूसरे से बहुत कुछ सीखा।’’ येचुरी ने त्रिपाठी के निधन को निजी तौर पर अपूर्णीय क्षति बताते हुये कहा, ‘‘मेरे मित्र, आपकी कमी बहुत अधिक खलेगी। शोक। ’’
संभाल रहे थे महासचिव की जिम्मेदारी
डीपी त्रिपाठी का जन्म 29 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था और 2012 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे और वर्ष 2018 में उनका कार्यकाल खत्म हुआ। राज्यसभा सांसद रहने के दौरान वह कई संसदीय समितियों के सदस्य रहे। फिलहाल वह एनसीपी के महासचिव के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रहे थे।
छात्र राजनीति से की थी शुरुआत
उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी। वह जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में छात्र संघ अध्यक्ष भी रहे। राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने के लिए उन्होंने कांग्रेस पार्टी को चुना और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी भी बन गए। बाद में जब शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने का मुद्दा उठाया। कांग्रेस से अलग पार्टी एनसीपी बनाई तो डी पी त्रिपाठी उनके साथ चले गए।