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चंबल में खुलेगा 'सुनीलजाना स्कूल ऑफ़ फोटोग्राफी'

डाकुओं की शरणस्थली, बीहड़ और पिछड़ेपन से ग्रस्त चंबल का इलाका अब दूसरी वजहों से भी जाना जाएगा। हाल ही में पांच नदियों के संगम स्‍थल पंचनदा पर जन-संसद का आयोजन करने वाले, अवाम का सिनेमा के सर्वेसर्वा शाह आलम यहां देश के महान फोटोग्राफर रहे पद्मश्री-पद्मविभूषण से सम्मानित सुनील जाना की याद में 'सुनील जाना स्कूल ऑफ़ फोटोग्राफी' खोलने जा रहे हैँ।
चंबल में खुलेगा 'सुनीलजाना स्कूल ऑफ़ फोटोग्राफी'

 शाह की ओर से झांसी में  की गई घोषणा की जानकारी ई-मेल पर प्राप्त हुई। स्कूल के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा है कि इस स्कूल में चंबल के दूरदराज गाँवों के युवाओं व लोगों को फोटोग्राफी के गुर तो सिखाए ही जाएंगे। साथ ही तस्वीरों के माध्यम से चंबल की समस्याओं को बाहर लाने का काम भी होगा।

  देश भर में क्रांतिकारियों से संबंधित अहम दस्तावेजों के संग्रह और सच को उजागर करती कट्टरता विरोधी डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्माण तथा फिल्म फेस्टिवल आयोजित कर सामाजिक-सांप्रदायिक सोहार्द बढ़ाने में जुटे एक्टिविस्ट शाह आलम ने महारानी लक्ष्मी बाई किले से इसकी शुरुआत की है।  2012 में दिवंगत सुनील जाना की पांचवीं बरसी के मौके पर आलम ने बताया कि जाना ने देश भर में ज़बर्दस्त फोटोग्राफी की और दूरदराज के हालात दुनिया के सामने रखे। उन पर ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने दो किताबें प्रकाशित की हैं। विडंबना यह है कि इसके बावजूद कुछ दस्तावेजी फोटोग्राफी से जुड़े लोगों के अलावा बहुत कम लोग ही इस महान व्यक्तित्व और उसके काम के बारे में जानते हैं। देश के शीर्ष सम्मानों से विभूषित सुनील जाना को भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन संबंधी दस्तावेजों की तलाश में डेढ़ दशक से भी अधिक समय इधर-उधर भटकना पड़ा।  

1930 के दशक से 90’ के दशक तक जारी अपनी फोटोग्राफी के साठ वर्षों में उन्होंने आज़ादी के आंदोलन, किसान-मज़दूरों के संघर्षों, भारत के प्राचीन स्थापत्य से लेकर आज़ाद भारत के तीर्थ कहे जाने वाले उद्योगों, बाँधों, कल-कारखानों, रेलवे लाइनों तक के निर्माण को, राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-वैज्ञानिक शख्सियतों से लेकर देश के विभिन्न आदिवासी समुदायों, दंगों, अकाल, लाशों के ढेर, विद्रोह, विभाजन, विस्थापन के साथ ही मनुष्य के श्रम को उन्होंने अपनी तस्वीरों में दर्ज किया।

आलम ने खास जानकारी के तहत बताया कि बहुत कम लोग जानते हैं कि बिना किसी डिग्री-डिप्लोमा खुद करके सीखने वाले , कैमरे की आँख से दुनिया की नब्ज को पूरी तीव्रता से पकड़ने वाले सुनील जाना की सिर्फ़ एक आँख ही दुरुस्त थी। दूसरी बचपन में ही ग्लॉकोमा की शिकार हो गई थी। रोमांचक है कि इसके बावजूद वे अपने निगेटिव्स को ख़ुद ही डेवलप किया करते थे। आख़िरी वर्षों में तो उनकी दूसरी आँख ने भी उनका साथ छोड़ दिया था।

 नई पीढ़ी के बीच क्रांतिकारियों और सांप्रदायिक सौहार्द की अलख जगाने वाले अवाम का सिनेमा के संस्‍थापक शाह आलम ने बताया कि छोटी-छोटी कार्यशालाओं के ‌जरिए गांव-गिरांव की नई पीढ़ी से संवाद करने वाले इस संस्‍थान में फोटग्राफी सिखाने के लिए देश-विदेश के नामी फोटोग्राफर आने को तैयार हैँ।

घोषणा के गवाह बने इंडोनेशिया प्रवासी उपन्यासकार  मनीष श्रीवास्तव, जेएनयू के फरहत सलीम और एडवोकेट मुकेश कनौजिया ने इसे चंबल में सामाजिक सौहार्द के लिए अच्छी पहल बताते हुए हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

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