सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और उनके सहयोगियों को हिरासत से रिहा कर दिया गया है। मेहता ने यह भी कहा कि दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में सभाओं और विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने संबंधी दिल्ली पुलिस के आदेश को भी वापस ले लिया गया है।
मेहता ने मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष यह बयान दिया। पीठ वांगचुक की रिहाई के अनुरोध और निषेधाज्ञा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
वांगचुक समेत लद्दाख के लगभग 120 लोगों को लद्दाख के लिए छठी अनुसूची का दर्जा देने की मांग को लेकर राजधानी की ओर मार्च करते समय पुलिस ने दिल्ली सीमा पर कथित तौर पर हिरासत में लिया था।
छठी अनुसूची ‘‘स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों’’ के रूप में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। मेहता ने कहा कि वांगचुक और उनके सहयोगियों को रिहा कर दिया गया है और जब तक वे किसी कानूनी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करते हैं तब तक उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘30 सितंबर को पारित निषेधाज्ञा (आदेश) अब बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर वापस ले लिया गया है। जहां तक कथित तौर पर हिरासत में लिए गए लोगों का सवाल है, तो यह उस अर्थ में हिरासत नहीं थी और अब वे बाहर हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वे कल राजघाट गए थे। वे वहां लगभग दो घंटे तक रहे। उन्होंने कुछ ज्ञापन दिए, जिन्हें गृह मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया। वे भी चले गए हैं।’’ अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता आजाद, जिन्होंने कहा था कि उन्होंने वांगचुक के साथ मिलकर काम किया था और वकील मुस्तफा हाजी की याचिकाओं पर कार्यवाही बंद कर दी, क्योंकि उनके वकीलों ने भी रिहाई की बात स्वीकार कर ली थी।
हालांकि एक अलग याचिका दायर करने वाले वकील की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि ऐसे लोग हैं जो जागरूकता फैलाने के लिए जंतर-मंतर जाना चाहते हैं लेकिन उन्हें अभी भी रोका जा रहा है और वांगचुक ‘‘पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हैं’’।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी जानकारी के अनुसार, वह पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हैं। वे सोनम वांगचुक को उनके अन्य सहयोगियों से मिलने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। उन्हें अलग-अलग जगहों पर रखा गया है। सोनम वांगचुक को जाहिर तौर पर लद्दाख भवन ले जाया गया है और अन्य लोगों को आंबेडकर भवन में रखा गया है... अभी भी कुछ पाबंदियां हैं। श्री सोनम वांगचुक को अदालत में पेश किया जाए।’’
मेहता ने इस दावे पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह एक ‘‘झूठा बयान’’ है। उन्होंने कहा, ‘‘यह याचिकाकर्ता हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में वकालत करने वाला एक वकील है और समूह के साथ मार्च करने वाले लोगों में से एक है। हिमाचल में कोई व्यक्ति कहता है कि मेरी जानकारी के अनुसार वे स्वतंत्र नहीं हैं और जो लोग उनके साथ हैं वे कहते हैं कि हर कोई स्वतंत्र है।’’
भूषण ने कहा कि वह अपने दावे के समर्थन में एक हलफनामा दायर करेंगे और उन्होंने अदालत से सुनवाई शुक्रवार तक स्थगित करने का आग्रह किया।
अदालत ने भूषण से कहा, ‘‘यदि बयान झूठा है, तो हम कार्रवाई करेंगे।’’ साथ ही अदालत ने पुलिस से रिहाई पर हलफनामा दायर करने को भी कहा।
सुनवाई के दौरान भूषण ने यह भी कहा कि निषेधाज्ञा उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध है और लोगों को 48 घंटे तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।
मेहता ने कहा कि दो अक्टूबर की रात को पारित निषेधाज्ञा आदेश वापस ले लिया गया है।