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प्रवासी मजदूरों को घर भेजने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, कहा-क्या है सरकार की योजना

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से एक सप्ताह में जबाव मांगा है और पूछा है कि वह बताए कि लॉकडाउन...
प्रवासी मजदूरों को घर भेजने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, कहा-क्या है सरकार की योजना

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से एक सप्ताह में जबाव मांगा है और पूछा है कि वह बताए कि लॉकडाउन के चलते देशभर में फंसे प्रवासी मजदूरों को कोरोना वायरस जांच के बाद क्या उनके मूल स्थानों पर भेजने की उसके पास कोई योजना है। पीठ ने यह जबाव मजदूरों के मौलक अधिकारों के उल्लंघन और उनके घरों तक अंतर-राज्यीय परिवहन व्यवस्था मुहैया कराने की एक याचिका पर मांगा है।

याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि सरकार के दृष्टिकोण को बिना पुष्टि किए आंख बंद करके माना जा रहा है, जबकि लोगों के विशेष रूप से प्रवासी मजदूरों के मौलिक अधिकारों को लागू नहीं किया जा रहा है। इस बीच सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता द्वारा भूषण द्वारा कोर्ट पर भरोसा नहीं जताए जाने के सवाल पर जस्टिस एनवी रमन्ना, संजय किशन कौल और बीआर गवई की पीठ ने  सवाल किया कि अगर आपको हमारे ऊपर भरोसा नहीं है तो फिर हम आपकी बात पर क्या सुनवाई करें। आप कहते हैं कि आप 30 साल से ज्यादा समय से सुप्रीम कोर्ट से जुड़े हैं तो क्या आपको यह लगता है कि कोर्ट सरकार के यहां बंधक है।

'मैं पीड़ा व्यक्त करने का हकदार हूं'

भूषण ने कहा कि "यह संविधान द्वारा बनाई गई एक संस्था है लेकिन प्रवासियों मजदूरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है" और "मैं पीड़ा को व्यक्त करने का हकदार हूं।" भूषण ने सफाई देते हुए कहा, “हाल फिलहाल में कोर्ट के कुछ आदेशों के चलते कई पूर्व जजों ने भी ऐसी राय व्यक्त की है. इसका मतलब यह नहीं है कि हम इस संवैधानिक संस्था पर आस्था नहीं रखते हैं।“

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भूषण से कहा कि उन्हें यह नहीं मान लेना चाहिए कि वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो मौलिक अधिकारों के लागू होने को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इस मुद्दे से बहुत चिंतित है और प्रवासी मजदूरों को हर संभव सहायता प्रदान करने की कोशिश कर रही है। भूषण ने कहा कि अगर मामले में एक वकील के रूप में उनकी उपस्थिति के संबंध में कोई आपत्ति थी, तो वह मामले से हटने के लिए तैयार थे और कुछ अन्य वकील पेश हो जाएंगे। पीठ ने कहा कि उन्हें  मामले से हटने के लिए कभी नहीं कहा।

'सरकार ने अपनी आंखें बंद कर ली हैं'

भूषण ने कहा कि लगता है कि सरकार ने अपनी आँखें बंद कर ली हैं और लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के संकट की स्थिति पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत से अधिक प्रवासी श्रमिकों को राशन या मजदूरी नहीं मिली है; वे हताश स्थिति में हैं और उन्हें अपने मूल स्थानों पर जाने की मंजूरी दी जानी चाहिए। हालांकि मेहता ने कहा कि ये गलत रिपोट्रर्स हैं। उन्होंने याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए आंकड़ों के पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि केंद्र इस मुद्दे पर राज्यों से सलाह ले रहा है कि कितने प्रवासी मजदूरों को  ले जाया जाना है, कितने को मदद दी जानी है और किस तरह की मदद दी जानी है।

'मजदूरों के लिए अंतर-राज्यीय परिवहन की मंजूरी दें'

पीठ ने मेहता को बताया कि इसका मतलब है कि केंद्र राज्यों के परामर्श पर है और इस मुद्दे की जांच करने के लिए तैयार है। मेहता ने जवाब दिया कि सरकार हर चीज की जांच कर रही है, लेकिन याचिकाकर्ता के विचारों की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अदालत से याचिका को लंबित नहीं रखने का आग्रह किया क्योंकि पहले भी इस तरह के तर्क दिए गए हैं।

भूषण ने अदालत से आग्रह किया कि वह प्रवासी मजदूरों के लिए अंतर-राज्यीय परिवहन की मंजूरी दे, जिस पर मेहता ने यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि इसे सरकार लोगों के बड़े हित को ध्यान में रखते हुए सभी पहलुओं पर गौर करेगी।

सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से नोटिस जारी न करने और याचिका पर निर्देश देने का अनुरोध किया क्योंकि इससे गलत संदेश जाएगा और वह दो सप्ताह के भीतर इस पर जवाब दाखिल करेगा। पीठ ने कहा कि केंद्र को यह जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जा रहा है कि क्या प्रवासी श्रमिकों के अंतर-राज्यीय परिवहन की मंजूरी देने पर कोई प्रस्ताव है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय एजेंसी नहीं है, और केंद्र सरकार को इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई चाहिए।

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