पिछले कुछ वर्षों में, भारत में भीड़ से संबंधित दुर्घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है, विशेषकर धार्मिक और राजनीतिक आयोजनों के दौरान। इन घटनाओं में प्रमुख कारणों में से एक है आयोजनों में उमड़ने वाली बेहिसाब भीड़, जिसका प्रबंधन करने में प्रशासन अक्सर विफल रहता है। उदाहरण के लिए, जनवरी 2025 में प्रयागराज महाकुंभ के दौरान मची भगदड़ में दर्जनों श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई और दर्जनों घायल हो गए। इसी प्रकार, फरवरी 2025 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर महाकुंभ के लिए यात्रा कर रहे यात्रियों की भीड़ के कारण भगदड़ मची, जिसमें 18 लोगों की जान चली गई। इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि भीड़ प्रबंधन में गंभीर खामियाँ हैं, जो त्रासदियों का कारण बनती हैं।
भीड़ दुर्घटनाओं के पीछे कई कारण होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं: आयोजन स्थलों की संरचनात्मक कमियाँ, जैसे कि संकरे प्रवेश और निकास मार्ग; सुरक्षा उपायों की कमी, जैसे कि अपर्याप्त पुलिस बल और निगरानी उपकरण; और आपातकालीन स्थितियों में त्वरित प्रतिक्रिया की कमी। इसके अतिरिक्त, अफवाहें और भीड़ का अनियंत्रित व्यवहार भी भगदड़ का कारण बनते हैं। उदाहरणस्वरूप, 2024 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक प्रार्थना सभा के दौरान मची भगदड़ में 100 से अधिक लोग मारे गए थे, जिसका मुख्य कारण अफवाहों के कारण फैली दहशत थी।
आधुनिक युग में, जब तकनीकी प्रगति अपने चरम पर है, तब भी हम भीड़ प्रबंधन जैसे बुनियादी मुद्दों से निपटने में असफल हो रहे हैं। सरकारों ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं, जैसे कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा 2014 में भीड़ प्रबंधन पर दिशानिर्देश जारी करना। इन दिशानिर्देशों में आयोजन स्थलों की क्षमता का आकलन, प्रवेश और निकास मार्गों की पर्याप्तता, और आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए योजनाओं का निर्माण शामिल है। हालांकि, इन दिशानिर्देशों का प्रभावी कार्यान्वयन अभी भी एक चुनौती बना हुआ है।
भीड़ प्रबंधन के लिए कानूनों की बात करें, तो आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत NDMA को आपदाओं के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी करने का अधिकार है। इसके अलावा, पुलिस अधिनियम 1861 के तहत पुलिस को भीड़ नियंत्रण और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति प्राप्त है। हालांकि, इन कानूनों का सख्ती से पालन और कार्यान्वयन आवश्यक है।
सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए, सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विभिन्न अभियान चलाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, NDMA द्वारा समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भीड़ प्रबंधन के महत्व और आपातकालीन स्थितियों में नागरिकों की भूमिका पर प्रकाश डाला जाता है। इसके बावजूद, जमीनी स्तर पर जागरूकता की कमी अभी भी एक बड़ी चुनौती है।
अन्य देशों में भीड़ प्रबंधन के लिए उन्नत तकनीकों और सख्त नियमों का पालन किया जाता है। उदाहरण के लिए, जापान में रेलवे स्टेशनों पर भीड़ नियंत्रण के लिए स्वचालित प्रवेश और निकास प्रणाली का उपयोग होता है। इसी प्रकार, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देशों में बड़े आयोजनों के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित निगरानी प्रणाली और प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की जाती है। इन देशों में आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए नियमित अभ्यास और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
भारत में भीड़ दुर्घटनाओं को रोकने के लिए विभिन्न तकनीकी और संरचनात्मक उपाय अपनाने की आवश्यकता है। आयोजन स्थलों पर CCTV कैमरे, ड्रोन और AI आधारित निगरानी प्रणाली स्थापित की जाएं ताकि भीड़ की वास्तविक समय में निगरानी की जा सके। प्रवेश और निकास मार्गों की संख्या बढ़ाई जाए और उन्हें चौड़ा किया जाए ताकि भीड़ का प्रवाह सुचारू रहे। सुरक्षा कर्मियों, स्वयंसेवकों और आम जनता के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं ताकि वे आपातकालीन स्थितियों में सही प्रतिक्रिया दे सकें।
इसके अलावा, पुलिस, अग्निशमन सेवा, स्वास्थ्य विभाग और अन्य संबंधित एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया जाए ताकि आपातकालीन स्थितियों में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया संभव हो सके। भीड़ प्रबंधन से संबंधित कानूनों और दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
भीड़ दुर्घटनाओं की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए, यह आवश्यक है कि सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर ठोस कदम उठाएं। तकनीकी साधनों का उपयोग, संरचनात्मक सुधार, कानूनी प्रवर्तन, और सार्वजनिक जागरूकता के माध्यम से ही हम इन त्रासदियों को रोक सकते हैं और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।