लखनऊ में प्रमुख चौराहे पर प्रदर्शनकारियों के पोस्टर मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट से झटके मिलने के बावजूद यूपी की योगी सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। राज्य सरकार प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई के लिए अध्यादेश लेकर आई है। कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एण्ड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश-2020 को मंजूरी दे दी है। जिसके तहत प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर दोषियों से वसूली की जाएगी।
यूपी सरकार के वित्त और संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि कैबिनेट ने राजनीतिक जुलूसों, अवैध आंदोलन के दौरान सरकारी और निजी संपत्तियों के नुकसान की वसूली के लिए यूपी रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टीज अध्यादेश-2020 को मंजूरी दे दी है। इस संबंध में नियमों और विनियमों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, " नियमावली में सब कुछ स्पष्ट किया जाएगा।"
कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि वर्तमान में सरकारी आदेश के जरिए वसूली की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद अध्यादेश लाया गया। उन्होंने यह भी कहा कि कैबिनेट की बैठक के दौरान, सभी मंत्रियों ने "सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मुख्यमंत्री के फैसले की प्रशंसा की क्योंकि यह भविष्य में बर्बरता और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं को रोकने में मदद करेगा"।
चौराहों पर लगाए थे प्रदर्शनकारियों को पोस्टर
पिछले साल 19 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा में 15 लोगों की मौत हो गई थी और संपत्तियों को भी नुकसान हुआ था। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा था कि हिंसा में नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों से वसूली कर की जाएगी। लखनऊ प्रशासन ने आरोपी 57 प्रदर्शनकारियों के पोस्टर शहर के प्रमुख चौराहों पर लगा दिए थे और वसूली नोटिस जारी किए थे ।इन पोस्टरों में कार्यकर्ता-राजनीतिज्ञ सदफ जाफर और पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी का नाम भी शामिल था।
हाई कोर्ट ने बताया था मौलिक अधिकार का उल्लंघन
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में संज्ञान लेते हुए रविवार के दिन सुनवाई की और इसे हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने इसे निजी आजादी का खुला अतिक्रमण बताया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में ने देखा कि अधिकारियों की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है जिसके तहत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था-किस कानून के तहत की कार्रवाई
इसके खिलाफ यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हिंसा के आरोपी लोगों के सड़क किनारे पोस्टर लगाने की कार्रवाई करने का कोई कानून नहीं है। माना जा रहा है कि यह अध्यादेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के सवालों का जवाब तलाशने के लिए लाया गया है।