मुंबई के प्रवासी मजदूरों के लिए पैदल ही अपने घरों के लिए निकलना मजबूरी हो गई है। लॉकडाउन के 43 दिन बीत जाने के बाद भी प्रवासी मजदूरों की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। उनके पास जेब में न पैसा है और न ही शहर में कमाई के कोई अवसर। उनका कहना है कि अगर वे अपने घर नहीं जाएंगे तो यहां भी जीवित नहीं रह पाएंगे। जिसके चलते मुंबई और आस-पास के सैकड़ों प्रवासी मजदूर अपने पैतृक गांवों की ओर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पर पैदल और साइकिल से ही निकल पड़े हैं।
अपने 11 महीने के बेटे को साथ ले जाते हुए प्रीति ने पूछने पर कहा, "हमारे पास क्या विकल्प है? हमारे पास खाना खरीदने के लिए पैसा नहीं है। इस लॉकडाउन के दौरान हम कैसे बचेंगे? मैं अपने 11 महीने के बच्चे को क्या खिलाऊंगी?" हमारे पास अपने मूल स्थानों पर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जहां हम अपने परिवारों के साथ रह सकते हैं और कुछ समय के लिए जीवित रह सकते हैं।
ट्रेन भी नहीं मिल पाई
मुंबई-नासिक राजमार्ग पर ज्यादातर मजदूर पैदल थे, तो कुछ साइकिल पर। मुंबई में टैक्सी चलाने वाले एक प्रवासी मजदूर ने कहा कि वह टैक्सी में रहता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद से उसके पास न तो कोई आदमनी का साधन है और न ही रहने के लिए कोई जगह। उसने कहा कि मेरे पास खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं। अगर मैं अपने मूल स्थान पर नहीं जाता हूं, तो यहां भूखा रहूंगा। हमने अपने मूल स्थान के लिए ट्रेन की यात्रा के लिए आवेदन करने की कोशिश की। लेकिन पुलिस का कहना है कि कोई ट्रेन नहीं है। इसलिए 20 दिन की पैदल यात्रा करने का फैसला किया।
हर दिन काम करके रहते हैं जिंदा
बढ़ई का काम करने वाले एक अन्य प्रवासी मजदूर ने कहा,"हम हर दिन काम करके जीवित रहते हैं। हमें बिना पैसे या भोजन के छोड़ दिया गया है। शहर में जीवित रहना कठिन हो रहा है। मेरे पिता और मैं अपने गांव जा रहे हैं, जहां मेरी मां हमारी प्रतीक्षा कर रही है।" प्रवासी मजदूरों ने कहा कि वे चिलचिलाती गर्मी से बचने के लिए शाम,रात और सुबह के समय चलते हैं और दिन के दौरान कहीं शरण लेते हैं। कुछ एनजीओ इन प्रवासियों की मदद कर रहे हैं।
कुछ एनजीओ कर रहे हैं मदद
डॉक्टरों की एक टीम को उन्हें भोजन, दवाइयाँ आदि की मदद करते हुए देखा गया है। डा- प्रशांत पिंगले ने कहा,"1 मई से, हम यहां इस पलायन को देख रहे हैं। मुंबई, कल्याण और ठाणे शहरों के हजारों प्रवासी अपने मूल स्थानों पर जा रहे हैं। हम एक छोटी सी टीम हैं और हम जितना हो सके, उतनी मदद कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ज्यादातर प्रवासी मजदूर लंबे समय तक भूखे प्यासे चलने के कारण मांसपेशियों में दर्द से पीड़ित होते हैं, जिसके लिए वे उन्हें ओआरएस, दर्द निवारक और कुछ भोजन प्रदान करते हैं। पिछले चार से पांच दिनों में, हमने महिलाओं को अपने छोटे बच्चों और पुरुषों को अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते देखा है। हमने उन्हें समझाने की कोशिश की है कि वे इन स्थितियों में अपने मूल स्थानों में न जाएं। लेकिन उनका कहना है कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं है।