मालेगांव ब्लास्ट मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को राहत मिली है। इन दोनों सहित चार आरोपियों पर लगा मकोका (MCOCA) हटा लिया गया है। इसके साथ ही यूएपीए की धारा 17, 20 व 13 भी हटा दी गई है।
इन पर अब केवल अनलॉफुल एक्टीविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (UAPA) की धारा 18 और अन्य आईपीसी की धाराओं में केस चलेगा।
क्या है मकोका?
महाराष्ट्र सरकार ने 1999 में मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) बनाया था। इसका मुख्य मकसद संगठित और अंडरवर्ल्ड अपराध को खत्म करना था। 2002 में दिल्ली सरकार ने भी इसे लागू कर दिया। फिलहाल महाराष्ट्र और दिल्ली में यह कानून लागू है।
इसके तहत संगठित अपराध जैसे अंडरवर्ल्ड से जुड़े अपराधी, जबरन वसूली, फिरौती के लिए अपहरण, हत्या या हत्या की कोशिश, धमकी, उगाही सहित ऐसा कोई भी गैरकानूनी काम जिससे बड़े पैमाने पर पैसे बनाए जाते हैं, मामले शामिल है। कानून विश्लेषकों का कहना है कि मकोका लगने के बाद आरोपियों को आसानी से जमानत नहीं मिलती है।
कैसे लगता है मकोका?
किसी के खिलाफ मकोका लगाने से पहले पुलिस को एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस से मंजूरी लेनी होती है।
इसमें किसी आरोपी के खिलाफ तभी मुकदमा दर्ज होगा, जब 10 साल के दौरान वह कम से कम दो संगठित अपराधों में शामिल रहा हो। संबंधित संगठित अपराध में कम से कम दो लोग शामिल होने चाहिए। इसके अलावा आरोपी के खिलाफ एफआईआर के बाद चार्जशीट दाखिल की गई हो। अगर पुलिस 180 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल नहीं करती, तो आरोपी को जमानत मिल सकती है।
मकोका के तहत पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 180 दिन का वक्त मिल जाता है, जबकि आईपीसी के प्रावधानों के तहत यह समय सीमा सिर्फ 60 से 90 दिन है।
मकोका के तहत आरोपी की पुलिस रिमांड 30 दिन तक हो सकती है, जबकि आईपीसी के तहत यह अधिकतम 15 दिन होती है।
सजा
इस कानून के तहत अधिकतम सजा फांसी है, वहीं न्यूनतम पांच साल जेल का प्रावधान है।