केंद्र सरकार ने व्यभिचार की धारा 497 का समर्थन करते हुए इस चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई पर अपना पक्ष रखा। व्यभिचार (एडल्टरी) विवाह संस्था के लिए खतरा है जिसका परिवारों पर असर पड़ता है।
केंद्र सरकार की तरफ से एडीशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आंनद ने साफ कहा कि हमें अपने समाज में हो रहे विकास और बदलाव के हिसाब से कानून को देखने की जरूरत है न कि पश्चिमी देशों के नजरिए से ऐसे कानून पर राय देनी चाहिए।
इस कानून के खिलाफ तर्क दिया जाता है कि ये एक ऐसा अपराध जिसमें महिला और पुरुष दो लोग लिप्त रहने पर भी केवल पुरुष को सजा दी जाती है, जो लैंगिक भेदभाव है।
इससे पहले दो अगस्त को इस मसले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि वैवाहिक पवित्रता एक मुद्दा है लेकिन व्यभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के तहत समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है क्योंकि यह विवाहित पुरूष और विवाहित महिलाओं से अलग-अलग व्यवहार करता है।
क्या है धारा 497
158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 कहती है, 'आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाता है तो उस महिला का पति एडल्टरी (व्यभिचार) के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है। हालांकि, ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है और न ही विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष की पत्नी इस दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है।
इस धारा के तहत ये भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है। किसी दूसरे रिश्तेदार या करीबी की शिकायत पर ऐसे पुरुष के खिलाफ कोई शिकायत नहीं स्वीकार होगी।
आपसी सहमति से शादी-शुदा पुरुष महिला के बीच शारीरिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने वाली इस धारा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिस पर सुनवाई चल रही है और केंद्र सरकार ने याचिका के खिलाफ जाकर मौजूदा धारा का समर्थन किया है।