सिंगूर मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस वी. गोपाला गौड़ा और जस्टिस अरुण मिश्र के बीच दो मुद्दों पर मतभेद सामने आए। एक, जमीन अधिग्रहण की वजह जनहित मानी जाए या नहीं? जस्टिस अरुण मिश्र का मानना था कि जमीन जनहित के लिए ली गई थी, जबकि, जस्टिस गौड़ा की राय इसके उलट थी। दूसरा मुद्दा, मुआवजा देने की पद्धति को लेकर था- क्या मुआवजा राजकोष से जारी किया गया था? जस्टिस गौड़ा का मानना था कि राजकोष से मुआवजा नहीं दिया गया। पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम ने दिया। जबकि, जस्टिस मिश्र का मानना था कि निगम का मतलब ही कि राजकोष से धन दिया गया। यही कारण है कि जमीन अधिग्रहण को जनहित का मुद्दा माना जाना चाहिए।
जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को लेकर भी दोनों जजों की राय अलग थी। जस्टिस गौड़ा का मानना था कि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी करने में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। जबकि, जस्टिस मिश्र की राय अलग थी। लेकिन अन्य मुद्दों पर विचार करते हुए दोनों जजों ने माना कि जमीन अधिग्रहण अवैध था। इसलिए इसे खारिज कर किसानों को लौटाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रसन्नता जाहिर की है। उन्होंने कहा, 'मैं सिंगूर के लोगों के लिए लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का इंतजार कर रही थी। अब मैं चैन से मर सकती हूं।' उन्होंने कहा कि वह आगे की रणनीति बनाने के लिए गुरुवार को अधिकारियों के साथ बैठक करेंगी। यह फैसला जमीन अधिग्रहण के खिलाफ बलिदान देने वालों की जीत है। मुझे उम्मीद है हर कोई इस 'सिंगूर उत्सव' का जश्न मनाएगा, यह दुर्गा पूजा के जश्न के आह्वान की तरह है। इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील कल्याण बनर्जी ने भी फैसले पर खुशी जताई है।