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कैसी हो दिल्ली के विकास की नीति और नीयत? नागरिकों ने रख्‍ाीं मांगें

पिछले दिनों दिल्ली में पुनर्विकास के नाम पर हज़ारों पेड़ काटने का मुद्दा सुर्खियों में रहा। नागरिकों...
कैसी हो दिल्ली के विकास की नीति और नीयत? नागरिकों ने रख्‍ाीं मांगें

पिछले दिनों दिल्ली में पुनर्विकास के नाम पर हज़ारों पेड़ काटने का मुद्दा सुर्खियों में रहा। नागरिकों की सक्रियता, विरोध प्रदर्शन और दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश की वजह से ये पेड़ कटने से बच गए। यह दिल्ली का अपना चिपको आंदोलन था जिसने शहरी विकास के तौर-तरीकों में पर्यावरण की अनदेखी से जुड़े कई सवाल उठाए। सबसे जरूरी सवाल पुनर्विकास के नाम पर कमर्शियल रियल एस्टेट को बढ़ावा देने और ऐसा करने में पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को लेकर पारदर्शिता नहीं बरते जाने को लेकर हैं। ये चिंताएं शहरी शासन व्यवस्था में व्यापक सुधार की जरूरत पर जोर देती हैं।

इन्हीं मुद्दों पर दिल्ली के कई सजग नागरिकों ने मीडिया के माध्यम से सरकार के सामने अपनी कुछ मांगें रखी हैं, जिन्हें यहां ज्यों का त्यों प्रकाशित किया जा रहा है:

क्या हो दिल्ली के पुनर्विकास की सोच?

- आशुतोष दीक्षित, कांची कोहली, प्रदीप कृष्ण, मंजू मेनन, मीनाक्षी नाथ, रवीना राज कोहली, जूही सकलानी, वल्लारी शील, शेखर सिंह, राजीव सूरी 

 

केंद्र सरकार ने हाल ही में सरकारी आवासों को दोगुना करने की आड़ में दिल्ली के सबसे हरे-भरे आवासीय और ऐतिहासिक विरासत वाले क्षेत्र को व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स में बदलने को मंजूरी दी, जो कि शहर के नागरिकों को कतई स्वीकार्य नहीं है। जून 2018 से, हजारों दिल्लीवासी उन पेड़ों को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें काटने के लिए चिन्हित किया जा रहा है ताकि ‘’पुनर्विकास’’ के रास्ते खुल सकें। लोग इन्हें बचाने के लिए मुकदमेबाजी, पेड़ बचाओ अभियान, नुक्कड़ नाटक, पेड़ों की गिनती, पक्षियों की गिनती जैसे कदम उठा रहे हैं। लोग निर्माण स्थलों पर रातों में निगरानी कर रहे हैं ताकि माननीय दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा पेड़ों को काटने पर दिया गया स्टे ऑर्डर का पालन हो।

शहरी आपातस्थिति

कई नए बड़े निर्माण प्रोजेक्ट को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा ऐसे समय में अनुमति दी गई है जब दिल्लीवासी दुनिया में सबसे प्रदूषित हवा, पानी की कमी, ट्रैफिक समस्या, बढ़ते तापमान और शहरी प्रशासन में टूट-फूट से जूझ रहे हैं।

केंद्र सरकार, खासकर शहरी मामले एवं आवास मंत्रालय और पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को रियल एस्टेट विकास की योजनाओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिए क्योंकि इनसे स्थिति और बिगड़ सकती है। जब सरकार को इन समस्याओं के लिए दीर्घकालीन समाधान खोजने के लिए अपनी सारी ताकत लगानी चाहिए, तब इसके विपरीत वह खुलेआम निर्माण कंपनियों को मंजूरी दे रही है और इनके द्वारा सरेआम किए जा रहे उल्लंघनों से नजरें फेर रही है।

चूंकि विरोध प्रदर्शन पिछले महीने शुरू हुए, उन्होंने इन प्रोजेक्ट के बारे में रुपये पास किए हैं या आधे-अधूरे कदम और गलत समाधानों जैसे पौधारोपण, डिजाइन में हल्के परिवर्तन के बारे में ट्वीट किए हैं। लेकिन इस संकट पर पूरी तरह पुनर्विचार नहीं होता।

बदलाव की प्रक्रिया 

नीचे कुछ न्यूनतम कदमों का जिक्र किया गया है, जिससे शहरी गवर्नेंस की लचर स्थिति में सुधार किया जा सके। इन सुधारों के बिना, कई आगामी और वर्तमान प्रोजेक्ट कोर्ट तक पहुंचेंगे क्योंकि नागरिकों के लिए वही एक जगह बची है, जहां इनसे निपटा जा सके।

1. पहला, केंद्र और दिल्ली सरकार सार्वजनिक/सरकारी जमीनों पर चल रहे ऐसे सभी प्रोजेक्ट पर रोक लगाएं, जिनमें पेड़ों को काटना, पानी का इस्तेमाल और किसी भी तरह के प्राकृतिक संसाधन को निकालना या दोहन करना शामिल है।

2. केंद्र और राज्य सरकार दिल्ली के पुनर्विकास के लिए प्रोजेक्ट और योजनाओं को पूरी तरह से सार्वजनिक करें। इसमें प्रोजेक्ट के नाम, उनकी मंजूरी, विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट, एमओयू, दूसरे सहयोगी यंत्रों और सरकार या तीसरे पक्ष की रिपोर्ट, जो इन प्रोजेक्ट का औचित्य साबित करें, शामिल है।

3. किदवई नगर, नौरोजी नगर, नेताजी नगर, श्रीनिवासपुरी, मोहम्मदपुर, प्रगति मैदान या किसी भी दूसरी जगह पर, जहां पेड़ गिराए गए हैं और निर्माण कार्य शुरू हो गया है, वहां कानूनी उल्लंघन और हो चुके नुकसान का दस्तावेज तैयार करने के लिए सीएजी के नेतृत्व में एक सार्वजनिक ऑडिट किया जाए, जिसमें नागरिकों की सक्रिय भागीदारी हो।

4. शहरी आवास मंत्रालय द्वारा सार्वजनिक सुनवाई की जानी चाहिए, जिसमें शहरी विकास के वर्तमान स्वरूप को लेकर दिल्लीवासियों की रायशुमारी, प्राथमिकताएं और शिकायतें शामिल हों। इसकी शुरुआत जरूरी क्षेत्रों में नामचीन विशेषज्ञों द्वारा कई सारे प्रेजेंटेशन से की जाए। जब उनके प्रजेंटेशन हों, लोगों की प्राथमिकताओं को इनमें चित्रित किया जाए।

5. EIA नोटिफिकेशन के तहत, रियल स्टेट को सार्वजनिक सुनवाई से दी गई छूट को तुरंत समाप्त किया जाए। पर्यावरण मंत्रालय शहरी इलाकों में प्रोजेक्ट के आकलन की नई प्रकियाओं के बारे में नोटिफिकेशन जारी करे। इसमें प्रभावों के अध्ययन, शहरी संसाधनों के इस्तेमाल के उच्चतम मानक, जिन कंपनियों का खराब रिकॉर्ड हो उन्हें खारिज करना और हर प्रोजेक्ट के लिए सिटिजेन मॉनिटरिंग कमेटी, जिसमें RWAs और स्वतंत्र विशेषज्ञ शामिल हों, जैसी बातें शामिल हों।

6. केंद्र और राज्य सरकारें उन रेगुलेटरी संस्थाओं में सुधार करें जो शहरी प्रोजेक्ट का प्लान बनाती हैं और मंजूरी देती हैं। इनमें शहरी इकोलॉजी, ऐतिहासिक विरासत और संरक्षण, शहरी प्रशासन, लोक सेवा, डिजाइन और शहरी योजना के विशेषज्ञों का स्थान जरूर हो। इनमें वही सदस्य हों, जो सम्मानित अध्येता हैं या अपने क्षेत्र में बेस्ट हैं। इनमें सरकारी विभाग या एजेंसी शामिल नहीं हो सकतीं, जो अपने ही प्रोजेक्ट को मंजूरी दें।

 शहरी सुधार की दरकार

ऊपर उल्लेखित केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों को जनता के नाम पर हानिकारक और फिजूल के प्रोजेक्ट की योजना बनाने और लागू करने की अपनी रोजमर्रा की प्रैक्टिस छोड़नी चाहिए। स्मार्ट सिटी के हौव्वे के बजाय हम शहरी गवर्नेंस में वाकई सुधार चाहते हैं।

 

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