अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन को रामलला विराजमान को सौंपने का आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड की फैजाबाद कोर्ट संबंधी याचिका और निर्मोही अखाड़ा का दावा खारिज कर दिया। वहीं, मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में दूसरी जगह मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। कोर्ट ने साथ ही कहा कि इसके लिए केंद्र सरकार तीन महीने में योजना बनाए। पांचों जजों की सहमति से फैसला सुनाया गया है।
कौन हैं रामलला विराजमान
आइए आपको बताते हैं कि रामलला विराजमान आखिर कौन हैं जिनके पक्ष में यह फैसला सुनाया गया है। दरअसल इस पूरे मामले में भगवान राम के बाल रूप रामलला की ओर से याचिका दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को लीगल इन्टिटी मानते हुए जमीन का मालिकाना हक उनको दिया है।
दरअसल साल 1946 में विवाद उठा कि बाबरी मस्जिद शियाओं की है या सुन्नियों की। फैसला हुआ कि बाबर सुन्नी था, इसलिए मस्जिद सुन्नियों की है। साल 1949 की जुलाई में प्रदेश सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू की लेकिन यह नाकाम रही। राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़ा के नियंत्रण में थे और उसी अखाड़े के साधु-संन्यासी वहां पूजा-पाठ आदि का विधान करते थे। 23 दिसंबर 1949 को पुलिस ने मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया था, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद कुर्क कर उस पर ताला लगा दिया गया था। कोर्ट ने तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम को इमारत का रिसीवर नियुक्त किया था और उन्हें ही मूर्तियों की पूजा आदि की जिम्मेदारी दे दी थी।
2010 के फैसले में भी था रामलला का हिस्सा
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था। हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया था। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था।