भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार शाम 4 बजकर 10 मिनट पर जियोस्टेशनरी कम्युनिकेशन सैटेलाइट जीसैट-7ए को श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया। जीएसएलवी एफ-11 जीसैट-7A को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर आर्बिट (जीटीओ) से छोड़ा गया और उसे ऑनबोर्ड प्रणोदन प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए फाइनल जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा। जीएसएलवी-एफ11 इसरो की चौथी पीढ़ी का लॉन्चिंग वेहिकल है।
2,250 किलोग्राम वजन है इस सैटेलाइट का
जीसैट-7ए सैटेलाइट का वजन करीब 2,250 किलोग्राम है। इसरो ने कहा कि जीसैट-7ए का निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने किया है और इसका जीवन आठ वर्ष है। यह भारतीय क्षेत्र में केयू-बैंड के उपयोगकर्ताओं को संचार क्षमताएं मुहैया कराएगा। इसी के साथ ये भी बताया जा रहा है कि ये सैटेलाइट वायुसेना को समर्पित होगा, जो वायु शक्ति को और ज्यादा मजबूती देगा।
बताया जा रहा है कि यह सैटलाइट भारतीय वायुसेना के लिए बहुत खास है। इसके जरिये वायुसेना को भूमि पर रडार स्टेशन, एयरबेस और एयरबॉर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AWACS) से इंटरलिंकिंग की सुविधा मिलेगी, जिससे उसकी नेटवर्क आधारित युद्ध संबंधी क्षमताओं में विस्तार होगा और ग्लोबल ऑपरेशंस में दक्षता बढ़ेगी।
तो इसलिए खास है भारतीय वायुसेना के लिए जीसैट-7ए
जीसैट-7ए से केवल वायुसेना के एयरबेस ही इंटरलिंक नहीं होंगे बल्कि इसके जरिए ड्रोन ऑपरेशंस में भी मदद मिलेगी। इसके जरिए ड्रोन आधारित ऑपरेशंस में एयरफोर्स की ग्राउंड रेंज में खासा इजाफा होगा। बता दें कि इस समय भारत, अमेरिका में बने हुए प्रीडेटर-बी या सी गार्डियन ड्रोन्स को हासिल करने की कोशिश कर रहा है। ये ड्रोन्स अधिक ऊंचाई पर सैटलाइट कंट्रोल के जरिए काफी दूरी से दुश्मन पर हमला करने की क्षमता रखते हैं।
क्या हैं जीसैट-7एके खास फीचर्स
इस सैटलाइट की लागत 500-800 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इसमें 4 सोलर पैनल लगाए गए हैं जिनके जरिए करीब 3.3 किलोवाट बिजली पैदा की जा सकती है। इसके साथ ही इसमें कक्षा में आगे-पीछे जाने या ऊपर जाने के लिए बाई-प्रोपेलैंट का केमिकल प्रोपल्शन सिस्टम भी दिया गया है।
इससे पहले इसरो ने लॉन्च किया था 'रुक्मिणि'
जीसैट-7ए से पहले इसरो जीसैट-7 सैटलाइट जिसे 'रुक्मिणि' के नाम से जाना जाता है, को लॉन्च कर चुका है। इसका लॉन्च 29 सितंबर 2013 में किया गया था और यह भारतीय नौसेना के लिए तैयार किया गया था। यह सैटलाइट नेवी के युद्धक जहाजों, पनडुब्बियों और वायुयानों को संचार की सुविधाएं प्रदान करता है। माना जा रहा है कि आने वाले कुछ सालों में भारतीय वायुसेना को एक और सैटलाइट Gsat-7C मिल सकता है जिससे इसके ऑपरेशनल आधारित नेटवर्क में और ज्याद बढ़ोतरी होगी।
भारत के पास हैं 13 मिलिटरी सैटेलाइट्स
भारत के पास अभी करीब 13 मिलिटरी सैटेलाइट्स हैं। इनमें से ज्यादातर सैटेलाइट्स रिमोट-सेंसिंग सैटेलाइट्स हैं जिनमें कार्टोसैट सीरीज और रीसैट सैटेलाइट्स शामिल हैं। ये धरती की निचली कक्षा में मौजूद रहते हैं और धरती के चित्र लेने में मददगार होते हैं। हालांकि कुछ सैटेलाइट्स को धरती की भू-स्थैतिक कक्षा (जियो ऑरबिट) में भी स्थापित किया जाता है।
इन सैटेलाइट्स का इस्तेमाल निगरानी, नेविगेशन और कम्यूनिकेशन के लिए किया जाता है। ये रिमोट सेंसिंग सैटलाइट्स भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी काफी मददगार साबित हुए थे।